विवेक ही कारगर

Last Updated 09 Jun 2025 03:38:08 PM IST

प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई का यह कहना कि न्यायिक निर्णय लेने में प्रौद्योगिकी को मानव मस्तिष्क का स्थान नहीं लेना चाहिए अत्यंत विचारणीय तथ्य है, प्रौद्योगिकी मानव मस्तिष्क का स्थान भला कैसे ले सकती है जबकि उसकी भूमिका सहायक से अधिक नहीं हो सकती।


न्यायमूर्ति गवई लंदन विविद्यालय से संबद्ध स्कूल ऑफ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज (एसओएएस) में ‘भारतीय कानूनी पण्राली में प्रौद्योगिकी की भूमिका’ विषय पर आयोजित व्याख्यान को संबोधित कर रहे थे। उनका यह कहना बिल्कुल उचित है कि स्वचालित वाद सूचियों, ‘डिजिटल कियोस्क’ और आभासी सहायकों जैसे नवाचारों का स्वागत किया जा सकता है। पर विवेक, सहानुभूति और न्यायिक व्याख्या बेशकीमती हैं।

प्रौद्योगिकी इनका स्थान कभी नहीं ले सकती। भारत के पास तकनीकी दक्षता,  दूरदर्शिता और लोकतांत्रिक जनादेश है, जिससे समानता, सम्मान और न्याय के  हमारे मूल्यों को प्रतिबिंबित करने वाली पण्रालियां विकसित की जा सकती हैं। प्रधान न्यायाधीश का पद ग्रहण करते ही न्यायमूर्ति गवई ने न्यायपालिका में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) और उभरती प्रौद्योगिकियों के नैतिक उपयोग पर उच्चतम न्यायालय के अनुसंधान और योजना केंद्र के साथ चर्चा की शुरुआत की थी।

प्रधान न्यायाधीश की इस बात से सहमत हुए बिना नहीं रहा जा सकता कि प्रौद्योगिकी का उपयोग मानवीय विवेक का स्थान लेने के लिए न किया जाए। हालांकि कुछ मामलों में न्यायपालिका ने प्रौद्योगिकी को अपनाना शुरू किया है, लेकिन एआई के इस्तेमाल के मामले में केस प्रबंधन से लेकर कानूनी अनुसंधान, और दस्तावेज के अनुवाद तक भरपूर सावधानी जरूरी है। दुनिया भर में कानूनी पण्रालियों में एआई के नैतिक उपयोग पर गंभीर बहस चल रही है।

एल्गोरिदम संबंधी पूर्वाग्रह, गलत सूचना, आंकड़ों में हेरफेर और गोपनीयता जैसे मामलों ने सबकी चिंता बढ़ाई हुई है। पीड़ित की पहचान उजागर होने का खतरा भी बना रहता है। इस मामले में स्पष्ट प्रोटोकॉल नहीं है। दूसरे, एआई उपकरणों के उचित विनियमन और निगरानी के अभाव में वे मनगढ़ंत उद्धरण या पक्षपातपूर्ण सुझाव दे सकते हैं। न्याय तक पहुंच केवल न्यायपालिका की जिम्मेदारी नहीं है। यह एक साझा राष्ट्रीय प्रतिबद्धता है। सुलभ, पारदर्शी और समावेशी न्याय सबकी जरूरत है।



Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment