फिलिस्तीन-इस्रइल संघर्ष : लंबा खिंचने के आसार
ब्रिटिश सरकार ने द्वितीय विश्व युद्ध के उपरांत यहूदियों के खिलाफ हो रहे जुल्म को देखते हुए अपने अधीन अरब-फिलिस्तीन धरती पर उनके लिए एक अलग और सुरक्षित राष्ट्र बनाने की योजना बनाई।
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प्रारंभ में दूसरे देशों से यहूदियों को फिलिस्तीन में लाकर बसाया जाने लगा। जिन्हें ‘सेटलर्स’ नाम दिया गया। नई बस्ती में उन्हें बसाने का एक मुख्य आकषर्ण और कारण उनके पवित्र स्थान यरुसलम का पास होना भी था। धीरे-धीरे यहूदी देश की स्थापना का सपना और मांग जोर पकड़ने लगी। 1938 के आसपास इसे मूर्त रूप देने की मांग होने लगी।
महात्मा गांधी भारत की स्वतंत्रता का युद्ध विशुद्ध अहिंसात्मक तरीके से संचालित कर रहे थे, लेकिन उनकी नजर उस समय विश्व में हो रहे परिवर्तनों और घटनाओं पर भी लगी रहती थी। एशिया के विभिन्न मुल्कों के स्वाधीनता संग्राम, साम्राज्यवादी और उपनिवेशवादी जन संग्रामों को वे गुण और दोष के आधार पर समर्थन देते रहते थे। प्रथम विश्व युद्ध 1918 में समाप्त हो चुका था और समूचे पश्चिम एशिया के बड़े भूभाग पर ब्रिटिश हुकूमत कब्जा कर चुकी थी। बचे हुए कुछ हिस्से पर फ्रांस भी अपना अधिकार जमाने में कामयाब हो चुका था। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जब इस्रइल के रूप में यहूदी राज्य का सपना साकार होने लगा तो महात्मा गांधी ने 26 नवम्बर 1938 को ‘हरिजन’ साप्ताहिक में अपने संपादकीय लेख के जरिये इस मुहिम का जोरदार विरोध किया। इस लेख में बापू ने फिलीस्तीन धरती पर यहूदियों का प्रथम देश बनाने की कड़ी आलोचना की।
यही वह दौर है जब मोहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में मुस्लिम लीग भी मजहब के नाम पर पृथक राष्ट्र की मांग को तेजी से साथ उठा रही थी। गांधी के अनुसार जिस प्रकार फ्रांस फ्रांसीसियों का है और इंग्लैंड इंग्लिश लोगों का है उसी प्रकार फिलिस्तीन यहां के मूल अब फिलिस्तीन निवासियों का है। यहूदियों को धर्म की बुनियाद पर ब्रिटिश बंदूकों या बम की धमकी के साये में फिलिस्तीन में लाकर नहीं बसाया जा सकता अगर यहूदी यहां बसना चाहते हैं तो फिलिस्तीनियों की मर्जी की स्वीकार्यता होनी आवश्यक है। द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त होने तक यहूदी फिलिस्तीन में एक समानांतर प्रशासन, यहूदी एजेंसी और स्वयं के मिलिशिया समूहों-हगनाह और हरगुन के साथ एक बड़ा समुदाय बन गए। ब्रिटेन ने संयुक्त राष्ट्र से संपर्क कर एक षड्यंत्रकारी योजना को अंजाम दिया जिसके तहत फिलिस्तीन को एक अरब राज्य एक यहूदी राज्य (इस्रइल) और एक अंतरराष्ट्रीय शहर यरुसलम में विभाजित कर दिया, लेकिन इसे अरबों ने सिरे से खारिज कर दिया। 1948 में यूएनओ की मदद से अंग्रेजी राज्य की समाप्ति से पहले इस यहूदी राज्य की घोषणा कर डाली। इस प्रस्ताव के मुताबिक फिलिस्तीन की 55 फीसद भूमि पर इस्रइल का और 54 फीसद भूमि पर अरब फिलिस्तीनियों का कब्जा माना गया। बाकी 1 फीसद भूमि को यरु सलम के लिए आरक्षित किया गया। यहां यह उल्लेख करना आवश्यक है कि वर्तमान युद्ध प्रारंभ होने से पहले फिलिस्तीनी मात्र 7 फीसद भूमि के मालिक बचे हैं।
आज यह प्रश्न पुराने पड़ चुके हैं। इस्रइल के वहशीपन के शिकार, मृतकों की संख्या, बच्चे-बूढ़ों का कत्लेआम, अस्पताल एवं शिविरों पर बमबारी में मृतकों और घायलों की संख्या का जोड़ बताने में यूएन, डब्लूएचओ, मानवअधिकारी ग्रुप सक्रिय हैं। गाजा पर हुए हमले इतने दर्दनाक और भयानक हैं कि भारत, अमेरिका और यूएन महासचिव तक को कहना पड़ा है कि मानवता के आधार पर इस्रइल भविष्य में सभी सैनिक गतिविधियों को विराम दे। एक बड़ी आबादी के साथ जिनमें अधिकांश बच्चे हैं, वयस्कों पर उनका भरण-पोषण करने का बोझ बहुत अधिक हो चला है हालांकि उद्योग की खराब स्थिति के कारण गाजा पुरानी बेरोजगारी से पीड़ित है। अधिक चिंता की बात यह है कि आबादी का एक छोटा सा हिस्सा ही नौकरी की तलाश में है। बाइडन से पहले ट्रंप सरकार द्वारा बेंजामिन का अंध समर्थन भी नरसंहार का एक बड़ा कारण है। दरअसल, अमेरिका और इस्रइल ऐन युद्ध के मौके पर आक्रामक हो जाते हैं। ट्रंप द्वारा पिछले चुनाव के दौरान अपने चुनाव में यरुसलम को राजधानी घोषित कर चुनाव में विजय प्राप्त कर चुके हैं, जबकि यूएनओ द्वारा इसे अभी तक मान्यता नहीं मिली है और सरकारी सूचनाओं में तेल-अवीव ही अधिकृत राजधानी है। 1966 के छह दिनी युद्ध के दौरान इस्रइल, इजिप्ट, लेबनान और सीरिया के बड़े भूभाग पर कब्जा करने में कामयाब हो चुका था।
यूएन द्वारा सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित होने के बावजूद इस्रइल वहां अवैध कॉलोनियों का निर्माण करने में व्यस्त है। अब फिलिस्तीन और पश्चिम एशिया के बाशिंदों का सबसे बड़ा भावनात्मक मुद्दा अल-अक्सा मस्जिद का अस्तित्व पर आया संकट भी है। इस मस्जिद को विश्व भर के मुसलमान बड़े अदब के साथ याद करते हैं। इस्रइल पुलिस द्वारा प्रतिबंध लगाने से हर वर्ष ईद के मौके पर हिंसक वारदात एक रिवाज सा बन जाती हैं। युद्ध के लंबे खींचने के आसार हैं, पूर्व यरुसलम के बड़े हिस्से पर इस्रइल का कब्जा है, जहां मस्जिद स्थित है यरुसलम यद्यपि 1948 से ही अंतरराष्ट्रीय शहर है, लेकिन राजधानी घोषित होने पर इंसाफ और मानवीय अधिकारों की रक्षा के लिए शुरू हुआ संघर्ष अब धार्मिंक विवाद की भेंट चढ़ चुका है। अब स्थिति नियंत्रण नियंत्रण से बाहर है। अरब मुल्कों के बाद भारत पहला मुल्क है जिसने फिलीस्तीन को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता दी।
यद्यपि 1992 में नरसिम्हा राव द्वारा इस्रइल को मान्यता देकर भारत को गुटिनरपेक्ष देशों की नजरों में आशंकित कर दिया था। तीसरी दुनिया के सभी बड़े नेता पंक्तिबद्ध होकर फिलिस्तीन के साथ खड़े रहते थे, जिनमें पंडित नेहरू, चाऊ-एन-लाई, अब्दुल गुलाम नासिर, माशर्ल टीटो और एन्क्रोमा और सुकर्णों आदि प्रमुख हैं। यद्यपि शांति के द्वारा ही बड़े-बड़े मसले सुलझाए जा चुके हैं, लेकिन फिलिस्तीनी नौजवानों का एक बड़ा तबका हमास समर्थक हो चुका है। ऐसा भी पहली बार हुआ है जब इस्रइली जान-माल की ऐसी हानि हुई है और वहां की खुफिया एजेंसी मोसाद को लेकर सवाल उठ रहे हैं। लगभग सभी अरब मुल्क एक होकर गाजा में हो रहे नरसंहार को रोकने की कोशिशों में लगे हैं, जिस प्रकार ईरान, टर्की समेत कई राज्य अति सक्रियता दिखा चुके हैं उससे लगता है युद्ध लंबा चलेगा।
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