नवीकरणीय ऊर्जा : अपार संभावनाओं का दोहन संभव

Last Updated 09 Dec 2023 01:27:53 PM IST

जलवायु परिवर्तन से निपटने की दिशा में ठोस नीतियां बनाने और निर्धारित पर्यावरणीय लक्ष्यों को हासिल करने में भारत की प्रतिबद्धता की दुनिया भर में सराहना होती रही है।


नवीकरणीय ऊर्जा : अपार संभावनाओं का दोहन संभव

बीते दिनों आई एक और रिपोर्ट इस बात की पुष्टि करती है। दरअसल, नवीकरणीय ऊर्जा: वैश्विक स्थिति रिपोर्ट-2022 बताती है कि भारत 2021 में नवीकरणीय ऊर्जा के विकास के मामले में चीन और रूस के बाद तीसरे स्थान पर रहा। उल्लेखनीय है कि 2020 में भारत चौथे पायदान पर रहा था। जाहिर है, नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में भारत की धमक लगातार बढ़ती जा रही है। साथ ही,भारत ‘कार्बन शून्यता’ और ‘सतत विकास’ की राह पर भी तेजी से आगे बढ़ रहा है।

वर्ष 2015 में पेरिस में ‘अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन’ का नेतृत्व करने की बात हो या ग्लासगो जलवायु सम्मेलन (कॉप-26) में 2070 तक शून्य कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य घोषित करने की, भारत अपनी पर्यावरणीय जिम्मेदारियों को बखूबी समझता रहा है। यही वजह है कि देश में जीवाश्म ईधन की बजाय ऊर्जा के गैर-परंपरागत (नवीकरणीय) ऊर्जा स्रेतों के इस्तेमाल को बढ़ावा मिल रहा है। केंद्र सरकार की सकारात्मक पहल का नतीजा है कि रेलवे, बस स्टॉप और हवाईअड्डे भी नवीकरणीय ऊर्जा के दायरे में लाए जा रहे हैं।

जाहिर है, ये उदाहरण ऊर्जा के मामले में आत्मनिर्भर होते भारत की तस्वीर पेश करते हैं। प्राकृतिक रूप से भारत अक्षय ऊर्जा के मामले में अत्यंत धनी देश रहा है। उष्णकटिबंधीय जलवायु होने के कारण भारत में सौर ऊर्जा और विशाल समुद्रीतटीय क्षेत्र होने के कारण पवन और ज्वारीय तरंगों की प्रबलता के कारण ज्वारीय ऊर्जा तथा कृषि एवं पशुपालन का लंबा इतिहास होने के कारण बायोगैस जैसे अक्षय ऊर्जा के विविध स्वरूपों के विकास की अपार संभावनाएं हैं। ऊर्जा के ये स्रेत स्वच्छ, प्रदूषणरहित, किफायती और पर्यावरण के लिए अनुकूल माने जाते हैं।

परंपरागत ऊर्जा (गैर-नवीकरणीय) स्रेतों के पर्यावरणीय दुष्प्रभावों और निकट भविष्य में इनके समाप्त होने के भय का समाधान अक्षय ऊर्जा में ही निहित है। भारत आगामी आठ सालों में अपनी स्थापित बिजली का 40 फीसद हिस्सा गैर-जीवाश्म ईधन से प्राप्त करने का लक्ष्य घोषित किया है और 2030 तक कार्बन उत्सर्जन की तीव्रता को 45 प्रतिशत से कम करके 2005 के स्तर से नीचे करने में जुटा है। वहीं, केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के अनुसार, आगामी आठ सालों में भारत में सौर और पवन ऊर्जा की संयुक्त स्थापित क्षमता 51 प्रतिशत हो जाएगी जो अभी 23 प्रतिशत है। स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्र में भारत आकषर्क बाजार में परिणत हो रहा है।

यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जी-7 के देशों से भारत में स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्र में निवेश का आग्रह किया था। वहीं, जी-20 की अध्यक्षता के दौरान प्रधानमंत्री मोदी स्वच्छ ईधन पर जोर देने संबंधी प्रतिबद्धता जता चुके हैं। स्वच्छ ईधन पर जोर देने के लिए पर्याप्त आर्थिक निवेश की जरूरत से इनकार नहीं किया जा सकता है। इस संदर्भ में ‘ब्लूमबर्गएनईएफ’ संस्था का अनुमान है कि भारत को इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए 223 अरब डॉलर के निवेश की आवश्यकता होगी। किसी भी देश के सतत आर्थिक विकास में ऊर्जा संसाधन महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ऊर्जा संसाधन दो प्रकार के होते हैं-परंपरागत (गैर-नवीकरणीय) और गैर-परंपरागत (नवीकरणीय)।

कोयला, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस-परंपरागत ऊर्जा के स्रेत हैं, जो प्राकृतिक प्रक्रिया के तहत हजारों लाखों-वर्षो में तैयार होते हैं। ये धरती पर सीमित मात्रा में उपलब्ध हैं, इसलिए अत्यधिक दोहन के कारण ये बड़ी तेजी से समाप्त भी हो रहे हैं। दूसरी तरफ, जलवायु परिवर्तन, ऊर्जा संकट और प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध खतरे से जूझती दुनिया के समक्ष किफायती और पर्यावरण-अनुकूल नवीकरणीय संसाधन की महत्ता लगातार बढ़ती जा रही है। ऊर्जा के इन स्रेतों का भविष्य तब तक उज्जवल है, जब तक इस सृष्टि का अस्तित्व है। इसमें मुख्यता सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा, भूतापीय ऊर्जा और बायोगैस शामिल हैं।

बढ़ती जनसंख्या की ऊर्जा-मांग को पूरा करने तथा भावी पीढ़ी के लिए उसे संजोए रखने के लिए अक्षय ऊर्जा का प्रयोग आवश्यक है। ऐसे समय में जब कोयला, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस जैसे संसाधन समाप्ति की ओर हैं, तब गैर-परंपरागत ऊर्जा स्रेतों को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर नीतियां बनाकर किफायती दरों पर इसकी सुलभता सुनिश्चित करनी होगी। ऊर्जा संसाधनों के साथ मानव समुदाय का अस्तित्व जुड़ा है। इसके संरक्षण के निमित्त हमें सचेत रहना होगा। ऊर्जा संरक्षण खुशहाल भविष्य की अनिवार्य शर्त है। हालांकि जनभागीदारी के बिना इस लक्ष्य को हासिल करना आसान नहीं होगा।े

आईएएनएस
सुधीर कुमार


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