भाजपा, केसीआर और मुसलमान

Last Updated 19 Jun 2023 01:35:06 PM IST

महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस (Devendra Fadanvis) ने हाल में मुसलमानों को ‘औरंगजेब की औलाद’ कह कर संबोधित किया। इससे पहले उत्तर प्रदेश के पिछले चुनाव में ‘रामजादे-हरामजादे’ या ‘शमशान-कब्रिस्तान’ जैसे भड़काऊ बयान दिए गए थे।


भाजपा, केसीआर और मुसलमान

दिल्ली चुनावों में केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने ‘गोली मारो सालों को’ जैसे भड़काऊ बयान देकर मुसलमानों के प्रति अपनी घृणा अभिव्यक्त की थी। पिछले दिनों बालासोर की ट्रेन दुर्घटना में बिना तथ्यों की जांच हुए ही ‘ट्रॉल आर्मी’ ने फौरन प्रचारित कर दिया कि दुर्घटना स्थल से थोड़ी दूर एक मस्जिद में इस हादसे की साजिश रची गई थी। जबकि जिसे मस्जिद बताया जा रहा था वो इस्कॉन संस्था का श्रीराधा कृष्ण मंदिर है, और जिस स्टेशन मास्टर को मुसलमान होने के नाते इस दुर्घटना का साजिशकर्ता बताया जा रहा था वो दरअसल, हिंदू निकला।

देश में जब कोविड फैला तो दिल्ली के निजामुद्दीन स्थित एक इमारत में ठहरे हुए तब्लिकी जमात के लोगों को इस बीमारी को फैलाने का जिम्मेदार बता कर मीडिया पर खूब शोर मचाया गया। हर उस हिन्दू लड़की, जो मुसलमान से ब्याह कर लेती है, को यह कहकर डराया जाता है कि उसका पति भी आफताब की तरह टुकड़े-टुकड़े कर उसे काट देगा या वेश्यालय में बेच देगा। ऐसे ही दर्दनाक हादसे जब हिन्दू लड़कियों के हिन्दू प्रेमी या पति करते हैं तब ‘ट्रोल आर्मी’ और मीडिया खामोश रहते हैं। हर चुनाव के पहले भाजपा के नेता ऐसा ही माहौल बनाने लगते हैं पर चुनाव के बाद उनकी भाषा बदल जाती है।

‘द केरल स्टोरी’ जैसी फिल्मों के माध्यम से और ‘ट्रॉल आर्मी’ द्वारा फैलाई गई जानकारी ही अगर मुसलमानों से नफरत का आधार है, तो संघ प्रमुख मोहन भागवत क्यों कहते हैं, ‘मुस्लिमों के बिना हिन्दुत्व नहीं’, ‘हम कहेंगे कि मुसलमान नहीं चाहिए तो हिन्दुत्व भी नहीं बचेगा’, ‘हिन्दुत्व में मुस्लिम पराये नहीं’? गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए नरेन्द्र मोदी ने ‘सीधी बात’ टीवी कार्यक्रम में कहा था, ‘जो हिन्दू इस्लाम का विरोध करता है, वह हिन्दू नहीं है।’ समझ में नहीं आता कि संघ और भाजपा की सोच क्या है? कहीं पर निगाहें - कहीं पर निशाना! इसी हफ्ते सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल करवाया गया जिसमें तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव किसी भवन के मुहूर्त में श्रद्धा भाव से खड़े हैं, और उनकी बगल में खड़े मौलवी कुरआन ख्वानी (दुआ) पढ़ रहे हैं। भेजने वाले का यह कहना था कि अगर केसीआर फिर से तेलंगाना विधानसभा का चुनाव जीत गए तो इसी तरह मुसलमान हावी हो जाएंगे। जबकि हकीकत इसके बिल्कुल विपरीत है।

जुलाई, 2022 से पहले के वर्षो में मैं जब भी हैदराबाद जाता था तो वहां के भाजपा के नेता यही कहते थे कि केसीआर मुसलमान परस्त हैं, और इनके शासन में सनातन धर्म की उपेक्षा हो रही है। जुलाई, 2022 में एक सनातनी संत के संदर्भ से मेरा केसीआर से परिचय हुआ। तब से अब तक उन्होंने मुझे दर्जनों बार हैदराबाद आमंत्रित किया। जिस तीव्र गति से वे तेलंगाना को विकास के पथ पर ले आए हैं, वह देखे बिना कल्पना करना असंभव है। सिंचाई से लेकर कृषि तक, आईटी से लेकर उद्योग तक, शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य तक और वंचित समाज से लेकर धार्मिंक कार्यों तक, हर क्षेत्र में केसीआर का काम देखने वाला है, जो किसी अन्य राज्य में आजकल दिखाई नहीं देता। इसलिए हर परियोजना का भव्य उद्घाटन करना केसीआर की प्राथमिकता होती है। अब तक हमने देश में हर स्तर के चुनावों के पहले बड़ी-बड़ी परियोजनाओं के शिलान्यास होते देखे हैं पर इनमें से ज्यादातर परियोजनाएं शिलान्यास तक ही सीमित रहती हैं, आगे नहीं बढ़ती। पर केसीआर की कहानी इसके बिल्कुल उलट है। वे शिलान्यास नहीं, परियोजनाओं के पूरा हो जाने पर उद्घाटन बड़े भव्य तरीके से आयोजित करते हैं। ऐसे अनेक उद्घाटनों में मैं अतिथि के रूप में उपस्थित रहा हूं। हर उद्घाटन में सर्व-धर्म प्रार्थना होती है, और उन धर्मो के मौलवी या पादरी आकर दुआ करते हैं। पर केसीआर की जो बात निराली है, वो यह कि वे बिना प्रचार के सनातन धर्म के सभी कर्मकांडों को योग्य पुरोहितों और ऋित्वकों द्वारा बड़े विधि-विधान से शुभ मुहूर्त में श्रद्धापूर्वक करवाते हैं।  

पिछले महीने जब उन्होंने बाबा साहेब अंबेडकर के नाम से नये बनाए भव्य सचिवालय का लोकार्पण किया तो मैं यह देख कर दंग रह गया कि न केवल मुख्य द्वार पर नारियल फोड़ कर वेद मंत्रों के बीच सचिवालय में प्रवेश किया गया, बल्कि छह मंजिल के इस अति विशाल भवन में मुख्यमंत्री, मंत्री, सचिव और अन्य अधिकारियों के हर कक्ष में पुरोहितों द्वारा विधि-विधान से पूजन किया गया। दो घंटे चले इस वैदिक कार्यक्रम में ट्रॉल आर्मी को दुआ के हाथ उठाते तीन मौलवी ही दिखाई दिए जिनके बगल में केसीआर श्रद्धा भाव से खड़े थे। यह है एक सच्चे सनातनधर्मी और धर्मनिरपेक्ष भारतीय नेता का व्यक्तित्व। दूसरी ओर धर्म का झंडा लेकर घूमने वाले अपने आचरण से यह कभी सिद्ध नहीं कर पाते कि उनमें सनातन धर्म के प्रति कोई आस्था है। करें भी क्यों जब धर्म उनके लिए केवल सत्ता प्राप्ति का माध्यम है। फिर भी ‘ट्रॉल आर्मी’ यही प्रचारित करने में जुटी रहती है कि उसके नेता तो बड़े धार्मिंक हैं, जबकि विपक्ष के नेता मुस्लिम परस्त हैं। यह सही नहीं है।

चार दशकों के अपने पत्रकारिता जीवन में हर राजनीतिक दल के देश के सभी बड़े नेताओं से मेरे व्यक्तिगत संबंध रहे हैं, चाहे भाजपा हो या कांग्रेस, जनता दल हो या समाजवादी दल, साम्यवादी दल हो या तृणमूल कांग्रेस, मैंने यह पाया है कि भाजपा के अलावा जितने भी दल हैं, वामपंथियों को छोड़ कर, उन सब के अधिकतर नेता आस्थावान हैं, और अपने-अपने विास के अनुरूप अपने आराध्य की निजी तौर पर उपासना करते हैं। अगर इनमें कुछ नेता नास्तिक हैं तो संघ और भाजपा के भी तो बहुत से नेता पूरी तरह से नास्तिक हैं। अंतर इतना है कि स्वयं को धर्मनिरपेक्ष बताने वाले नेता अपनी धार्मिंक आस्था का प्रदशर्न और प्रचार नहीं करते। इसलिए मुसलमानों के सवाल पर देश में हर जगह खुला संवाद होना चाहिए कि आखिर, भाजपा और संघ की इस विषय पर सही राय क्या है? अभी तक इस मामले में उसका दोहरा स्वरूप ही सामने आया है, जिससे उनके कार्यकर्ताओं और शेष समाज में भ्रम की स्थिति बनी हुई है।

विनीत नारायण


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