मुद्दा : आस्था से मजाक बर्दाश्त नहीं
सामान्य अवधारणा है कि दैवी नाम केवल मनुष्यों को ही दिए जाते हैं। मगर सिलिगुड़ी वन्यप्राणी उद्यान में शेर और शेरनी का नाम अकबर और मां सीता पर रख दिया गया। भला ऐसी बेजा हरकत किस ईशोपासक को गवारा होगी?
![]() मुद्दा : आस्था से मजाक बर्दाश्त नहीं |
अत: स्वाभाविक है कि सनातन संगठन विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) ने पश्चिम बंगाल की ममता सरकार को दोषी और संवेदनहीन करार दे दिया। विहिप की बंगाल शाखा ने इसे हिन्दू धर्म का अपमान बताते हुए कलकत्ता हाई कोर्ट में याचिका लगा दी। अदालत ने 20 फरवरी को सुनवाई की। शेरों के जोड़े का नाम बदलने का आदेश दिया है। साथ ही, अदालत ने शेरनी का नाम सीता रखने और शेर को अकबर नाम देने को लेकर बंगाल सरकार से भी जवाब मांगा है।
मामला सिलीगुड़ी के सफारी पार्क का है। विहिप को इस बात की गहरी पीड़ा हुई है कि बिल्ली प्रजाति का नाम भगवान राम की पत्नी सीता को दिया गया है। शेर-शेरनी के इस जोड़े को हाल ही में त्रिपुरा के सेपाहिजला जूलॉजिकल पार्क से कोलकता लाया गया था। वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि उन्होंने शेरों का नाम नहीं बदला है। यहां आने से पहले ही (13 फरवरी को) उनका नाम रखा जा चुका था, जबकि विहिप का कहना है कि शेरों का नाम राज्य के वन विभाग ने रखा था। ‘अकबर’ के साथ ‘सीता’ नाम रखना हिन्दू धर्म का अपमान है। इस मामले में राज्य के वन अधिकारियों और सफारी पार्क निदेशक को मुकदमे में पक्षकार बनाया गया है।
सिंगल बेंच के जस्टिस सौगत भट्टाचार्य ने पश्चिम बंगाल सरकार से कहा कि वह शेर-शेरनी को कोई दूसरा नाम देने पर विचार करें, ताकि विवाद को शांत किया जा सके। अदालत ने कहा कि देश में बड़ी संख्या में लोग मां सीता की पूजा करते हैं। अकबर एक कुशल और सफल मुगल सम्राट था। लेकिन यहां किसी के महान होने या किसी पूजनीय का मसला नहीं है, मसला है तो इस बात का है कि आखिर, किस भावना बल्कि कुत्सित मानसिकता के चलते यह हरकत की गई। कहने में गुरेज नहीं कि यह कृत्य समुदाय विशेष की भावनाओं को आहत करने के लिए किया गया है। इसी तरह समुदायों के बीच कटुता के बीज बोए जाएंगे तो भारत की सर्वधर्म समभाव की भावना का क्या होगा। अच्छी बात है कि अदालत ने इस मामले में तत्परता दिखाते हुए फैसला दिया है।
अदालत ने कहा : ‘वकील साहब, क्या आप खुद अपने पालतू जानवर का नाम किसी हिन्दू भगवान या मुस्लिम पैगंबर के नाम पर रखेंगे। मुझे लगता है, अगर हममें से कोई भी अधिकारी होता, तो हममें से कोई भी उनका नाम अकबर और सीता नहीं रखता। क्या हममें से कोई रबींद्रनाथ टैगोर के नाम पर किसी जानवर का नाम रखने के बारे में सोच भी सकता है ? इस देश का एक बड़ा वर्ग सीता की पूजा करता है।’ एडिशनल एडवोकेट जनरल ने अदालत को बताया कि पश्चिम बंगाल सरकार ने इन जानवरों को कोई नाम नहीं दिया है।
त्रिपुरा चिड़ियाघर के अधिकारियों ने ये नाम दिए थे। इस पर अदालत ने कहा : ‘धार्मिंक देवता या ऐतिहासिक रूप से सम्मानित व्यक्तित्वों के नाम पर शेरों का नाम रखना अच्छा नहीं है। राज्य पहले से ही कई विवादों को देख रहा है। यह विवाद ऐसी चीज है, जिससे बचा जा सकता है।’ अधिवक्ता ने कहा कि वह सुनिश्चित करेंगे कि शेरों को नये नाम दिए जाएं, लेकिन उन्होंने अदालत से याचिका को खारिज करने का भी आग्रह किया। इस पर अदालत ने कहा, ‘चूंकि शेरों के नाम लिए गए हैं। याचिकाकर्ता दावा कर रहे हैं कि इससे हिन्दू समुदाय की धार्मिंक भावनाएं आहत हुई हैं, इसलिए मामले की जांच करनी होगी। लेकिन यह एक जनहित याचिका के तौर पर होगी।’
अदालत ने आदेश दिया कि याचिका को जनहित याचिका के रूप में लिया जाए। इसे उस खंडपीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाए जो जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करती है। कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा : ‘कृपया विवाद से बचें और अपने अधिकारियों से इन जानवरों के नाम बदलने के लिए कहें। किसी भी जानवर का नाम किसी हिन्दू भगवान, मुस्लिम और ईसाई पैगंबर, महान पुरस्कार विजेताओं, स्वतंत्रता सेनानियों आदि के नाम पर न रखें।
आम तौर पर जो पूजनीय और सम्मानित होते हैं, उनका नाम कभी भी नहीं दिया जाना चाहिए।’ न्यायमूर्ति ने सुझाव दिया कि राज्य सरकार के वकील विवाद से बचने के वास्ते चिड़ियाघर के अधिकारियों से शेर और शेरनी को अलग-अलग नाम देने के लिए कहें। भारत धर्मनिरपेक्ष देश है और हर समुदाय को अपने धर्म का पालन करने का अधिकार है। जस्टिस भट्टाचार्य ने पूछा: ‘आपको सीता और अकबर के नाम पर एक शेरनी और एक शेर का नाम रखकर विवाद क्यों खड़ा करना चाहिए?’
| Tweet![]() |