एक देश, एक चुनाव : कम नहीं हैं अड़चन

Last Updated 13 Sep 2023 01:05:57 PM IST

गत 11 अगस्त को संसद का मानसून सत्र संपन्न हो जाने के बावजूद केंद्र सरकार का अचानक 18-22 सितम्बर तक संसद का विशेष सत्र बुलाना एक बड़े राजनीतिक धमाके का स्पष्ट संकेत है, लेकिन ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ की व्यवस्था की संभावनाओं पर विचार के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में कमेटी का गठन करने से लगता है कि सरकार विशेष सत्र में एक साथ चुनाव कराने की संवैधानिक व्यवस्था करने जा रही है।


एक देश, एक चुनाव : कम नहीं हैं अड़चन

‘इंडिया’ अलायंस को ढेर करने के लिए समान नागरिक संहिता और महिला आरक्षण बिल जैसे राजनीतिक ब्रह्मास्त्र भी चलाए जा सकते हैं। बहरहाल, चर्चा तो एक साथ चुनाव की ही है।
आजादी के बाद पहले चुनाव से लेकर 1957, 1962 और 1967 में भी लोक सभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए गए, लेकिन दल बदल, राजनीतिक अस्थिरता तथा अनुच्छेद 356 के बार-बार इस्तेमाल के कारण एक साथ चुनाव का क्रम टूटता गया। अविश्वास प्रस्ताव के जरिए राज्य सरकारें समय से पहले गिरती रही हैं, और खंडित जनादेश के कारण विधानसभा बहुमत की नई सरकार चुनने की स्थिति में नहीं रही। अब अविश्वास प्रस्तावों और विधानसभाओं के विघटन से संबंधित प्रासंगिक प्रावधानों में संशोधन की आवश्यकता भी होगी। चुनाव के समय में बदलाव के लिए दसवीं अनुसूची (दल बदल विरोधी कानून) में संशोधन भी करना होगा।

ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि भारत में संवैधानिक संशोधनों के लिए लोक सभा और राज्य सभा में दो-तिहाई बहुमत और कम से कम आधे राज्य विधानमंडलों द्वारा समर्थन की आवश्यकता होती है। ऐसी आम सहमति हासिल करना और संविधान में सफलतापूर्वक संशोधन करना लंबी और चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया है। एक साथ चुनाव के पक्ष में धन की बचत का तर्क भी दिया जा रहा है, लेकिन भारत जैसे विशाल और बड़ी आबादी वाले देश में चुनाव कराने के लिए व्यापक साजो-सामान योजना और संसाधनों की आवश्यकता होती है। एक साथ चुनाव होने से चुनाव आयोग, सुरक्षा बलों और प्रशासनिक मशीनरी पर भारी दबाव पड़ेगा। देश के हर कोने में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन, प्रशिक्षित कर्मिंयों और पर्याप्त बुनियादी ढांचे की उपलब्धता सुनिश्चित करना कठिन काम होगा। नई व्यवस्था से राष्ट्रीय मुद्दों पर ध्यान केंद्रित हो सकता है, और क्षेत्रीय चिंताओं की उपेक्षा हो सकती है, जो संभावित रूप से संघवाद को कमजोर कर सकती है। एक साथ चुनाव को लेकर राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर विभिन्न दलों के बीच राजनीतिक सहमति हासिल करना चुनौतीपूर्ण है। विपक्षी दल वैसे ही इस विचार से विचलित नजर आ रहे हैं।

जिन परिस्थितियों में यह कदम उठाया जा रहा है, उनसे संदेह स्वाभाविक भी है। एक विचार यह भी है कि कुछ राज्यों में, व्यवहार्यता का आकलन करने और चुनौतियों से निपटने के लिए एक पायलट प्रोजेक्ट के रूप में यह काम शुरू किया जा सकता है। फिलहाल इसकी संभावना ज्यादा नजर आ रही है। सत्रहवीं लोक सभा का कार्यकाल 16 जून, 2024 को पूरा हो रहा है। इसलिए आम चुनाव अप्रैल-मई के बीच संभावित हैं। लेकिन केंद्र सरकार उससे पहले भी चुनाव करा सकती है, ताकि अधिक से अधिक राज्यों के चुनाव भी लोक सभा के साथ हो सकें। कम से कम दस राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल 2024 में आम चुनावों के लिए निर्धारित समय से पहले या उसके आसपास समाप्त हो रहा है जबकि पांच राज्यों-मध्य प्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना, मिजोरम और छत्तीसगढ़-में विधानसभा चुनाव इस साल के अंत तक होने वाले हैं। आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा, सिक्किम और झारखंड में लोक सभा चुनाव के साथ ही चुनाव होने की संभावना है। मिजोरम, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान और तेलंगाना के चुनाव दिसम्बर से जनवरी, 2024 तक होने हैं।

अनुच्छेद 172 के अनुसार विधानसभा का कार्यकाल 5 साल तय है। चूंकि निर्वाचन आयोग कहने भर को स्वायत्तशासी है, मगर व्यवहार में केंद्र सरकार का ही विभाग है जो सामान्यत: केंद्र सरकार की सुविधानुसार ही काम करता है। इसलिए जून में होने वाले राज्यों के चुनाव भी समय से पहले लोक सभा के साथ कराए जा सकते हैं। वर्तमान में 10 राज्य भाजपा शासित हैं, और 4 एनडीए शासित। भाजपा के लिए अपने शासन वाले राज्यों में मध्यावधि चुनाव कराने में कठिनाई नहीं होगी। वर्तमान में कांग्रेस शासित 4 राज्यों में से हिमाचल और कर्नाटक में और आम आदमी पार्टी शासित पंजाब और दिल्ली के साथ ही प. बंगाल जैसे राज्यों के चुनाव समय से पहले कराने के लिए केंद्र सरकार अनुच्छेद 356 में संशोधन करा सकती है। भारत जैसे विविधतापूर्ण और संघीय देश में यह जटिल उपक्रम है। आम सहमति हासिल करने, संवैधानिक और कानूनी बाधाओं को दूर करने और सुचारु परिवर्तन सुनिश्चित करने के लिए दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता है। वर्तमान में दृढ़ इच्छाशक्ति की तो कमी नहीं, मगर आम सहमति का नितांत अभाव साफ नजर आ रहा है।

जयसिंह रावत


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