रेल हादसे : बना रहे सुरक्षा पर भरोसा
रेल भारतीय आबादी के एक बड़े हिस्से की यात्रा का महत्त्वपूर्ण एवं विश्वसनीय साधन है। आम भारतीय परिवहन के अन्य साधनों की अपेक्षा रेल से यात्रा करना आज भी अधिक पसंद करता है।
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बारह करोड़ से भी अधिक लोग रोजाना इससे यात्रा करते हैं। न केवल परिवहन हेतु बल्कि माल ढुलाई के लिए भी रेल का उपयोग अन्य यात्रा माध्यमों की अपेक्षा सर्वाधिक किया जाता है, लेकिन हाल-फिलहाल की रेल दुर्घटनाओं ने रेलवे में सुरक्षित यात्रा पर कई प्रश्न चिह्न लगाए हैं। जून में हुए बालासोर के भयानक रेल हादसे की तस्वीरें अभी लोगों के जेहन से उतरी भी नहीं थीं कि इसी माह दो और रेल हादसे हो गए।
पिछले पांच महीनों में यह तीसरा बड़ा रेल हादसा है। पहले ओडिसा के बालासोर, फिर बिहार के रघुनाथपुर (बक्सर) और अब आंध्र प्रदेश के विजयनगरम में यह भीषण रेल हादसा हुआ है। यह सिलसिलेवार रेल हादसा स्तब्ध कर देने वाला है। भारतीय रेलवे की तमाम कोशिशों के बावजूद एक ओर रेल हादसे नहीं रुक रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर आमजन में रेल यात्रा की विसनीयता के प्रति संदेह बढ़ रहा है। रेल हादसे सुरक्षित यात्रा के दावों और वादों पर एक बड़ा सवालिया निशान लगाते हैं। क्षमता से अधिक वजन के माल ढुलाई के बढ़ते बोझ से पटिरयों की खस्ता हालत किसी से छिपी नहीं है। आए दिन रिपोर्ट में ये बाते लिखी भी जाती रहीं हैं। ऊपर से यात्री ट्रेनों और यात्रियों की बढ़ती संख्या के कारण पटरियों पर दबाव जिस कदर बढ़ा है, उसी अनुपात में उनके रख-रखाव और देखभाल भी बढ़ने चाहिए थे, लेकिन इसकी अनदेखी कर यात्रियों के जीवन से बड़ा खिलवाड़ आज भी जारी है।
कभी मानवीय भूल तो कभी तकनीकी खराबी के कारण ये रेल हादसे आज बढ़ते जा रहे हैं। औपनिवेशिक भारत में रेलवे की पटरियां सामान्य स्तर की थीं। उनका मुख्य उपयोग सैन्य साजो-सामान ले जाने तक सीमित था, इसलिए उन पर ज्यादा दबाव नहीं था। आजाद भारत में जवाहरलाल नेहरू ने रेलवे के आधुनिकीकरण की नींव जरूर रखी थी, लेकिन रेल पटरियों की मरम्मत का बड़ा कदम अटल बिहारी वाजपेयी ने उठाया। आज इस प्रयास के भी लगभग दो दशक बीत चुके हैं। आज समय और जरूरतें दोनों बदली हैं। रेलवे के पूरे तंत्र का आधुनिकीकारण एवं अद्यतनीकरण समय की मांग है। भारतीय ट्रेनों की गति बढ़ाने पर आज जिस तेजी से काम हो रहा है, उसी के अनुरूप पटरियों की मरम्मत और मानक के अनुसार उसके निर्माण का भी प्रयास होना चाहिए। इससे न केवल हादसों पर लगाम लगाया जा सकेगा, बल्कि रेल से सुरक्षित यात्रा की गारंटी भी बढ़ेगी। रेलवे की सुरक्षा संबंधित एक रिपोर्ट कहती है कि भारत में सत्तर प्रतिशत रेल दुर्घटनाएं डिब्बों के पटरी से उतर जाने के कारण होती हैं। ट्रेन में आग लगने और ट्रेनों के आपस में टकराने की घटनाओं का प्रतिशत क्रमश: चौदह और आठ है। सरकार बजट में प्रत्येक वर्ष नई रेल योजनाओं की घोषणा करती है। इनके समय से पूरा न होने की कहानी भी आम है। इस बीच ट्रेनों की संख्या में भारी बढ़ोतरी हुई है। यात्री सुविधाएं भी बढ़ीं हैं। रेलवे के इंफ्रास्ट्रक्चर में भी लगातार विस्तार हुआ है, लेकिन बिना सुरक्षा के सब बेअसर साबित हो रहे हैं।
आज बुलेट ट्रेन की तर्ज पर हाई स्पीड और सेमी हाई स्पीड ट्रेनों के परिचालन के प्रयोग जारी हैं, लेकिन यह भी सच है कि हम एक्सप्रेस और सुपरफास्ट ट्रेनों की औसत गति में ज्यादा परिवर्तन नहीं कर पाए हैं। हालांकि यदि पिछले एक दशक की बात करें तो भारत में रेल दुर्घटनाओं की संख्या में कमी तो आई है, लेकिन ट्रेनों के पटरी से उतरने की घटनाएं भी बढ़ी हैं। इसका एक प्रमुख कारण रेलवे का सुरक्षा मानकों पर खरा नहीं उतर पाना है। इसलिए दुर्भाग्यपूर्ण रूप से ऐसी घटनाएं बार-बार होने लगीं हैं। कभी आमने-सामने से ट्रेनों के टक्कर तो कभी पटरियों से डिब्बों के उतरने की खबरे आए दिन सुर्खियों बनती हैं। हादसा होने पर सरकारों द्वारा तत्काल राहत, कुछ मुआवजे और कभी-कभार सरकारी नौकरिया भी दी जाती हैं, लेकिन स्थितियां जस की तस बनी हुई हैं। घटना के तत्काल बाद जांच के आदेश दे दिए जाते हैं। हादसे गंभीर जांच का विषय होते हैं और रिपोर्ट आगे के हादसों को रोकने का आधार, लेकिन ये रिपोर्ट कितना सार्वजनिक होते हैं, इस पर भी गौर करना जरूरी है। आज वंदे भारत ट्रेनों की समयबद्धता ने समय से न पहुंचने की भारतीय रेल की छवि को बदला है और सुविधापूर्ण यात्रा को संभव बनाया है। ऐसे में ये हादसे भारतीय रेलवे के प्रयासों को पलीता ही लगाते हैं।
सरकार को सुरक्षा योजना की समीक्षा करते हुए रेल विभाग के साथ मिलकर सुरक्षा उपायों का पुनर्मूल्यांकन करना चाहिए। इसका एक आधार तो यह हो सकता है कि यात्री परिवहन और माल ढुलाई के लिए अलग-अलग ट्रैक बनाए जाएं। भारत में इस पर तेजी से काम भी हो रहा है। रेलवे सुरक्षा की एक रिपोर्ट का मानना है कि भारत में अधिकतर रेल हादसों के पीछे मानवीय गलतियां और लापरवाहियां जिम्मेदार होती हैं। ऐसी घटनाओं से न केवल मासूमों की जानें जाती हैं, बल्कि रेलवे संपत्ति को भी भारी नुकसान पहुंचता है। रेलवे कर्मचारियों द्वारा सुरक्षा नियमों की अनदेखी के मामले लगातार बढ़े हैं। हाल की घटना भी इसी का उदाहरण है। ऐसे में हादसे की जिम्मेदारी तय करते हुए जिम्मेदार को कठोर सजा का प्रावधान करना भी रेल सुधार की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम होगा। रेलवे सुरक्षा के अध्ययन हेतु 2012 की अनिल काकोडकर कमेटी की सिफारिशों में रेल सुरक्षा के लिए अगले पांच वर्ष की अवधि में एक लाख करोड़ रु पए का निवेश करने और रेलवे सुरक्षा प्राधिकरण गठित करने जैसे अनेक जरूरी उपाए सुझाए गए थे, पर समिति की आंशिक सिफारिशें ही लागू हो सकीं हैं।
रेलवे को आधुनिक बनाने के प्रयास में सरकार को विश्व में सर्वाधिक यात्रियों को ढोने वाली भारतीय रेल के ढांचागत सुधारों पर जोर देना होगा। सीएजी कहती है कि ‘रेलवे आज भारी घाटे में है।’ निजीकरण के दबाव के कारण रेल पर अपने घाटे को पाटने का बड़ा दबाव है। व्यावसायिकता के दबाव में सुरक्षा की चिंता कहीं पीछे छूट गई है। भारतीयों में रेल यात्रा के प्रति सुरक्षित यात्रा का भरोसा पैदा हो, इसके लिए सुरक्षा मानकों पर विशेष रूप से जागने की जरूरत है। हर हादसा एक सीख देता है, लेकिन शायद हमने हादसों से सीखने की आदत छोड़ दी है। रेल हादसों के रूप में जिनका परिणाम हमारे सामने है।
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