खुशहाली : दीपावली का समृद्धि संदेश सब तक पहुंचे

Last Updated 12 Nov 2023 09:43:58 AM IST

अनेक पवित्र विचारों के साथ दीपावली आर्थिक समृद्धि का भी त्योहार है। यहां बड़ा मुद्दा यह है कि समृद्धि सभी लोगों तक पहुंच सके, सबसे गरीबों तक भी पहुंच सके।


खुशहाली : दीपावली का समृद्धि संदेश सब तक पहुंचे

आर्थिक नीति के केंद्र में दो मूल उद्देश्य होने चाहिए-सभी लोगों की बुनियादी जरूरतें टिकाऊ  तौर पर संतोषजनक ढंग से पूरी हों तथा सभी को उनकी क्षमता और प्रतिभा के अनुकूल रोजगार मिलें। इसके लिए जरूरी है कि विषमताएं कम की जाएं और आर्थिक विकास का सामंजस्य पर्यावरण की रक्षा से नजदीक तौर पर स्थापित किया जाए।

बुनियादी जरूरतों को पूरा करने वाली वस्तुएं और सेवाएं अच्छी गुणवत्ता की और पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होनी चाहिए तथा सभी तक टिकाऊ  तौर पर पहुंचनी चाहिए। पहली बुनियादी जरूरत है साफ पेयजल। इसके लिए साफ पेयजल आपूर्ति के कार्यों के साथ जल-स्रेतों की रक्षा और वष्रा के जल का संरक्षण जरूरी है। दूसरी बुनियादी जरूरत है विभिन्न पोषण तवों से युक्त साफ और स्वस्थ भोजन। इसके लिए ऐसी खेती पर ध्यान देना आवश्यक है जो टिकाऊ  तौर पर पर्याप्त और स्वस्थ खाद्य उपलब्ध करवा सके। अन्य बुनियादी आवश्यकताओं जैसे स्वास्थ्य की रक्षा और सादगी भरी सुरुचि के अनुकूल आवास, कपड़े, बिस्तर, दैनिक जीवन के जरूरी साज-सामान सभी को उपलब्ध होने चाहिए। पूर्ण स्कूली शिक्षा सभी को उपलब्ध होनी चाहिए और इसके अनुकूल पर्याप्त संख्या में जरूरी सुविधाओं से युक्त स्कूल, शिक्षा सामग्री और गुणवत्ता की शिक्षा देने वाले शिक्षक भी उपलब्ध होने चाहिए। स्वास्थ्य और चिकित्सा सेवाएं भी सब को उपलब्ध होनी चाहिए और इसके लिए आवश्यक पर्याप्त संख्या और गुणवत्ता के अस्पताल, स्वास्थ्य केंद्र, डाक्टर, नर्स और अन्य स्वास्थ्यकर्मी उपलब्ध होने चाहिए।

अर्थव्यवस्था का इससे जुड़ा हुआ और महवपूर्ण पक्ष यह है कि लोगों को उनकी प्रतिभा और क्षमता के अनुकूल ऐसे रोजगार उपलव्ध हों जिनसे आय से उनकी बुनियादी जरूरतें पूरी हो सकें। खेती में पर्याप्त खाद्य उत्पादन हो, इससे आगे जरूरी है कि इस आजीविका से जुड़े छोटे किसान अपनी जरूरतें पूरी करने लायक आय अर्जन कर सकें। इसके लिए छोटे और मध्यम किसानों को कई तरह का सहयोग मिलना चाहिए। सरकार को चाहिए कि जल और नमी संरक्षण, लघु और मध्यम सिंचाई, वन और चरागाह संरक्षण, परंपरागत बीज बैंक, पर्यावरण की रक्षा के अनुकूल और आत्मनिर्भर, न्यूनतम खर्च पर अच्छी उत्पादकता की खेती में पर्याप्त निवेश करे जिससे किसान अधिक खर्च और कर्ज के बिना ही संतोषजनक आय प्राप्त कर सके तथा साथ में देश को स्वस्थ खाद्य और अन्य जरूरी उपज पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध करवा सके। इसी तरह पर्याप्त कपड़े का उत्पादन भर होने से ही उद्देश्य पूरा नहीं होता। यह भी महत्त्वपूर्ण है कि इसमें कितना रोजगार सृजन हुआ और जो रचनात्मक क्षमताएं लोगों में हैं उनका समुचित उपयोग हुआ कि नहीं। अधिक रोजगार देने वाले हैंडलूम और खादी के कपड़े के उत्पादन के लिए हमारे देश में जो विशेष रचनात्मक क्षमताएं उपलब्ध हैं, उनका टिकाऊ  उपयोग भी महत्त्वपूर्ण है।

शिक्षा क्षेत्र में भी अधिक रोजगार सृजन की राह अपनाना, शिक्षकों और शिक्षाकर्मियों के कार्य की गुणवत्ता सुनिश्चित करना जरूरी कार्य है। स्वास्थ्य सेवाएं सब तक पहुंचाने के उद्देश्य के साथ विशेषज्ञ डाक्टर से लेकर स्वास्थ्यकर्मी तक विभिन्न स्तरों पर विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में उपलब्ध होने चाहिए। इस क्षेत्र में वर्तमान में कहीं अधिक रोजगार सृजन करने की संभावनाएं हैं पर इसके लिए स्वास्थ्य शिक्षा में भी विभिन्न स्तरों पर सुधार आवश्यक है। एक बड़ी जरूरत यह है कि अर्थव्यवस्था में विषमताएं सब स्तरों पर कम की जाएं क्योंकि इसके बिना टिकाऊ  तौर पर, दीर्घकालीन तौर पर सभी बुनियादी जरूरतों को पूरा करना लगभग असंभव है। पर्यावरण के गंभीर होते संकट के बीच सादगी के कुछ मानदंड स्वीकार करने पर ही सबकी बुनियादी जरूरतें पूरी हो सकती हैं। महात्मा गांधी कहा था कि प्रकृति में सबकी जरूरतें पूरा करने की तो क्षमता है पर लालच पूरी करने की नहीं। लालच या विलासिता आधारित मांगें प्रकृति पर अधिक बोझ डालती हैं और पर्यावरण संकट को बहुत विकट करती हैं। अत: अर्थव्यवस्था में समता व सादगी के सिद्धांत को अपना कर पर्यावरण की रक्षा से अर्थव्यवस्था को बुनियादी तौर पर जोड़ा जा सकता है। विभिन्न आर्थिक गतिविाियों में पर्यावरण की रक्षा पर समुचित महत्त्व देना अलग से जरूरी है। उदाहरण के लिए यातायात विशेषकर कारों संबंधी निर्णय लेते समय वायु प्रदूषण की समस्या को कम करने के उद्देश्य को ध्यान में रखना जरूरी है।

विषमता को कम करने के साथ यह भी जरूरी है कि किसी भी निजी हित या शक्ति को अर्थव्यवस्था पर हावी न होने दिया जाए। यह सुनिश्चित करने के लिए योजनाबद्ध विकास का अपना महत्त्व है। अत: योजनाबद्ध विकास को हटाना नहीं चाहिए अपितु बेहतर बनाना चाहिए। नहीं भूलना चाहिए कि आर्थिक नीतियों का अंतिम उद्देश्य दुख-दर्द कम करना ही है, अभाव को कम करना है, और इसके लिए सबकी बुनियादी जरूरतों की आपूर्ति और आजीविका की रक्षा को सुनिश्चित करना जरूरी है, समता को बढ़ाना और विषमता को कम करना जरूरी है। इस तरह समता, सादगी और पर्यावरण रक्षा आधारित अर्थव्यवस्था का एक आदश वि के सामने प्रस्तुत करना चाहिए। अंतरराष्ट्रीय व्यापार और आर्थिक संबंधों पर जो नीति अपनाई जाएं, वे इस आर्थिक समझ के अनुकूल होनी चाहिए।

विश्व के अनेक विख्यात विद्वानों ने तर्क दिया है कि जीएनपी को विकास की सही पहचान नहीं माना जा सकता। र्रिचड डाऊथवेट ने अपनी चर्चित पुस्तक ‘द ग्रोथ इल्यूशन’ में लिखा है, चूंकि जीएनपी में केवल उन वस्तुओं और सेवाओं की गिनती होती है जिन्हें नकदी में खरीदा-बेचा जाता है, अत: साफ हवा, शुद्ध पानी, प्राकृतिक सौंदर्य, आत्मसम्मान और मानवीय रिश्तों में हो रहे बदलाव इसमें उपेक्षित रह जाते हैं जबकि जीवन की गुणवत्ता के लिए यह सब अति महत्त्वपूर्ण हैं। इकानॉमिस्ट पत्रिका ने लिखा है कि यदि कोई देश अपने सब पेड़ों को काट कर बेच दे तो उसके राष्ट्रीय एकाउंट में प्रति व्यक्ति जीएनपी बहुत बढ़ा हुआ नजर आएगा। जीएनपी में इस बारे में भेद नहीं किया जाता है कि कोई वस्तु या सेवा जन कल्याण या पर्यावरण के लिए बहुत हानिकारक है, या लाभदायक है।

डाऊथवेट ने ब्रिटेन का अध्ययन ऐसे दौर में किया जब प्रति व्यक्ति जीएनपी दो गुणा बढ़ गई थी। इसी दौर में ब्रिटिश सोशल साइंस रिसर्च काउंसिल ने पांच वर्षो में तीन बार ब्रिटेन के लोगों के सैम्पल से जीवन की गुणवत्ता के बारे में सवाल पूछे। तीनों बार एक से सवाल पूछे गए। जब लोगों से पूछा गया कि क्या पिछले 5 वर्षो में वस्तुओं और सेवाओं का उपभोग बढ़ा है, उन्होंने लगभग एकमत से उत्तर दिया कि हां, बढ़ा है पर जब उनसे पूछा गया कि क्या जीवन की गुणवत्ता भी इसके साथ बढ़ी है, तो सभी ने लगभग एक मत से उत्तर दिया कि जीवन की गुणवत्ता बढ़ी नहीं है, घटी है। इस सर्वेक्षण में लोगों से पूछा गया कि जीवन की गुणवत्ता किस से निर्धारित होती है तो प्राप्त उत्तरों को विभिन्न श्रेणियों में बांटा गया। इनमें से 71 प्रतिशत जवाबों का वर्गीकरण ऐसी श्रेणियों में हुआ जिनका कैस या नकदी से कोई संबंध नहीं है। इस स्थिति में जीएनपी को विकास का सही द्योतक कैसे माना जा सकता है? अत: अब यह बहुत जरूरी है कि विकास की सही समझ के आधार पर ही आर्थिक संवृद्धि के प्रयास किए जाए।

भारत डोगरा


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