सामयिक : आय असमानता भी घटे

Last Updated 07 Dec 2023 01:30:02 PM IST

हाल ही में केंद्र सरकार ने 80 करोड़ से अधिक पात्र लोगों को नि:शुल्क खाद्यान्न वितरण की योजना आगामी पांच वर्षो यानी दिसम्बर, 2028 तक के लिए बढ़ा दी है।


सामयिक : आय असमानता भी घटे

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मुताबिक गरीबों के सशक्तिकरण के लिए निशुल्क खाद्यान्न की जरूरत बनी हुई है। पिछले पांच वर्षो में 13 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले हैं, ऐसे में पूरे देश के गरीब लोगों को गरीबी से बाहर निकालने की दिशा में देश आगे बढ़ रहा है।

निस्संदेह मुफ्त खाद्यान्न योजना की जरूरत न केवल गरीबों के सशक्तिकरण के लिए वरन आय असमानता घटाने के लिए आवश्यक बनी हुई है। इस परिप्रेक्ष्य में 6 नवम्बर को संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में गरीबी 2015-16 के मुकाबले 2019-21 के दौरान 25 फीसद से घटकर 15 फीसद पर आ गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि यद्यपि गरीबी निवारण अभियान से भारत में गरीबी घटी है, लेकिन अभी भी भारत में आय की असमानता बढ़ी हुई है। उल्लेखनीय है कि एशिया पेसेफिक ह्यूमन डवलपमेंट रिपोर्ट, 2024 के अनुसार भारत में प्रति व्यक्ति आय वर्ष 2000 में जहां करीब 37 हजार रु पये थी, वहीं वर्ष 2022 में बढ़कर करीब 2 लाख रु पये हो गई है। गौरतलब है कि भारत में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) 10 सितम्बर, 2013 को अधिसूचित हुआ है। इसका उद्देश्य नागरिकों की गरिमापूर्ण जीवन जीने के लिए वहनीय मूल्यों पर गुणवत्तापूर्ण खाद्यान्न की 5 किलोग्राम मात्रा उपलब्ध कराना है।

ऐसे में इसके तहत राशन कार्डधारकों को चावल 3 रु पये, गेहूं 2 रु पये और मोटे अनाज 1 रु पये प्रति किलोग्राम खाद्यान्न वितरण की शुरुआत की गई। कोरोना महामारी के दौरान प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) के तहत मुफ्त अनाज दिए जाने की भी शुरुआत की। कई बार इसकी अवधि बढ़ाने के बाद सरकार ने एक जनवरी, 2023 से दिसम्बर, 2023 तक एक वर्ष के लिए इस योजना को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत अनाज वितरण की योजना में मिलाने का निर्णय किया। सरकार ने चावल और गेहूं को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत क्रमश: तीन रु पये और दो रु पये प्रति किलो की दर से बेचने की बजाय मुफ्त कर दिया।

अब वर्ष 2028 तक एक बार फिर राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) के तहत आने वाली देश की दो तिहाई आबादी को राशन पण्राली के तहत मुफ्त में अनाज देने की भारत की पहल दुनिया भर में रेखांकित की जा रही है। यह कोई छोटी बात नहीं है कि विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष सहित दुनिया के विभिन्न सामाजिक सुरक्षा के वैश्विक संगठनों द्वारा भारत की खाद्य सुरक्षा की जोरदार सराहना की गई है। आईएमएफ द्वारा पिछले दिनों प्रकाशित रिसर्च पेपर में कोविड की पहली लहर 2020-21 प्रभावों को भी अध्ययन में शामिल करते हुए कहा गया है कि सरकार के पीएमजीकेएवाई के तहत मुफ्त खाद्यान्न कार्यक्रम ने कोविड-19 की वजह से लगाए गए लॉकडाउन के प्रभावों की गरीबों पर मार को कम करने में अहम भूमिका निभाई है, और इससे अत्यधिक गरीबी में भी कमी आई है।

आईएमएफ के कार्यपत्र में कहा गया है कि खाद्य सब्सिडी कार्यक्रम कोविड-19 से प्रभावित वित्तीय वर्ष 2020-21 को छोड़कर अन्य वर्षो में गरीबी घटाने में सफल रहा है। दुनिया के अर्थ विशेषज्ञ कहते हुए दिखाई दे रहे हैं कि कोविड-19 के बीच भारत में खाद्यान्न के ऐतिहासिक स्तर पर पहुंचे सुरक्षित खाद्यान्न भंडारों के कारण ही देश के 80 करोड़ लोगों को लगातार मुफ्त खाद्यान्न उपलब्ध होने के कारण वे गरीबी के दलदल में फंसने से बच गए। देश में लगातार बढ़ता हुआ रिकॉर्ड खाद्यान्न उत्पादन भारत की खाद्य सुरक्षा को मजबूती प्रदान कर रहा है। कृषि वर्ष 2022-23 में 3305.34 लाख टन खाद्यान्न उत्पादन का अनुमान था लेकिन वर्ष 2023-24 में गेहूं और दलहन उत्पादन में कमी के संकेत सामने आ रहे हैं। ऐसे में देश में खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ बढ़ती जनसंख्या के लिए अधिक खाद्यान्न की जरूरत है। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार अप्रैल, 2023 में भारत 142.86 करोड़ लोगों की आबादी के साथ चीन को पीछे छोड़ते हुए दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाला देश बन गया है। चूंकि खाद्यान्न के केंद्रीय पूल में सालाना 780 से 800 लाख टन गेहूं और चावल की खरीद होती है। पीडीएस के तहत अनाज देने के लिए 500 से 590 लाख टन अनाज की जरूरत होती है।

वर्ष 2023-24 में केंद्र ने एनएफएसए में 600 लाख टन गेहूं और चावल का आवंटन किया है। ऐसे में जब देश में अधिक खाद्यान्न उत्पादन की जरूरत है, तब खाद्यान्न को बर्बादी से बचाने के लिए खाद्यान्न भंडारण की अधिक क्षमता भी जरूरी है। इस परिप्रेक्ष्य में बीती 31 मई को सरकार द्वारा स्वीकृत नई खाद्यान्न भंडारण क्षमता योजना भी महत्त्वपूर्ण दिखाई दे रही है। देश में एक ओर गरीबों के कल्याण के लिए लागू की गई विभिन्न सरकारी योजनाएं मसलन, सामुदायिक रसोई, ‘वन नेशन, वन राशन’ कार्ड, उज्ज्वला योजना, आयुष्मान भारत पोषण अभियान, समग्र शिक्षा जैसी योजनाएं प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से गरीबी के स्तर में कमी और स्वास्थ्य व भुखमरी की चुनौती को कम करने में सहायक रही हैं। उनके कार्यान्वयन की दिशा में अभी बहुत अधिक कारगर प्रयासों की जरूरत बनी हुई है।

चूंकि कोविड-19 के कारण देश में डिजिटल शिक्षा की जरूरत बढ़ गई है, और इसकी अहमियत रोजगार में भी बढ़ गई है, ऐसे में गरीब एवं कमजोर वर्ग के युवाओं के लिए रोजगार के मौके जुटाने के लिए एक ओर सरकार द्वारा डिजिटल शिक्षा के रास्ते में दिखाई दे रहीं कमियों को दूर करना होगा। दूसरी ओर, कौशल प्रशिक्षण के साथ नई स्किल्स सीखनी होंगी। इस बात पर भी ध्यान दिया जाना होगा कि 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज के साथ उनके जीवन की गुणवत्ता बढ़ाने और उनके लिए रोजगार के अधिक अवसरों के लिए भी अधिक प्रयास करने होंगे। ऐसा होने पर ही गरीबी घटाने और आय में असमानता को कम करने में सफलता प्राप्त की जा सकेगी।

डॉ. जयंतीलाल भंडारी


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