बोरवेल हादसे : उठ रहे गंभीर सवाल

Last Updated 10 Jun 2023 01:31:22 PM IST

मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के सीहोर (Sihore) में 300 फुट गहरे बोरवेल में गिरी ढाई साल की बच्ची (Two and a half year old girl fell in borewell0 सृष्टि (Sristi) आखिरकार, 55 घंटे की जद्दोजेहद के बाद जिंदगी की जंग हार गई।


बोरवेल हादसे : उठ रहे गंभीर सवाल

6 जून की दोपहर एक बजे वह खेलते समय खेत में बने बोरवेल में गिर गई थी। हालांकि बच्ची को बोरवेल से सुरक्षित बाहर निकालने के लिए सेना, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ और स्थानीय प्रशासन की टीमें निरंतर अभियान में जुटे थे लेकिन उसे बोरवेल से निकालने का काम तब और कठिन हो गया था, जब वह 20 फुट की गहराई से फिसल कर बोरवेल में करीब 100 फुट नीचे चली गई थी। उसके बाद उसे बचाने के लिए रोबोटिक एक्सपर्ट की टीम की मदद ली गई जिसने 8 जून की शाम को बच्ची को बाहर तो निकाल लिया लेकिन उसकी जान नहीं बचाई जा सकी।

इस दर्दनाक हादसे से चंद रोज पहले 4 जून को गुजरात के जामनगर जिले में भी दो साल की एक बच्ची की 200 फुट गहरे बोरवेल में गिर कर मौत हो गई थी। बोरवेल में 20 फुट की गहराई पर फंसी उस मासूम को भी 19 घंटे के बचाव अभियान के बाद बचाने में सफलता नहीं मिली थी। 20 मई को जयपुर के भोजपुरा गांव में भी 9 साल का एक बच्चा 200 फुट गहरे बोरवेल में गिर कर 70 फुट की गहराई पर फंस गया था लेकिन उसे कुछ घंटों की मशक्कत के बाद बचा लिया गया था। इसी साल 15 मार्च को मध्य प्रदेश में विदिशा जिले के लटेरी गांव में 7 साल के लोकेश कुमार की भी बोरवेल में गिरने से मौत हो गई थी।

बीते कुछ ही वर्षो में बोरवेल के ऐसे अनेक दर्दनाक हादसे सामने आ चुके हैं, जिनमें कई मासूम दर्दनाक मौत की नींद सो चुके हैं। नेशनल डिजास्टर रिस्पांस फोर्स (एनडीआरएफ) की एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले कुछ वर्षो में कई बच्चे बोरवेल में गिर चुके हैं, लेकिन उन्हें बचाने में करीब 70 फीसदी रेस्क्यू ऑपरेशन नाकाम रहे। निरंतर होते ऐसे हादसों को लेकर सबसे बड़ा सवाल यही है कि मासूम बच्चों की समाधि बनते इन बोरवेल हादसों को लेकर समाज से लेकर पूरा सिस्टम आखिर, कब गंभीर होगा? एनडीआरएफ के मुताबिक बोरवेल उपयोग के मामले में भारत पूरी दुनिया में नंबर 1 पर है, और बोरवेल से जुड़े अधिसंख्य हादसों में छोटे बच्चे शिकार बनते हैं, जिनमें से 30 प्रतिशत बच्चों के ही सुरक्षित बाहर निकाले जाने की संभावना होती है। बोरवेल में गिरने के करीब 92 प्रतिशत मामलों में 10 वर्ष से कम आयु के बच्चे होते हैं।

एनडीआरएफ की रिपोर्ट के अनुसार बोरवेल के पानी से शहरी और औद्योगिक जरूरतों की करीब 50 फीसदी पूर्ति होती है, इसके अलावा पानी से कृषि संबंधी करीब 55 फीसदी जरूरतें पूरी होती हैं। ग्रामीण क्षेत्र तो पानी की अपनी जरूरतों के लिए 80 फीसदी से भी ज्यादा बोरवेल पर ही निर्भर है।

आंकड़े देखें तो भूगर्भ जल विभाग के अनुसार देश भर में करीब 2.7 करोड़ बोरवेल हैं, लेकिन सक्रिय बोरवेल की संख्या, अनुपयोगी बोरवेल की संख्या और उनके मालिकों का राष्ट्रीय स्तर पर कोई डाटाबेस नहीं है, और चिंता की बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणियों के बावजूद सिस्टम ऐसे हादसों को लेकर गंभीर नहीं है। बोरवेल खुदाई को लेकर अलग-अलग राज्यों के हाई कोर्ट के भी कई निर्देश हैं, और इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट भी कह चुका है कि नियमों का पालन कराने की जिम्मेदारी कलेक्टर की होगी जो सुनिश्चित करेंगे कि केंद्रीय या राज्यों की एजेंसी द्वारा सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी मार्गदर्शिका का सही तरीके से पालन हो। तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एसएच कपाड़िया, जस्टिस राधाकृष्णन और जस्टिस स्वतंत्र कुमार की पीठ ने बच्चों को गंभीर बोरवेल हादसों से बचाने के लिए एक रिट पिटीशन पर सुनवाई कर 6 अगस्त, 2010 को एक आदेश पारित किया था और उसी समय से यह फैसला देश भर में लागू है, लेकिन इसका सही तरीके से पालन आज तक सुनिश्चित नहीं किया गया है।

सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के अनुसार बोरवेल की खुदाई से पहले कलेक्टर अथवा ग्राम पंचायत को लिखित सूचना देनी होगी। खुदाई करने वाली सरकारी, अर्धसरकारी संस्था या ठेकेदार का पंजीयन होना चाहिए। बोरवेल खुदवाने के कम से कम 15 दिन पहले डीएम, ग्राउंड वाटर डिपार्टमेंट, स्वास्थ्य विभाग और नगर निगम को सूचना देना अनिवार्य है। बोरवेल की खुदाई वाले स्थान पर साइन बोर्ड लगाया जाना चाहिए, खुदाई के दौरान आसपास कंटीले तारों की फेंसिंग की जानी चाहिए तथा फेंसिंग पाइप के चारों ओर सीमेंट अथवा कंक्रीट का 0.3 मीटर ऊंचा प्लेटफार्म बनाना चाहिए। बोरवेल के मुहाने पर स्टील की प्लेट वेल्ड की जाएगी या उसे नट-बोल्ट से अच्छी तरह कसना होगा। बोरवेल की खुदाई पूरी होने के बाद खोदे गए गड्ढ़े और पानी वाले मार्ग को समतल किया जाएगा। खुदाई अधूरी छोड़ने पर मिट्टी, रेत, बजरी, बोल्डर से बोरवेल को जमीन की सतह तक भरा जाना चाहिए। अदालत के इन दिशा-निर्देशों का पालन कहीं होता नहीं दिख रहा। और न ही नियमों का पालन नहीं करने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई होती दिखती है।

वैसे बोरवेल हादसों में बच्चों को बचाने में अक्सर सेना-एनडीआरएफ की बड़ी विफलताओं को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं कि अंतरिक्ष तक में धाक जमाने में सफल हो रहे भारत के पास चीन तथा कुछ अन्य देशों जैसी वे स्वचालित तकनीक क्यों नहीं हैं, जिनका इस्तेमाल कर ऐसे मामलों में बच्चों को अपेक्षाकृत काफी जल्दी बोरवेल से बाहर निकालने में मदद मिल सके। देश में ऐसी स्वचालित तकनीकों की व्यवस्था करने की सख्त दरकार है, जो ऐसी विकट परिस्थितियों में शीघ्र राहत प्रदान करने में सक्षम हों। बहरहाल, न केवल सरकार, बल्कि समाज को भी निरंतर होते बोरवेल हादसों में दम तोड़ते मासूम बचपन को बचाने के लिए चेतना होगा।

योगेश गोयल


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