उपलब्धि : भारत की सफल कूटनीति का असर

Last Updated 14 Feb 2024 01:31:11 PM IST

कतर की जेल में बंद भारतीय पूर्व नौसेनिकों की 18 महीने बाद जेल से रिहाई की सोमवार को जैसे ही खबर आई तो सारा देश खुशी से झूम उठा।


उपलब्धि : भारत की सफल कूटनीति का असर

कुछ समय पहले इन्हें मिली मौत की सजा को अलग-अलग अवधि की जेल की सजा में बदल दिया गया था पर देश प्रार्थना कर रहा था कि ये पूर्व नौसैनिक सकुशल वापस आ जाएं।

बेशक, इसे नरेन्द्र मोदी सरकार की विदेश नीति की बड़ी सफलता माना जाएगा। इस तरह भारत की कुशल विदेश नीति को सारे संसार ने देखा और देखता ही रह गया। अमूमन अरब देशों के शेख सामान्य तौर पर जासूसी के आरोप में सजाप्राप्त लोगों की सजा माफ नहीं करते। मोदी सरकार के 2014 में गठन के बाद से भारत के अरब देशों के साथ संबंध लगातार सुधर रहे हैं। इसी को भारतीय नौसैनिकों की रिहाई और घर वापसी के रूप में देखा जाना चाहिए। कुछ ही दिनों के बाद अबू धाबी में सनातन संस्कृति का भव्य मंदिर भी दुनिया देखेगी। ‘अगर मोदी नहीं होते तो हम हिन्दुस्तान की सरजमीं पर आज नहीं खड़े हो पाते’।

अपनी रिहाई से खुश एक पूर्व नौसैनिक ने भारत आने पर भारत मां की जय बोलते हुए कहा कि नरेन्द्र मोदी ने खुद हस्तक्षेप नहीं किया होता तो हमारी रिहाई संभव नहीं थी।’ यह बड़ी उपलब्धि भारत के शक्तिशाली नेतृत्व का प्रमाण है। आज प्रधानमंत्री मोदी की विदेश नीति का डंका पूरे विश्व में बज रहा है। देश किस तेजी से बदल रहा है, यह जानने के  लिए जेएनयू की पूर्व छात्र नेता शेहला राशिद के बयान को देखना होगा। वो एक दौर में देश विरोधी शक्तियों के साथ जुड़ी थीं। उन्होंने पूर्व नौसैनिकों की रिहाई के बाद सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, ‘मौत की सजा से घर वापसी तक : यह भारत के लिए बड़ी कूटनीतिक जीत है और इस तथ्य का प्रमाण है कि हमारी विदेश नीति सक्षम हाथों में है। प्रधानमंत्री मोदी और विदेश मंत्री डॉ. जयशंकर ने फिर असंभव को संभव कर दिखाया है। शांत रहें और विश्वास रखें। कतर से लौटे पूर्व नौसैनिकों के परिवारों को बधाई।’ तो आप समझ गए होंगे कि किस तरह से देश बदल रहा है।

दरअसल, कतर के दोहा के अल दहरा ग्लोबल टेक्नोलॉजीज के साथ काम करने वाले भारतीय नौसेना के इन पूर्व जवानों को पिछले साल 28 दिसम्बर को कतर की अपीली अदालत ने राहत दी थी। अक्टूबर, 2023 में इन्हें मिली मौत की सजा को कम करते हुए 3 से 25 साल तक की अलग-अलग अवधि के लिए जेल की सजा सुनाई थी। भारतीयों की रिहाई से साफ है कि अब जहां पर भी भारतवंशी या भारतीय संकट में होते हैं, तो भारत सरकार हाथ पर हाथ धर कर नहीं बैठती। रूस-यूक्रेन जंग के कारण हजारों भारतीय मेडिकल छात्र यूक्रेन में फंस गए थे। उन्हें भारत सरकार सुरक्षित स्वेदश लेकर आई।

भारत के हजारों विद्यार्थी यूक्रेन में मेडिकल, डेंटल, नर्सिंग और दूसरे पेशेवर कोर्स कर रहे थे। ये रूस-यूक्रेन जंग को देखते हुए वहां से निकल कर स्वदेश आना चाहते थे। पहले तो किसी को समझ ही नहीं आ रहा था कि इतनी अधिक संख्या में यूक्रेन की राजधानी कीव और दूसरे शहरों में पढ़ रहे भारतीय छात्रों  को स्वदेश कैसे लाया जाएगा पर इच्छाशक्ति से सब संभव हुआ। पिछले साल अफ्रीकी देश सूडान में सेना और अर्धसैनिक बल के बीच भीषण गृह युद्ध के चलते वहां हालात बदतर हो गए थे। ऐसे में वहां फंसे हजारों भारतीयों को सुरक्षित स्वदेश लाने को लेकर सारा देश चिंतित था। प्रधानमंत्री मोदी ने सूडान में फंसे भारतीयों को जल्द से जल्द निकासी के लिए विदेश मंत्रालय के अधिकारियों को निर्देश दिए। मतलब सरकार एक्शन मोड में आ गई। कुछ ही हफ्तों में वहां से सारे के सारे भारतीय सुरक्षित स्वदेश आ गए।

अब अफगानिस्तान में गृह युद्ध के दिनों को याद कर लें। भारतीय वायु सेना और एयर इंडिया के विमान लगातार  अफगानिस्तान से भारतीयों को लेकर स्वदेश आ रहे थे। काबुल में जिस तरह के हालात बन गए थे उनमें सारे भारतीयों को लेकर आना कोई छोटी बात नहीं थी। इनको ताजिकिस्तान के रास्ते दिल्ली या देश के अन्य भागों में लाया जा रहा था। कुछ विमान कतर के रास्ते भी आ रहे थे। भारत के अफगानिस्तान में हजारों करोड़ के जो दर्जनों प्रोजेक्ट चल रहे थे, वे भी अशांत माहौल में फंस गए। इनसे हजारों भारतीय जुड़े थे।

इन्हीं भारतीयों को निकाला जा रहा था। भारत की तरफ से अफगानिस्तान बांध से लेकर स्कूल, बिजलीघर से लेकर सड़कें, काबुल की संसद से लेकर पावर इंफ्रा प्रोजेक्ट्स और हेल्थ सेक्टर समेत न जाने कितनी परियोजनाओं को तैयार किया जा रहा था। प्रधानमंत्री मोदी ने अफगानिस्तान से भारतीयों की सुरक्षित वापसी सुनिश्चित करने और वहां से भारत आने के इच्छुक सिखों और  हिन्दुओं को शरण देने के अधिकारियों को निर्देश भी दे दिए। अफगानिस्तान की सत्ता पर तालिबान के नियंत्रण के बाद भारत सरकार सक्रिय हो गई थी। जाहिर है, ये सब कदम उठाने के बाद भारत सरकार का इकबाल बुलंद हुआ। कह सकते हैं कि अब विदेश मंत्रालय हमेशा सक्रिय रहता है। अगर संकट भारत से बाहर रहने वाले भारतीयों पर आता है, तो फिर इसके काम करने की गति कई गुना बढ़ जाती है।

डॉ. आर.के. सिन्हा


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