ग्रामीण इंफ्रास्ट्रक्चर : बड़े सुधार की जरूरत
बाजार में अपने उत्पादों का लागत से कम मूल्य मिलने से विश्व के अनेक देशों के किसान इस समय आंदोलन कर रहे हैं। भारत में भी किसानों का आंदोलन रुकता नजर नहीं आ रहा।
![]() ग्रामीण इंफ्रास्ट्रक्चर : बड़े सुधार की जरूरत |
किसानों का कहना है कि सरकार जिस दाम उनसे गल्ला खरीदती है, वह लागत से कम है। स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट सरकार ने कार्यान्वित न करके उनके साथ अन्याय किया है।
विश्व भर में किसानों की मांगों का ऐतिहासिक पहलू समझना आवश्यक है। 20वीं शताब्दी की औद्योगिक क्रांति के पूर्व कृषि अर्थव्यवस्था की रीढ़ मानी जाती थी, किंतु अंधाधुंध औद्योगिकरण से मैन्युफैक्चरिंग और सेवाओं का स्थान कृषि के ऊपर हो गया। कृषि गौण हो गई। अर्थव्यवस्था में लगभग सभी कृषि पदाथरे की कीमतें उस अनुपात में नहीं बढ़ीं जितनी वृद्धि उत्पादन लागत में हुई। गांवों से शहरों को पलायन का यह बड़ा कारण बना जो अभी तक चल रहा है।
इसके लिए आवश्यक है कि जहां एक और कृषि उत्पादों की कीमतों में वृद्धि की जाए वहीं गांवों के इंफ्रास्ट्रक्चर में भी व्यापक सुधार किए जाएं। ग्रामीण सड़कों, आवास, बिजली, पानी, स्वच्छता, शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन, संचार, पर्यावरण आदि पर ध्यान दिया जाए। शहरों के इंफ्रास्ट्रक्चर विकास पर सरकारें जितना ध्यान देती हैं, उतना गांवों के इंफ्रास्ट्रक्चर पर नहीं। यह सच्चाई है। गांवों में सड़कों का निर्माण और विकास करने के लिए 2000 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने अच्छी पहल की थी। मोदी सरकार ने फिर इस ओर ध्यान दिया। 2000 में जो योजना बनाई गई थी वह 100% केंद्र प्रायोजित थी, जिसका उद्देश्य था सभी मौसम के अनुकूल ग्रामीण सड़कें बनाना जो ग्रामीण क्षेत्रों को जोड़ें, ग्रामीण आबादी के सामाजिक-आर्थिक विकास की स्थिति में सुधार लाएं, बाजारों, स्कूलों, स्वास्थ्य केंद्रों तक पहुंचना सुगम बनाएं।
तीन चरणों की इस योजना में प्रथम चरण 100% केंद्र प्रायोजित था और संबद्ध बस्तियों को हर मौसम में सड़क कनेक्टिविटी देने, मैदानी इलाकों में 500 या इससे अधिक की बस्ती, पहाड़ी, आदिवासी और रेगिस्तानी इलाकों में 250 की बस्ती को सड़कों से जोड़ने का प्रावधान किया गया था। 1,35,436 बस्तियों को लक्षित किया गया था। तीन लाख 68,000 किलोमीटर सड़कों के उन्नयन और 40% ग्रामीण सड़कों के नवीनीकरण का भी लक्ष्य रखा गया था। द्वितीय चरण 2013 में प्रारंभ हुआ जिसमें 50,000 किमी. सड़कों के उन्नयन का लक्ष्य था, योजना पर होने वाले खर्च में 75% केंद्र और 25% राज्य सरकारों के जिम्मे में था। पहाड़ी और रेगिस्तानी इलाकों में 100% निर्माण व्यय केंद्र के जिम्मे था। तृतीय चरण की शुरुआत 2019 में हुई। 1,25,000 किमी. सड़कों को समय समेकित करने का लक्ष्य रखा गया है।
उत्तर-पूर्वी राज्यों और हिमालय के राज्यों में होने वाले खर्च का 90% केंद्र सरकार वहन करती है। ग्रामीण सड़कों की चौड़ाई 3.75 मीटर से बढ़ा कर 5.50 मीटर करने का भी निर्णय लिया गया। योजना से ग्रामीण सड़कों का जाल बिछा है, इसमें संदेह नहीं किंतु सड़कों की गुणवत्ता पर प्रश्न उठते रहे हैं, थोड़े दिनों में कई जगह सड़कों के पगडंडी में बदल जाने की रिपोर्टे भी आती रही हैं। बड़ी संख्या में अभी भी ग्रामीण इलाके अच्छी सड़कों से जुड़े नहीं हैं। गरीबी रेखा के नीचे के लोगों विशेषकर गांव में रहने वालों के लिए आवास बड़ी समस्या है। 2016 में केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री आवास योजना शुरू की जिसका उद्देश्य था कम कीमत के मकान सभी के लिए उपलब्ध कराए जाएं। मूल रूप से आवास योजना 1985 में इंदिरा गांधी द्वारा प्रारंभ की गई थी किंतु वह कारगर नहीं हुई। 2016 में मोदी सरकार ने नई योजना बनाई जिसके तहत 2.95 करोड़ पक्के मकान बनाने का प्रावधान है।
दिसम्बर, 2023 तक की रिपोर्ट के अनुसार योजना के अंतर्गत 2.70 करोड़ घरों का लक्ष्य आवंटित किया जा चुका है, इसमें से 2.44 करोड़ मकान लाभार्थियों को स्वीकृत किए जा चुके हैं। एक दिसम्बर, 2023 तक 1.90 करोड़ मकानों का निर्माण हो चुका है, अकेले उत्तर प्रदेश में 22 लाख निर्मिंत मकानों का आवंटन हो चुका है। 32 अरब रुपये की यह महत्त्वाकांक्षी योजना बिना भेदभाव सभी गरीबों के लिए है। जल भंडारण, बाढ़ नियंत्रण, नियमित जल आपूर्ति और प्रदूषण नियंतण्रके उद्देश्य से सरकार ने एकीकृत वॉटरशेड विकास कार्यक्रम 2009 में प्रारंभ किया। चीन के बाद यह दुनिया की सबसे बड़ी वॉटरशेड योजना है। मिट्टी और जल संरक्षण, वृक्षारोपण, पशुधन, नवीकरण ऊर्जा के लिए भी यह योजना लाभदायक है। इसका उद्देश्य 2027 तक 55 मिलियन हेक्टेयर वष्रा सिंचित भूमि को कवर करना है।
इसके तहत सूखा प्रवण क्षेत्र कार्यक्रम, मरुभूमि विकास कार्यक्रम एवं समेकित बंजर भूमि विकास कार्यक्रम आदि भी शामिल हैं। योजना का नाम बदल कर प्रधानमंत्री सिंचाई योजना कर दिया गया है। डिजिटल संचार इंफ्रास्ट्रक्चर का गांवों में हाल के वर्षो में तेजी से विकास किया गया है। सत्रह दिसम्बर, 2019 को नेशनल ब्रॉडबैंड मिशन लॉन्च किया गया था जिसका उद्देश्य डिजिटल संचार इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास को तेज करना, डिजिटल विभाजन रोकना, डिजिटल सशक्तिकरण करना और समावेश को सुविधाजनक बनाना था। सितम्बर, 2021 तक ग्रामीण क्षेत्रों में 33 करोड़ एवं शहरों में 49 करोड़ सब्सक्राइबर हो चुके थे। भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण की 10 जनवरी, 2022 की रिपोर्ट के अनुसार मोबाइल/ब्रॉडबैंड/इंटरनेट सेवाएं चरणबद्ध तरीके से देश के दूरदराज तक उपलब्ध करा दी गई हैं।
अनाज भंडारण की समुचित व्यवस्था न होने से छोटे किसान विशेष रूप से अपनी पैदावार तुरंत बेचने को मजबूर हो जाते हैं, जब उनको उसकी कीमत कम मिलती है। भंडारण व्यवस्था के अभाव में वेस्टेज भी ज्यादा होती है। इस समस्या से निपटने के लिए विश्व की सबसे बड़ी अन्न भंडारण योजना प्रधानमंत्री मोदी ने 24 फरवरी, 2024 को लॉन्च की। योजना के तहत अगले 5 वर्षो में 700 लाख टन भंडारण की क्षमता बनाई जाएगी जो कोऑपरेटिव क्षेत्र में होगी। 500 अतिरिक्त प्राइमरी कृषि क्रेडिट सोसाइटीज भी पूरे देश में बनाए जाएंगी जो भंडारण के लिए क्रेडिट की व्यवस्था करेंगी। अठारह प्राइमरी कोऑपरेटिव सोसाइटीज को कंप्यूटराइज किया जाएगा ताकि ये सोसाइटीज आधुनिक तकनीक का भी उपयोग कर सकें। भंडारण की इस महत्त्वाकांक्षी योजना पर 25 लाख करोड़ रुपये के खर्च का अनुमान है। ग्रामीण इंफ्रास्ट्रक्चर विकास में इस योजना का महत्त्वपूर्ण योगदान होगा।
| Tweet![]() |