सामयिक : संदेशखालि से सन्न देश
पश्चिम बंगाल के संदेशखालि कांड ने पूरे देश को सन्न कर दिया है। आखिर, कानून के शासन वाले किस राज्य में ऐसा संभव है कि कोई कुछ या कुछ लोगों का समूह जब चाहे जितनी संख्या में चाहे महिलाओं को बुला ले और उनका शोषण करे?
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मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कहती हैं कि संदेशखालि घटना के पीछे भाजपा का हाथ है। उन्होंने कहा कि संदेशखालि में पहले ईडी को भेजा गया। फिर ईडी की दोस्त भाजपा कुछ मीडियावालों के साथ संदेशखालि में घुसी और हंगामा करने लगी।
ममता बनर्जी, तृणमूल कांग्रेस या सरकार के अन्य प्रवक्ता ऐसी घटना को नकारने की जितनी कोशिश करते हैं, उतना ही सच सामने आ रहा है। टेलीविजन कैमरों पर जितनी संख्या में महिलाएं आकर आपबीती सुना रही हैं, उनसे किसी भी संवेदनशील व्यक्ति का दिल दहल जाएगा। राजनीतिक दलों में भी केवल भाजपा आवाज उठाती या आंदोलन करती तो माना जाता कि शायद आरोपों में उतनी सच्चाई नहीं है जितनी प्रचारित की जा रही है। वामपंथी पार्टयिां और कांग्रेस भी संदेशखालि पर एक स्वर में हैं। राज्यपाल सीवी आनंद बोस ने संदेशखालि में अशांत क्षेत्रों का दौरा कर कहा, ‘मैंने जो देखा वह भयावह, स्तब्ध करने वाला और अंतरात्मा को हिला देने वाला था। विास करना कठिन है कि रबींद्र नाथ टैगोर की धरती पर ऐसा हुआ।’ यह भी पहली बार होगा जब राज्यपाल ने राजभवन का नंबर जारी करते हुए कहा कि किसी महिला को डरने की आवश्यकता नहीं है। उन्हें समस्या है तो राजभवन में शरण ले सकती हैं। उन्हें न्याय जरूर मिलेगा।
मामले में गंभीरता नहीं होती तो कलकत्ता उच्च न्यायालय इसका स्वत: संज्ञान नहीं लेता। उच्च न्यायालय दो अलग-अलग मामलों की सुनवाई कर रहा है। पहला स्थानीय लोगों की जमीन हड़पने का है, और दूसरा स्थानीय महिलाओं के यौन उत्पीड़न का। लेकिन पुलिस प्रशासन का रवैया देखिए तो साफ हो जाएगा कि संदेशखालि कांड की सही तरीके से जांच और कानूनी प्रक्रिया पूरी करना सामान्य तौर पर संभव नहीं हो सकता। शाहजहां शेख गिरफ्तार नहीं हुआ है तो क्यों? मामले के दो प्रमुख आरोपी शिबू हाजरा और उत्तम सरदार सहित 18 गिरफ्तार हो चुके हैं। हालांकि आसानी से गिरफ्तार नहीं हुए। महिलाओं के प्रदर्शन और बवंडर के बाद तृणमूल कांग्रेस ने उत्तम सरदार को उत्तर 24 परगना जिला परिषद सदस्य और तृणमूल के अंचल अध्यक्ष के पद से 6 साल के लिए निलंबित कर दिया। उसके बाद ही पुलिस उसे गिरफ्तार करने का साहस कर सकी।
लोग बता रहे हैं कि तृणमूल कांग्रेस के लोग घर-घर जाकर देखते थे और जिस घर में सुंदर लड़कियां या महिलाएं होतीं उन्हें बुला लिया जाता था या उठा कर ले जाया जाता था। पार्टी कार्यालय में भी उनका यौन शोषण किया जाता था। पांच जनवरी को जब ईडी द्वारा राशन घोटाले से जुड़े मामले में शाहजहां शेख के संदेशखालि स्थित आवास पर छापेमारी के दौरान भारी संख्या में लोगों ने ईडी की टीम के साथ केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल के जवानों पर हमले कर दिए और शहर से लगभग 74 किमी. दूर गांव से भागने तक मारपीट की। शाहजहां के फरार होने की खबर से लोगों का साहस बढ़ा और वे सड़कों पर उतर कर विरोध करने लगे जिनमें महिलाएं भी शामिल थीं। वस्तुत: 5 जनवरी को हुए हमलों के 33 दिनों बाद 7 फरवरी को संदेशखालिी में फिर हंगामा हुआ।
केंद्र द्वारा बंगाल को बकाया फंड से वंचित करने का आरोप लगाकर तृणमूल ने संदेशखालि के त्रिमोहानी बाजार में जनजाति समुदाय के एक वर्ग के साथ एक रैली निकाली थी। इसमें शेख शाहजहां के जयकारे लगाने के बाद ही हंगामा शुरू हुआ? और लोग तृणमूल के विरु द्ध नारे लगाने लगे। आक्रोशित महिलाओं ने शिबू हाजरा के खेत और पॉल्ट्री फॉर्म में आग भी लगा दी। लोग बता रहे हैं कि पॉल्ट्री फॉर्म ग्रामीणों की जमीन छीनकर अवैध तरीके से बनाया गया था।
ममता बनर्जी ने विधानसभा में बोलते हुए कहा कि संदेशखालि आरएसएस का गढ़ है। वहां पहले भी दंगे हुए थे। क्या आरएसएस में वहां शाहजहां शेख और तृणमूल के लोगों को सत्ताबल की बदौलत जमीन हड़पने और महिलाओं के वीभत्स यौन उत्पीड़न के लिए रास्ता तैयार किया? वहां जाकर कोई भी देख सकता है कि 24 परगना का संदेशखालि ही नहीं आसपास बांग्लादेश से लगे सीमावर्ती इलाके में भारी आबादी होने के बावजूद अनुसूचित जाति के लोग किस तरह की स्थितियों का सामना कर रहे हैं। संदेशखालि एक दर्जन से ज्यादा उन विधानसभाओं की श्रेणी में है जो भारत-बांग्लादेश से लगा है जहां घुसपैठियों की संख्या हमेशा रही है। क्षेत्र के अपराध का विश्लेषण करें तो उनमें गौ तस्करी से लेकर मादक पदाथरे और हथियारों के साथ मानव बिक्री के कारोबार शामिल हैं, और इनमें एक समुदाय के लोग सबसे ज्यादा आरोपी हैं।
सही है कि पिछले कुछ वर्षो में वहां के लोगों का आरएसएस की ओर आकषर्ण बढ़ा है तो इसलिए कि सरकार उन्हें सुरक्षा देने में सफल नहीं रही। लेकिन आरएसएस कार्यकर्ताओं को भी शाहजहां जैसे बाहुबलियों के उत्पीड़न का सामना करना पड़ा है और पुलिस प्रशासन उन्हें सुरक्षा देने में विफल रहा है। महिलाओं के साथ रेप और उत्पीड़न घटनाओं के खिलाफ आवाज उठाने के कारण आरएसएस कार्यकर्ताओं को भी हमलों, हत्याओं और मुकदमों का शिकार होना पड़ा है।
यह बात सही है कि 2007 में वहां भीषण दंगा हुआ था जिसमें सीमा सुरक्षा बल को बुलाना पड़ा था। उसमें भी ज्यादातर आरोपी एक ही समुदाय के थे जिनमें घुसपैठिए भी शामिल थे। बहरहाल, हिंसा की घटनाओं की जांच के लिए डीआइजी स्तर की एक महिला अधिकारी के नेतृत्व में 10 सदस्यीय टीम का गठन किया है। किंतु पुलिस कह रही है कि उसे केवल चार शिकायतें मिलीं जिनमें रेप का आरोप है ही नहीं। इसके बाद पुलिस प्रशासन से कोई क्या उम्मीद कर सकता है। पुलिस की घेराबंदी के कारण संदेशखालि में किसी के लिए प्रवेश कर पाना असंभव है। राजनीतिक दलों के नेताओं तक को वहां जाने के लिए न्यायालय का सहारा लेना पड़ा है, और वो भी सीमित क्षेत्र में जा पा रहे हैं। पुलिस के लिए इससे शर्मनाक क्या हो सकता है कि शाहजहां आज तक कानून के शिकंजे से बाहर है। उच्च न्यायालय ने यह प्रश्न भी उठाया कि क्या उसे संरक्षण मिल रहा है? यह लंबे जन संघर्ष का विषय बन चुका है।
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