रक्षा बजट : सुरक्षा होगी चाक-चौबंद
साल 2024-25 के अंतरिम बजट (Interim Budget 2024-25) में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन (Nirmala Sitharaman) ने रक्षा क्षेत्र को बड़ी सौगात दी है।
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रक्षा क्षेत्र में देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए आयात घटाने के साथ-साथ शोध एवं विकास को बढ़ाने के लिए नरेन्द्र मोदी सरकार ने जो पहल की थी अंतरिक बजट में उसकी छाप भी साफ तौर पर देखी जा सकती है। बजट में डिफेंस सेक्टर को मजबूत करने के लिए विकास और अनुसंधान पर विशेष जोर दिया गया। आगामी वित्त वर्ष के लिए डिफेंस सेक्टर को रिकॉर्ड 6. 24 लाख करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं जो पिछले बजट के मुकाबले 0.27 लाख करोड़ रुपए (तकरीबन 13 फीसद) अधिक है। पिछले वर्ष यह राशि 5.94 लाख करोड़ रुपए थी। यह देश के कुल बजट का आठ फीसद है।
यह पहला अवसर है जब रक्षा बजट में दोहरे अंकों की वृद्धि हुई है। उत्तर-पूर्व और हिन्द महासागर में चीन की बढ़ती आक्रामकता तथा पश्चिमी सीमा पर पाकिस्तान की चुनौतियों के बीच सामरिक हलकों में इस बात की उम्मीद की जा रही थी कि अंतरिम बजट में रक्षा क्षेत्र के लिए कुछ खास प्रावधान किए जा सकते हैं। बजट प्रावधानों से साफ है कि भू-राजनीतिक परिदृश्य में हो रहे पर्वितनों के दृष्टिगत भारत अपनी सुरक्षा तैयारियों के प्रति कितना गंभीर है। इसके अतिरिक्त पिछले छह-सात वर्षो से जिस तरह से रक्षा बजट में लगातार वृद्धि हुई है उससे साफ है कि भारत रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता एवं निर्यात को बढ़ावा देने के दोहरे उद्देश्य के साथ आगे बढ़ रहा है।
साल 2020 में जनवरी के शुरू में संसद की (रक्षा पर) स्टैंडिंग कमेटी ने रक्षा क्षेत्र की जरूरतों को ध्यान में रखकर ठीक ढंग से बजट का आवंटन न किए जाने को लेकर सरकार की आलोचना की थी। इसके बाद से भारत सरकार अपने रक्षा बजट को लगातार बढ़ा रही है। पिछले पांच वर्षो के बजट पर नजर डालें तो सकल रक्षा बजट (बीई) में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। साल 2021-22 में 4.78 लाख करोड़, 2022-23 में 5.25 लाख करोड़, 2023-24 में 5.94 लाख करोड़, 2023-24 में 5.94 लाख करोड़ व साल 2024-25 के लिए अंतरिम बजट में 6.24 लाख करोड़ रुपए का आंवटन रक्षा क्षेत्र के लिए किया गया है।
पिछले एक दशक में भारत एशिया-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा सैन्य खर्च करने वाला देश हो गया है। दो-दो परंपरागत शत्रुओं के बीच अवस्थित होने के कारण भारत की सुरक्षा चिंताओं के लिए यह जरूरी भी था। चीन लगातार अपनी सेनाओं का आधुनिकीकरण कर रहा है। वह रोबोट आर्मी और अनमैन्ड व्हीकल्स जैसे विकल्पों को अपना रहा है। अमेरिका के बाद चीन दूसरा ऐसा देश है जो डिफेंस सेक्टर पर सबसे ज्यादा खर्च करता है। उसने साल 2024 के बजट में रक्षा क्षेत्र में 15.4 प्रतिशत का इजाफा कर 1.45 ट्रिलियन युआन ( करीब 224 बिलियन डॉलर) का आवंटन किया था जो भारत के रक्षा बजट से तीन गुना अधिक है।
भारत भी जल, थल और नभ सेनाओं के आधुनिकीकरण की दिशा में प्रयासरत है। ऐसे में रक्षा मंत्रालय के लिए पर्याप्त बजट की मांग लगातार उठती रही है। अभी भारत अपनी जीडीपी का 2 फीसद रक्षा क्षेत्र में खर्च करता है जबकि विशेषज्ञों का मानना है कि यह कम से कम 3 फीसद होना चाहिए। अमेरिका अपनी जीडीपी का कुल 4 फीसद जबकि चीन अपनी जीडीपी का 3 फीसद रक्षा पर खर्च करता है। हालांकि, रक्षा मंत्रालय को आपातकालीन खरीद के लिए आवंटन का प्रावधान है जिसके जरिए वह बजट के अतिरिक्त भी धन खर्च कर सकता है। अंतरिम बजट में सीमावर्ती इलाकों में ढांचागत सुधार पर भी ध्यान फोकस किया गया है। ढांचागत सुधार और विकास के लिए सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) को 6,500 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं जो पिछले साल की तुलना में 30 प्रतिशत अधिक है।
भारत चीन के साथ 3,488 किमी सीमा साझा करता है। ये सीमा जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश से होकर गुजरती है। ऐसे में बीआरओ के द्वारा यहां कई तरह के निर्माण कार्यों की योजना बनाई गई है। खासतौर से 13700 फीट की ऊंचाई पर लद्दाख में न्योमा एयर फील्ड का विकास, अंडमान-निकोबार द्वीप में स्थायी पुल कनेक्टिविटी, हिमाचल प्रदेश में शिकू ला सुरंग व अरूणाचल प्रदेश में नेचिफू सुरंग सहित अन्य परियोजनाओं को विकसित किए जाने की योजना है। कुल मिलाकर कहा जाए तो साल 2024-25 के लिए बजट में रक्षा क्षेत्र के लिए जो 13 फीसद का इजाफा किया गया है वो बहुत ज्यादा नहीं तो कम भी नहीं है। इससे सेना के आधुनिककरण की दिशा में किए जा रहे प्रयास तो सफल होंगे ही साथ ही नए हथियारों की खरीद को भी बल मिलेगा। उम्मीद है रक्षा बजट में 13 फीसद की वृद्धि से भारत नई खरीदारी की दिशा में आगे बढ़ सकेगा।
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