मुद्दा : केरल में हमास?
पश्चिम एशिया में मौजूदा उथल-पुथल के बीच इस्लामवादी, वामपंथियों की मदद से भारत के शांत माहौल को अपने क्रूर व्यवहार से नष्ट करने का प्रयास कर रहे हैं।
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यहां तक कि हमास के पूर्व प्रमुख खालिद मशाल को केरल के फिलिस्तीन समर्थक प्रदशर्न में बोलने के लिए आमंत्रित करने तक पहुंच गए। भारत में वामपंथी आंदोलन, जो विशेष रूप से केरल राज्य में शक्तिशाली है, कई मलयाली मुसलमानों की मान्यताओं पर गहरा प्रभाव डालता है। ऐतिहासिक, राजनीतिक और वैचारिक परिवर्तन के कारण इस्लामवादियों और वामपंथी विचारधारा के बीच संबंध पूरे समय विकसित हुए हैं। वे सहयोग और साझा उद्देश्यों के कई उदाहरणों द्वारा विश्व स्तर पर एकजुट हैं। इसी तरह, भारत में वामपंथी, इस्लामी संगठनों को भी मजबूत समर्थन प्रदान करते हैं।
भारत में वामपंथी और इस्लामवादी कई विषयों पर आम सहमति पर पहुंच गए हैं। एक न्यायपूर्ण समाज, आर्थिक असमानता, हिन्दू जाति व्यवस्था के उन्मूलन और मुसलमानों को हिन्दुत्ववादी संगठनों से बचाने के बारे में चिंताएं उनके द्वारा साझा की जाती हैं। भाजपा और आरएसएस के प्रति डर और नाराजगी के कारण कई आम मुसलमान उनके जाल में फंस गए। ये मुसलमान केवल हिन्दुत्ववादी आंदोलनों के खिलाफ हैं, वे भारत विरोधी नहीं हैं। इसके बजाय, उन्हें इस्लामवादियों और वामपंथियों द्वारा नियंत्रित किया जा रहा है। हिन्दुत्ववादी संगठनों के नफरत भरे भाषण भी इस कारण में योगदान करते हैं।
भारत में इस्लामवादियों और कम्युनिस्ट संगठनों, दोनों ने अक्सर खुद को विभिन्न सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों पर एक साथ काम करते हुए पाया है, जो आम मुसलमानों को भावनात्मक रूप से मूर्ख बनाता है। इन साझा उद्देश्यों के परिणामस्वरूप भाजपा शासन के तहत भारतीय मुसलमानों को और अधिक असहज बनाने के उद्देश्य से विरोध प्रदर्शनों, रैलियों और अभियानों में सहयोग मिला है। उदाहरण के लिए, नागरिकता संशोधन अधिनियम और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर जैसे मुद्दों से निपटने के अपने प्रयासों में इस्लामवादी और कम्युनिस्ट समूह भेदभावपूर्ण सरकारी नीतियों का विरोध करने के लिए एकजुट हुए थे। जानकर आश्चर्य होता है कि ये समूह अपने संगठनों को संदíभत करने के लिए ‘पॉपुलर फ्रंट’ वाक्यांश का उपयोग करना पसंद करते हैं।
कट्टरपंथी मार्क्सवादी जॉर्ज हबाश ने 1967 में पॉपुलर फ्रंट फॉर लिबरेशन ऑफ फिलिस्तीन नाम से एक समूह की स्थापना की थी, जिसने महत्त्वपूर्ण व्यवधान पैदा किया और इस्रइल-फिलिस्तीन संघर्ष को बढ़ा दिया। उनके पास एक सशस्त्र विंग भी है जो आतंकवाद के कई कृत्यों में भाग लेता है। तुलनात्मक रूप से 2006 में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया की स्थापना हुई थी। केरल सरकार ने 2012 में दावा किया था कि यह समूह इंडियन मुजाहिद्दीन से संबद्ध स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) का पुनर्जीवन था, जो एक आतंकवादी समूह था जिसे प्रतिबंधित कर दिया गया था।
पीएफआई कर्नाटक और केरल में कई हिंसक संघर्ष में शामिल रहा है। अधिकारियों ने पाया है कि उनके कार्यकर्ताओं के पास घातक हथियार, बम, गोला-बारूद और तलवारें हैं। यूएपीए कानून के तहत भारत सरकार ने 2022 में पीएफआई को ‘गैर-कानूनी संघ’ घोषित किया और समूह पर पांच साल का अस्थायी प्रतिबंध लगा दिया। इन समूहों ने हमास और फिलिस्तीन को पर्यायवाची के रूप में पेश किया है। इस्रइल को घेरने और उसकी निंदा करने की जल्दी में हमास और फिलिस्तीन को एक साथ जोड़ा जा रहा है, और हमास के आसपास की सभी असुविधाजनक सच्चाइयों को जानबूझकर या अन्यथा दरकिनार कर दिया गया है, जिसमें यह तथ्य भी शामिल है कि यह इस्लामी संगठन था जिसने सबसे पहले जिहादी ट्रिगर खींच कर इस्रइल को अंदर धकेल दिया था।
न्यूयॉर्क पोस्ट ने बताया है कि हंगेरियन-अमेरिकी व्यवसायी और स्व-घोषित परोपकारी अरबपति जॉर्ज सोरोस ने अमेरिका में हमास समर्थक विरोध प्रदशर्न से जुड़े समूहों को 2016 से कथित तौर पर 15 मिलियन डॉलर से अधिक की धनराशि दी है। कथित तौर पर फंडिंग सोरोस द्वारा स्थापित ओपन सोसाइटी फाउंडेशन के माध्यम से की गई थी, जिसमें धन का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा, लगभग 13.7 मिलियन डॉलर वामपंथी वकालत समूह टाइड्स सेंटर के माध्यम से प्रदान किया गया था। यह वही सोरोस हैं, जिन्होंने मीडिया और ‘सिविल सोसाइटी’ के माध्यम से खतरनाक भारत विरोधी कहानी को हवा देने की कोशिश की थी। पूर्व पोर्न स्टार मिया खलीफा और कई कार्यकर्ता भी हमास के समर्थन में आगे आए हैं।
भारत में पिछले साल पीएफआई पर प्रतिबंध लगने के बावजूद बहुत से लोग अभी भी इस विचारधारा पर कायम हैं। जमात-ए-इस्लामी हिन्द की युवा शाखा ने केरल के मलप्पुरम में बैनर के साथ एक कार्यक्रम का आयोजन किया। आश्चर्य की बात यह है कि इसे हमास नेता खालिद मशाल ने वस्तुत: संबोधित किया था। उन्होंने इवेंट में हमास के लिए चंदा मांगा था। हालांकि उनकी नेटवर्थ 4 अरब डॉलर है। उन्होंने भारत में इस्रइल के खिलाफ विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया। भारत में जमात-ए-इस्लामी के विचारकों ने अपनी नकली बौद्धिकता के माध्यम से हमास के महिमामंडित संस्करण को सूक्ष्मता से बढ़ावा देने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हमास मुस्लिम ब्रदरहुड है, और मुस्लिम ब्रदरहुड के संस्थापक सैयद अबुल अला मौदुदी से प्रेरित थे। इसी संगठन ने अपने 2022 कैलेंडर में आतंकी याकूब मेमन को शहीद बताया था। याकूब को 1993 के मुंबई सीरियल ब्लास्ट में दोषी ठहराया गया था, जिसमें 257 लोग मारे गए थे। इस घटना ने तब पूरे देश को हिला कर रख दिया था।
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