बाल दिवस : बेहतरी के लिए बहुत कुछ किया जाना शेष

Last Updated 14 Nov 2023 01:18:51 PM IST

बाल दिवस (Bal Divas) आज पूरे देश में मनाया जाएगा, तमाम छोटे-बड़े आयोजन भी होंगे। बढ़-चढ़ कर बातें भी की जाएंगी। बच्चों को भविष्य के निर्माता व भारत के भविष्य जैसे शब्दों से नवाजा जाएगा, लेकिन यह कटु सत्य है कि अपने देश में दुनिया का लगभग 50 फीसद बाल श्रम है।


बाल दिवस : बेहतरी के लिए बहुत कुछ किया जाना शेष

हम बाल संरक्षण और बाल अधिकारों की बात तो करते हैं, सरकारें भी करती हैं; लेकिन इसे प्राथमिकता के तौर पर कोई नहीं लेता है। दरअसल, बच्चों के सर्वागीण विकास की बात होनी चाहिए। बच्चे आज भी बाल श्रम, बाल यौन शोषण, बाल व्यापार, बाल विवाह, चाइल्ड पोर्नोग्राफी के शिकार हो रहे हैं। कठोर कानून तो हैं, लेकिन इसका क्रियान्वयन सतही तौर पर ही हो रहा है।

होटल, कल-कारखानों, ढाबा, परचून की दुकान पर काम करते हुए बच्चे, स्टेशन, चौराहे, सड़कों पर भीख मांगते बच्चें अक्सर आपको दिख जाएंगे। क्या कानून को अमल में लाने वाली एजेंसियों को ये सब नहीं दिखता है? क्या नीति निर्धारकों को ये बच्चे नहीं दिखते? क्या स्वयंसेवी संगठनों, सरकारों को ये बच्चे नहीं दिखते? वैसे, यह सब कुछ दिखते तो सभी को हैं, लेकिन उसका हल कैसे निकले; यह किसी की प्राथमिकता में नहीं है। अगर बच्चों का विकास प्राथमिकता में होता तो आजादी के इतने वर्षो बाद भी आज बच्चे प्राथमिक सरकारी स्कूलों में दरी टाट-पट्टी पर नहीं बैठते। यह बेहद अफसोस की बात है। ‘बाल दिवस’ पंडित जवाहर लाल नेहरू के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। वो बच्चों से इतना प्यार करते थे कि बच्चे उन्हें ‘चाचा’ कहते थे।

वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी भी बच्चों से बहुत प्यार करते हैं। बच्चों की उनसे बहुत उम्मीदें हैं। बाल शिक्षा, बाल स्वास्थ्य, बाल पोषण, मनोरंजन बच्चों के सर्वागीण विकास को लेकर योजनाएं बनानी होंगी। ‘सब पढ़े सब बढ़े’ की नीति पर चलना होगा। बाल श्रम, बाल यौन शोषण, बाल विवाह, भिक्षा वृत्ति, बाल व्यापार जब तक सब देश में बंद नहीं होगा तब तक बाल दिवस की सार्थकता नहीं है। आज भी बच्चे अपने लिए उम्मीद की किरण आंखों में लिए इस इंतजार में हैं कि विकास की रोशनी से इनके जीवन में भी उजाला हो सके। जीवन-यापन चलाने और अपने परिवार को आर्थिक संबल प्रदान करने के लिए कई सारे बच्चे घर से कमाने निकल जाते हैं। इनके लिए आजीविका के साधन बहुत सीमित हैं, उन्हें बुनियादी सुविधाएं तक उपलब्ध नहीं हैं। कुछ अन्य काम की तलाश में घर-बार छोड़कर शहरों में पलायन कर जाते हैं। ऐसी परिस्थिति में बच्चे शिक्षा एवं विकास से वंचित रह जाते हैं, जिससे वो भी सुरक्षित और खुशहाल जीवन जी सकें।

वास्तव में यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है जिससे निपटने के लिए सभी संबद्ध लोगों को मिल कर प्रयास करने की आवश्यकता है। भारत के संविधान में बच्चों तथा इनके अधिकारों को संरक्षण प्रदान किया गया है। हमने संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार समझौते का अनुमोदन किया है।  हम चाहते हैं कि हमारे देश के सभी बच्चो को सुरक्षा और गरिमा के साथ जीने के लिए ऐसा सुरक्षित और ममताभरा माहौल मिले, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ सुनिश्चित हो कि सभी बच्चे स्कूल जाएं, उनका शोषण करने वालों को सजा देने के लिए उपयुक्त प्रभावी कानून का पालन हो। बच्चों के सामने मौजूद खतरों के बारे में समाज को जानकारी हो तथा सरकार के निर्वाचित जन-प्रतिनिधि और बाल संरक्षण से जुड़े मुद्दों पर कारगर ढंग से ध्यान दिया जाए ताकि उनकी बेबसी को कम किया जा सके।

बाल संरक्षण शब्द का उपयोग विभिन्न संगठन विभिन्न परिस्थितियों में और विभिन्न रूपों में करते हैं। इस शब्द का अर्थ होगा हिंसा, दुरुपयोग और शोषण से संरक्षण। सीधे शब्दों में कहे तो बाल संरक्षण का अर्थ प्रत्येक बच्चे के अधिकार को संरक्षण देना है ताकि उसे किसी प्रकार की क्षति न पहुंचे। इसमें अन्य अधिकारों को भी बल मिलता है। अर्थात सुनिश्चित होता है कि बच्चों को वह सबकुछ प्राप्त हो जिसकी उन्हें जीवित रहने, विकसित होने और फलने-फूलने की आवश्यकता है। 2002 में बच्चों के बारे में संयुक्त राष्ट्र महासभा के अधिवेशन में अनुमोदित ‘अ र्वल्ड फिट फॉर चिल्ड्रेन’ (बच्चों के लायक दुनिया) घोषणा को साकार करने का संकल्प व्यक्त किया।

यह संकल्प ऐसी दुनिया के निर्माण का है, जिसमें सभी (लड़के और लड़कियां)बचपन का आनंद ले सकें..उन्हें भरपूर सम्मान और दुलार मिले..जिसमें उनकी सुरक्षा और खुशहाली सबसे पहले हो और जिसमें वे स्वस्थ, शांत और गरिमा के साथ खड़े हों। ये भावनाएं कानूनी मानदंडों से परे हैं। वि की हर संस्कृति में बच्चे सबके दुलारे होते हैं। फिर भी हम उनके संरक्षण में विफल रहते हैं। इसलिए जब तक समन्वित तरीके से हम सरकार, गैरसरकारी संगठन, आम अवाम एक होकर बच्चों की तरफ ध्यान नहीं देंगे तब तक हम बच्चों के अधिकार, संरक्षण, सुरक्षा, कल्याण, पोषण, स्वास्थ्य, शिक्षा से कोसों दूर रहेंगे। अभी भी हमें बहुत कुछ करने की जरूरत है। अब भी समय है, हम सभी लोग अपने दायित्वों को समझें और बाल दिवस के दिन यह संकल्प लें कि अपने आस-पास में बाल अधिकारों की रक्षा में पूरा योगदान देंगे।

राजेश मणि


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