चीन में बच्चों में फैली रहस्यमय बीमारी से भारत को सतर्क रहना होगा

Last Updated 27 Nov 2023 01:04:04 PM IST

एक बार फिर पूरी दुनिया चीन में बच्चों में फैली रहस्यमय बीमारी को लेकर खौफजदा है। चीन पहले की तरह ऐंठा हुआ है कि किसी नई बीमारी के संकेत वहां नहीं मिले हैं। जो हैं सभी पहले से मालूम बैक्टीरिया-वायरस हैं, जो बच्चों में फैल रहे हैं।


चीन में बच्चों में फैली रहस्यमय बीमारी

इधर, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने रहस्यमयी बीमारी के बारे में पूछताछ की तो चीन ने बताया कि कुछ भी असामान्य नहीं है। यह साधारण बीमारी है लेकिन उसकी चालबाजी यहीं समझ आती है कि बीमारी सामान्य है तो क्यों विशेषज्ञ इसकी वजह कोविड पाबंदियों को हटाना,  इंफ्लूएंजा, बच्चों में आम जीवाणु संक्रमण यानी माइकोप्लाज्मा निमोनिया और रेस्पिरेटरी सिंकाइटियल वायरस यानी आरएसवी को बताते हैं?

कहीं चीन बीमारी की सच्चाई जानकर भी दुनिया को दोबारा धोखा देने की फिराक में तो नहीं? क्यों डब्ल्यूएचओ भी लोगों से अपील कर रहा है कि साफ-सफाई पर ध्यान रखें और ास संबंधी किसी भी लक्षण पर तुरंत डॉक्टर से मिलें। कोविड-19 सरीखे लक्षणों वाली नई बीमारी के चीन में जितने भी टेस्ट हुए हैं, उनमें चीन ने कोरोना को खारिज किया है। लेकिन क्यों विशेषज्ञ इतने दिनों के बाद भी किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पा रहे हैं? बीमारी कैसे फैल रही है?

पिछले दो-तीन बरसों में ऐसे क्यों नहीं फैली? इसे लेकर चीन खामोश है। बीती 13 नवम्बर को उसके राष्ट्रीय स्वास्थ्य आयोग ने बताया था कि वहां एक नया संक्रमण तेजी से फैल रहा है। इसकी चपेट में बच्चे ज्यादा आ रहे हैं। उत्तरी भागों में पिछले तीन बरसों के मुकाबले इस अक्टूबर मध्य से इसने एकाएक तेजी से पैर पसारे। इंफ्लूएंजा अमूमन जल्द काबू आता है। यह काबू नहीं आया तो 21 नवम्बर को सार्वजनिक रोग निगरानी पण्राली (प्रोमेड) ने उत्तरी चीन में रहस्यमय न्यूमोनिया जैसी बीमारी सार्वजनिक की। देखते-देखते अस्पताल मरीजों ऐसे भरने लगे जो रुकने का नाम नहीं ले रहे। यहीं से चिंता और चीन के पुराने झूठ और दोगलेबाजी पर ध्यान जाने लगा?

इधर, डब्ल्यूएचओ ने चीन को कहा है कि बीमारी के जोखिम को कम करने की खातिर टीकाकरण और मरीजों से जरूरी दूरी बनाकर क्वारांटाइन करे और ऐहतियातन जांच कराए। मास्क पहनने और नियमित रूप से हाथ धोने जैसी बातों का पालन हो। भारत सतर्क है लेकिन कुछ ज्यादा कहने से गुरेज कर रहा है। यह संक्रमण महामारी बनेगा या नहीं? यह भविष्य के गर्त में है। सही है कि पिछले दो-तीन महीनों से भारत में बुखार का एक अजीब दौर दिख रहा है जिसमें मरीज को पूरी तरह से ठीक होने में 10-15 दिन लगते हैं। ऊपर से पूरा शरीर टूटता है तथा जबर्दस्त कमजोरी के साथ खांसी की शिकायत रहती है।

चीन का रहस्यमय इंफ्लूएंजा भी दूसरे लक्षणों को जोड़ तेज बुखार और प्रभावितों की सांस पर कोरोना सरीखे प्रभाव डाल रहा है। चिकित्सक भी सलाह देते हैं कि ऐसी कोई भी बीमारी या मिलते-जुलते लक्षण दिखें तो तुरंत जांच कराएं क्योंकि संक्रमण तेजी से फैलता है और संपर्कियों को बुरी तरह प्रभावित करता है। वायरल या बैक्टीरियल संक्रमण प्राय: बुखार पैदा करता है जो ठंड या दूसरे मौसम में भी संभव है। इसमें नाक बहना, खांसी, सांस की लघुता यानी शॉर्टनेस ऑफ ब्रीद (एसओबी), उल्टी और दस्त भी हो सकता है। सभी मामलों में जरूरी नहीं कि यही लक्षण हों।

इसके कई दूसरे कारण भी हो सकते हैं जैसे एडेनो वायरस, इंफ्लूएंजा वायरस, एंटरो वायरस, राइनो वायरस और कोविड वायरस जैसे तमाम वायरस जिम्मेदार हैं। वहीं कुछ सामान्य से बैक्टीरिया और कुछ असामान्य बैक्टीरिया जैसे स्पाइरोकेट्स, जिससे सिफिलस और लाइम रोग, तो लेप्टोस्पाइरा, जिससे नाक, मुंह, आंखों में जानवरों के मल-मूत्र से दूषित पानी या मिट्टी के चोटिल त्वचा पर लगने से फैल कर जीवन-घातक बीमारियों में बदल जाता है। डब्ल्यूएचओ ने अजीब चीनी निमोनिया को लेकर मीडिया रिपोर्ट्स और ग्लोबल संक्रामक रोग मॉनिटरिंग सर्विस की रिपोटरे का हवाला दिया है। यह भी कहा है कि ये सभी सांस के संक्रमण के मामले नहीं हैं, जो चिंताजनक है। वैज्ञानिक और रिसर्चर कड़ी निगरानी की बात कहते हैं।

बीजिंग से करीब 700 किमी. दूर लिओनिंग में तेजी से फैल रही बीमारी बच्चों को निशाना बना रही है। हालात बेकाबू हैं। अस्पतालों में जगह नहीं है। स्कूल बंद हो चुके हैं। चीन कबूलता तो है कि बीमारी बढ़ी है लेकिन कोरोना सरीखी रहस्यमयी चुप्पी साधे है। बस, इसी से दुनिया एक बार फिर चीन को शक की निगाह से देख रही है। वहां कोरोना सरीखी पाबंदियां लग चुकी हैं। दुनिया दोबारा कोरोना महामारी के अटैक से डरी हुई है। ऐसे में किसी बड़े खतरे और महामारी को टालने की खातिर मास्क, प्रभावितों से दो गज की दूरी फिर जरूरी है तो क्या बुरा? कोरोना के दौरान और बाद के हालात से दुनिया बड़ा सबक ले चुकी है। ऐसे में वैक्सीन से पहले ही आपसी समझ और परहेज से यह काबू हो जाए तो इससे बेहतर क्या हो सकता है?

ऋतुपर्ण दवे


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