तोड़नी होगी दरिंदगी की जंजीर
देश अजीब तरह की हैवानियत और नृसंशता से दो चार हो रहा है। श्रद्धा हत्याकांड तो बानगी मात्र है। उसके बाद हजारों ऐसी घटनाएं घटी जिनमें कातिल ने हैवानियत की सारी हदें पार कर दीं।
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ये मानसिक रुग्णता का परिचायक है कि मरने वाले को मरने के बाद भी नहीं बख्शा जा रहा। शवों के साथ दरिंदगी की पराकाष्ठा को देखते हुए हाल में कर्नाटक हाई कोर्ट को दखल देना पड़ा। दरअसल, भारत जैसे देश में शवों के साथ दुष्कर्म करने या नृसंशता करने वालों के खिलाफ कोई सख्त कानूनी प्रक्रिया या लिखित दंड प्रावधान उपल्ब्ध नहीं है, जिसके चलते पापकर्म करने वाले शैतान कानूनी शिकंजे से बच निकलते हैं, जबकि कनाडा और ब्रिटेन समेत कई देशों में शव के साथ दुष्कर्म करने वालों के लिए कड़े कानूनी प्रावधान किए गए हैं।
संभवत: भारत जैसे देश में कानूनिवद् ने कानून बनाते समय ऐसे आतताइयों की परिकल्पना नहीं की होगी जो दिवंगत लोगों खास तौर से महिलाओं के शवों के साथ दुष्कर्म जैसी घृणास्पद घटना को अंजाम देते हैं। इस स्थिति को समझने के लिए कर्नाटक के इस मामले को समझना बहुत जरूरी होगा जहां उच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को साफ तौर पर निर्देशित किया है कि शव से दुष्कर्म करने वालों के खिलाफ सख्त कानून लाए। भले ही इसके लिए भारतीय दंड संहिता के मौजूदा संबंधित प्रावधानों में संशोधन करे या इस अपराध के खिलाफ नया सख्त कानून लाए ताकि दुष्कर्मिंयों को कड़ी से कड़ी सजा दी जा सके।
हाई कोर्ट ने यह बात एक मृत शरीर से दुष्कर्म करने वाले आरोपी को बरी करने के बाद की है। आईपीसी की धारा 376 के तहत दुष्कर्म के प्रावधानों में मृत शरीर के साथ दुष्कर्म करने वाले को दोषी नहीं मानने के कारण यह फैसला लिया गया। दरअसल, किसी व्यक्ति ने एक महिला की हत्या कर उसके शव के साथ दुष्कर्म किया था। लेकिन आईपीसी की धारा 375 या 377 के तहत उसे दोषी नहीं ठहराया जा सका। इन दोनों धाराओं का अध्ययन बताता है कि मृत शरीर को मानव या व्यक्ति के रूप में नहीं देखा जा सकता। इसलिए धारा 376 के तहत इस तरह का दुष्कर्म दंडनीय अपराध की श्रेणी में नहीं आता। इसलिए घृणित और जघन्य अपराध करने के बाद भी अपराधी साफ बच निकलते हैं। हालांकि दूसरे देशों में यह दंडनीय अपराध है।
समय आ गया है भारत में भी इस पर गंभीर कानूनी विमर्श शुरू हो ताकि ऐसे जघन्य अपराधियों को अति क्रूरता के दायरे में रखते हुए कठोर से कठोर सजा दी जा सके। मौजूदा आईपीसी की धारा 377 में संशोधन करने की प्रक्रिया यथाशीघ्र शुरू हो। साथ ही इस धारा में पुरु ष महिला और जानवरों के शव को भी शामिल किया जाए। तभी ऐसे अपराधों पर लगाम लगेगी। आये दिन आने वाली खबरों से हम हलकान रहते हैं।
कहीं किसी ने किसी को मारकर उसका शव पका कर खा लिया तो किसी ने शव के टुकड़े कर जानवरों के सामने परोस दिया तो किसी ने दरिंदगी की हदें पारकर शव के साथ ही दुष्कर्म कर लिया। आखिर, मानवता किस ओर बढ़ रही है। मानसिक दिवालियेपन को रोकना है तो सख्त कानून के साथ समाज को सद्भावना, शांति और सत्यता का पाठ पढ़ाना भी जरूरी होगा। ये छोटी घटनाएं नहीं हैं। किसी भयानक त्रासदी की ओर इशारा कर रही हैं। इससे पहले कि मानस आदमखोरी की ओर बढ़े, हमें चेतना होगा और नैतिकता और मानवता को जीवन का मुख्य अंग बनाते हुए साधना, सद्विचार और संयम को प्रचारित करना होगा।
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