हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी : सियासी बवंडर का सच

Last Updated 13 Feb 2024 01:12:57 PM IST

झारखंड में चंपई सोरेन विश्वास मत प्राप्त कर चुके हैं। हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के पहले और मुख्यमंत्री के रूप में चंपई सोरेन के शपथ ग्रहण तक और उसके बाद जिस तरह के राजनीति हुई उसका गहराई से विश्लेषण किया जाना जरूरी है। पद पर रहते हुए प्रवर्तन निदेशालय या ईडी द्वारा गिरफ्तार किए जाने वाले हेमंत सोरेन पहले मुख्यमंत्री बन गए हैं।


हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी, सियासी बवंडर का सच

चंपई सोरेन के शपथ ग्रहण के बावजूद विधायकों को हैदराबाद ले जाने का अर्थ क्या था? हेमंत सोरेन भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार हुए और उन्हें इसका आभास भी था। बावजूद त्यागपत्र देकर किसी दूसरे को मुख्यमंत्री नहीं बनने दिया। इसका मतलब उनकी पार्टी और गठबंधन में ही द्वंद्व था। उनकी गिरफ्तारी आसानी से हुई भी नहीं। स्वयं को निर्दोष साबित करने के लिए उन्होंने वीडियो भी जारी किया। गिरफ्तारी के पहले के इस वीडियो संदेश में उन्होंने स्वयं को निर्दोष बताते हुए कहा था कि उन्हें पता है कि ज्यादा समय नहीं मिलेगा। सच यह है कि उन्होंने ईडी की कार्रवाई और गिरफ्तारी से बचने के लिए जितना संभव था वह सब किया।

दिल्ली स्थित अपने घर की तलाशी के मामले को उन्होंने अनुसूचित जाति-जनजाति कानून के तहत रांची में ईडी टीम के विरुद्ध मुकदमा भी दर्ज कर दिया। उस मुकदमे में आरोप लगाया गया कि परेशान करने और छवि खराब करने के लिए तलाशी हुई थी। आखिर रांची और दिल्ली स्थित उनके घर की छापामारी में अनुसूचित जाति-जनजाति कानून कहां से आ गया? ईडी की मानें तो उन्होंने गिरफ्तारी टालने का प्रयास किया और गिरफ्तारी मेमो पर भी हस्ताक्षर करने से मना कर दिया था।

उन्होंने ईडी के सम्मन के विरुद्ध झारखंड उच्च न्यायालय में भी याचिका दायर की, जिसमें कहा कि एजेंसी जांच में मदन मदद न करने के आरोप में गिरफ्तार कर रही है जबकि सर्वोच्च न्यायालय का आदेश है कि इस आधार पर किसी को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता। ईडी का कहना है कि उन्हें 8:30 बजे रात्रि में गिरफ्तारी मेमो दिया गया, लेकिन उन्होंने राज्यपाल को त्यागपत्र सौंपने के बाद ही मेमो पर हस्ताक्षर किए। उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शक्ति के आधार पर स्वयं को बचाने का पूरा प्रयास किया। हेमंत की गिरफ्तारी रांची जमीन घोटाला मामले में हुई है। इसमें ईडी ने उन्हें पूछताछ के लिए 10 सम्मन भेजे। सातवीं बार सम्मन भेजते समय ईडी ने लिखा कि या तो आप पूछताछ के लिए आएं या हम आपके पास पहुंचेंगे। उसके बाद आठवें सम्मन में हेमंत ने ईडी को पूछताछ के लिए समय दिया था। 20 जनवरी को ईडी ने उनसे 7 घंटे तक पूछताछ की। उसके बाद 31 जनवरी को उनसे दोबारा पूछताछ हुई।

29 जनवरी को उनके दिल्ली और झारखंड आवास तथा झारखंड भवन में छापेमारी की गई पर हेमंत कहीं नहीं मिले। ईडी ने उनके घर से एक बीएमडब्ल्यू कार तथा 36 लाख नगद बरामद कर ले जाने की बात कही है। इसके पूर्व साहिबगंज में 1250 करोड़ के अवैध पत्थर खनन मामले में भी ईडी ने हेमंत से 17 नवम्बर 2022 को 9 घंटे की पूछताछ की थी। इसमें उनसे उनकी संपत्ति का ब्यौरा मांगा था। राजद और कांग्रेस सहित कई विपक्षी दल इसे जानबूझकर राजनीतिक प्रतिशोध के लिए बनाया गया फर्जी मामला बता रहे हैं। हेमंत दोषी हैं या नहीं यह तो न्यायालय के फैसले से तय होगा किंतु अभी तक की जांच और सामने आए तथ्य बहुत बड़े भ्रष्टाचार के प्रमाण देते हैं।

ध्यान रखिए, रांची में सेना के उपयोग करने लायक 4.55 एकड़ जमीन की गैरकानूनी तरीके से खरीद-बिक्री के मामले में दर्ज प्राथमिक से यह जांच शुरू हुई थी। इस मामले को हाथ में लेने के बाद ही ईडी ने जांच आगे बढ़ाई। ईडी ने जिस मामले पर सख्ती की वह रांची के बरियातू थाना क्षेत्र में स्थित अत्यंत महंगी भूमि से संबंधित है। आरोप है कि खरीद-बिक्री में अवैध तरीके इस्तेमाल हुए और दस्तावेजों में हेराफेरी की गई।

जांच में पाया गया है कि रांची सहित झारखंड में अनेक जगह भू माफियाओं का एक बड़ा तंत्र काम कर रहा है जो नेताओं, सरकारी अधिकारियों और प्रभावशाली व्यक्तियों की मिलीभगत से दस्तावेजों में फेरबदल कर अवैध तरीके से भूमि बेच रहा है। इनमें वह जमीन भी शामिल है जिनकी खरीद-बिक्री कानूनन नहीं हो सकती। ईडी ने हेमंत की गिरफ्तारी के पहले 41 स्थानों पर छापामारी और पांच जगह पर सर्वे किया। छापेमारी में भू राजस्व विभाग के जाल मोहरे, जाली भू दस्तावेज, धोखेबाजों के बीच अपराध की कमाई के बंटवारे के प्रमाण, धोखाधड़ी करने से संबंधित तस्वीरें तथा अधिकारियों को रित देने के प्रमाण आदि जुटाए गए। जो नेता स्वयं भ्रष्टाचार के आरोपों में फंसे हैं या जेल जा चुके हैं वह सब सोरेन के साथ खड़े हैं।

निस्संदेह, भारतीय जांच एजेंसियां अपनी शक्ति का दुरु पयोग भी करती रही हैं और सरकारी विरोधियों के विरु द्ध इनका इस्तेमाल भी। किंतु मामले के तथ्य जानने के बाद यह निष्कर्ष नहीं निकलता की हेमंत सोरेन पूरी तरह पाक साफ हैं और उनकी गिरफ्तारी झारखंड मुक्ति मोर्चा को कमजोर कर सत्ता पाने के लिए की गई है। राजनीतिक संकट केवल इस कारण पैदा हुआ क्योंकि हेमंत सोरेन अंत अंत तक मुख्यमंत्री पद छोड़ने को तैयार नहीं थे।

झारखंड राज्य के रूप में अस्तित्व में आने के साथ ही सरकारों के असमय अंत के लिए कुख्यात है इसलिए भय पैदा हो रहा था कि किसी अन्य के हाथों नेतृत्व सौंपने पर सरकार गिर सकती है। भाजपा के अधिकृत प्रवक्ता स्पष्ट कह रहे थे कि उन्हें जनता ने विपक्ष में बैठने का जनादेश दिया है और उनके पास सरकार बनाने का अंक गणित नहीं है। भाजपा ने सरकार बनाने का दावा भी नहीं किया। पूरा संकट आपकी अपनी भूमिका से हुआ। अगर झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस के विधायकों पर पूरी तरह विश्वास होता कि ये नहीं टूटेंगे तो शपथ ग्रहण के बावजूद इन्हें हैदराबाद ले जाने के आवश्यकता पैदा ही नहीं होती। हेमंत सोरेन पर न्यायालय अंतिम फैसला क्या देता है इसे अभी परे रखते है।  

यह भारतीय राजनीति की त्रासदी है कि जिनने जनजातियों के साथ अन्याय, उनका उत्पीड़न, शोषण दमन की आवाज उठाकर आंदोलन किया, अलग झारखंड के लिए लड़ाइयां लड़ी, उनमें से अनेक या उनके वंशज, रिश्तेदार जहां मौका मिला सत्ता और प्रभाव का इस्तेमाल कर जितना संभव हुआ खुले हाथों से लूटा। जो लोग सोरेन को निर्दोष बता रहे हैं उनमें से ज्यादातर भ्रष्टाचार के आरोपी हैं और वह सब झारखंड की आम जनता के साथ धोखा करने वालों के पक्ष में खड़े हैं।

अवधेश कुमार


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