वैश्विकी : पुतिन-टकर कार्लसन इंटरव्यू

Last Updated 11 Feb 2024 01:49:33 PM IST

अमेरिका के जाने-माने न्यूज एंकर टकर कार्लसन ने रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के साथ लंबा साक्षात्कार किया जिसकी दुनिया भर में चर्चा है।


वैश्विकी : पुतिन-टकर कार्लसन इंटरव्यू

ट्वीटर (एक्स) पर करीब 15-20 करोड़ लोगों ने इस साक्षात्कार को देखा। यह सोशल मीडिया की ताकत को दर्शाता है जिसने न्यूज प्रिंट और टेलीविजन चैनलों को पीछे छोड़ दिया है। अमेरिका की मुख्यधारा के मीडिया में राष्ट्रपति पुतिन को खलनायक और युद्ध-अपराधी के रूप में दर्शाया जाता है जो समकालीन विश्व के नेताओं की तुलना में अधिक परिपक्व और सुलझे हुए नेता के रूप में सामने आते हैं। पुतिन ने कई रहस्योद्घाटन किए जिनसे पता चलता है कि इन्होंने शीतयुद्ध के बाद के कालखंड में अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ मेल-मिलाप की बार-बार कोशिश की। दुर्भाग्य से अमेरिकी प्रशासन शीतयुद्ध की मानसिकता से ग्रसित रहा तथा उसने सोवियत संघ के विघटन के बाद भी रूस को निशाने पर रखा। यूक्रेन युद्ध की यही पृष्ठभूमि थी।

साक्षात्कार से यह भी खुलासा हुआ कि अमेरिकी राष्ट्रपति सर्वशक्तिमान नहीं हैं बल्कि अमेरिकी तंत्र में सक्रिय अदृश्य शक्तियों के हाथों की कठपुतली हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति स्वयं जिन बातों को समझता है वह उनपर अमल करने में असमर्थ है। ये अदृश्य शक्तियां हथियार बनाने वाली कंपनियां और सीआईए जैसी खुफिया एजेंसियां हैं।  पुतिन के अनुसार उन्होंने अपने कार्यकाल के आरंभ में ही राष्ट्रपति बिल क्लिंटन से पेशकश की थी कि रूस पश्चिमी सैन्य संगठन नाटो में शामिल हो सकता है।

इस पर क्लिंटन ने कहा कि यह अच्छा विचार है, लेकिन कुछ घंटों बाद कहा कि उनकी टीम का मानना है कि ऐसा संभव नहीं है। पुतिन ने दूसरा उदाहरण देते हुए कहा कि उन्होंने क्लिंटन से शिकायत की थी कि अमेरिकी खुफिया एजेंसियां चेचन्या में आतंकवादी गुटों को बढ़ावा दे रहीं हैं। इस पर क्लिंटन ने कहा कि ऐसा नहीं हो सकता। पुतिन ने अपने आरोपों के समर्थन में जब सबूत रखे तो क्लिंटन ने कहा कि वह खुफिया एजेंसियों के कान खींचेंगे।

लेकिन बाद में अमेरिका ने अपने रवैये में कोई बदलाव नहीं किया। रूस के अधिकारियों ने जब सीआईए से संपर्क किया तब उन्हें उत्तर मिला कि ‘हम किसी देश में विपक्षी गुटों के साथ संवाद करते हैं और यह सही नीति है।’ पुतिन का यह कथन रूस ही नहीं बल्कि भारत जैसे किसी देश के लिए भी चिंता की बात है। अमेरिका ने मिसाइल विरोधी पण्राली और यूरोप में नए सुरक्षा ढांचे के बारे में रूस की पेशकश को भी नजरअंदाज कर दिया। इस पूरे घटनाक्रम का नतीजा यह हुआ कि पश्चिम के प्रति पुतिन का मोहभंग हो गया तथा रूस ने पश्चिम की चुनौती का सामना करने के लिए सख्त रवैया अपनाया। इसके पहले कि यूक्रेन के जरिये रूस के रणनीतिक हितों पर कुठाराघात होता पुतिन ने विशेष सैन्य अभियान शुरू कर दिया जो आज तक जारी है।

राष्ट्रपति पुतिन ने ब्रिक्स देशों की बढ़ती हुई ताकत का जिक्र किया तथा अपनी अध्यक्षता के दौरान इस भूमिका की भी चर्चा की। भारत के लिए गौर करने वाली बात यह है कि राष्ट्रपति पुतिन रूस और चीन के संबंधों को सबसे अधिक महत्त्व देते हैं। उन्होंने कहा कि ‘चीन की विदेश नीति आक्रामक नहीं है बल्कि वह समझौता करने पर जोर देती है।’ यह कथन भारत के लिए चिंता का विषय हो सकता है। पूर्वी लद्दाख में चीन की आक्रामक रुख का सामना कर रहा भारत इस कथन से सहमत नहीं हो सकता। वैसे पुतिन हाल के दिनों में भारत के सर्वागीण प्रगति और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व की सराहना करते रहे हैं। यह निष्कर्ष निकालना उचित होगा कि पुतिन चीन और भारत दोनों के साथ रणनीतिक सहयोगी का संबंध रखना चाहते हैं। वह इन दोनों पड़ोसी देशों के संबंध में सुधार का माध्यम बन सकते हैं। अमेरिकी चुनौती के मद्देनजर रूस की यह बाध्यता है कि वह चीन को अपने साथ रखे। अंतरराष्ट्रीय राजनीति की इस हकीकत के मद्देनजर भारत को अपनी विदेश नीति का निर्धारण करना होगा।

साक्षात्कार से यह आशा जगती है कि यूक्रेन संघर्ष आने वाले दिनों में व्यापक रूप नहीं लेगा। अमेरिका और पश्चिमी देशों ने यदि गैर-जिम्मेदाराना रवैया नहीं अपनाया तो कूटनीति के जरिये यूक्रेन संघर्ष का समाधान संभव है।

डॉ. दिलीप चौबे


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