बेहद गरीबी से उबार
भारत में अत्यधिक गरीबी दर 2011-12 में 27.1 प्रतिशत से एक दशक में तेजी से घट कर 2022-23 में 5.3 प्रतिशत रह गई।
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यह जानकारी विश्व बैंक की एक रिपोर्ट से मिली है। हालांकि विश्व बैंक ने अपनी गरीबी रेखा की सीमा को संशोधित करके तीन डॉलर प्रति दिन कर दिया है। बेशक, यह रिपोर्ट हौसला देती है। खासकर मौजूदा वैश्विक के मद्देनजर किसी भी देश के लिए इस प्रकार का आकलन खासा उत्साहवर्धक होता है।
भारत विकासशील देश है, और अपनी आयोजना में शुरू से से ही गरीबी उन्मूलन का प्राथमिकता देता रहा है। गरीबी से अपने लोगों को उबारने के लिए पंचवर्षीय योजनाएं शुरू की गई ताकि आम जन के आर्थिक हालात बेहतर से बेहतर हो सकें। सत्तर के दशक में ‘गरीबी हटाओ’ का नारा देकर चुनाव तक लड़ा गया। जीता भी गया। बेशक, सरकार की तमाम प्राथमिकताओं और चिंताओं के केंद्र में गरीबी उन्मूलन रहा है।
इसके नतीजे भी अच्छे मिले, लेकिन कुछ समस्याएं बराबर बनी रहीं जिनके चलते गरीबी उन्मूलन का लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सका। एक तो यह हुआ की आर्थिक विकास के लाभ कुछ वगर्ोे तक ही सीमित रह गए। इसके चलते आर्थिक असमानता की समस्या उभरी जिससे पार पाने के लिए आज जूझना पड़ रहा है, लेकिन यह भी सच है कि गरीबी से पार पाने में खासी सफलता मिली है। इस बात की ताकीद शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल जैसे मानकों में देश के बेहतर प्रदर्शन से होती है।
गरीबी कम करने में हम कमजोर नहीं पड़े हैं। और अब तो विश्व बैंक भी इसकी तस्दीक कर रहा है। विश्व बैंक ने अप्रैल में भारत पर अपने ‘गरीबी और समानता संक्षिप्त’ में कहा था कि अत्यधिक गरीबी (प्रति दिन 2.15 डॉलर से कम पर जीवन यापन) 2011-12 में 16.2 प्रतिशत से घट क 2022-23 में 2.3 प्रतिशत हो गई जिससे 17.1 करोड़ लोग इस रेखा से ऊपर आ गए।
बेशक, गरीबी उन्मूलन के प्रयास आजाद भारत के किसी भी कालखंड में शिथिल नहीं पड़ने पाए हैं, लेकिन बहुत कुछ वैश्विक हालात पर निर्भर करता है। वैश्विक जोखिम आज कहीं ज्यादा नकारात्मक हैं। अमेरिका जैसे देशों में नीतिगत बदलाव, कई देशों में युद्ध के हालात ने वैश्विक परिदृश्य को तनावपूर्ण बना दिया है। लेकिन अर्थव्यवस्था के बुनियादी कारक इतने मजबूत हैं कि भारत अपने लोगों के हालात बेहतर करने में जरूर सफल होगा।
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