विपक्षी एकता : हितों का टकराव बड़ी समस्या
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) भाजपा के खिलाफ विपक्षी दलों का मजबूत मोर्चा बनाने की कवायद में जुटे हैं।
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विभिन्न क्षेत्रीय दलों के प्रमुखों से मिलकर उन सबको भाजपा के विरोध में एकजुट होने के लिए तैयार कर रहे हैं। उनका प्रयास है कि मजबूत विकल्प के अभाव में पिछले नौ वर्षो से केंद्र में भाजपा की सरकार चला रहे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के समक्ष विरोधी दलों का मजबूत विकल्प प्रस्तुत किया जाए ताकि अगले लोक सभा चुनाव में भाजपा को केंद्र की सत्ता से बाहर किया जा सके।
नीतीश ने जब से बिहार में भाजपा से गठबंधन तोड़ा है, उसके बाद से उनका प्रयास है कि भाजपा के बढ़ते प्रभाव पर रोक लगाकर उनकी मनमानी को रोका जाए। उनका मानना है कि पहले सभी भाजपा विरोधी दल एक मंच पर आकर चुनाव में भाजपा को हराएं। उसके बाद प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार का चयन किया जाएगा। भाजपा विरोधी दलों में इस समय नीतीश ही ऐसे नेता हैं, जिनके सभी दलों के नेताओं से सौहार्दपूर्ण संबंध हैं। नीतीश कुमार की मुहिम में अधिकांश राजनीतिक दलों ने साथ देने का वादा भी किया है। बिहार में राष्ट्रीय जनता दल, हम सहित कई राजनीतिक दल पहले से ही नीतीश नीत गठबंधन सरकार में साथ हैं। हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी, असम से सांसद बदरु द्दीन अजमल की पार्टी ने भी नीतीश की मुहिम में शामिल होने के लिए हां कर दी है। नीतीश को बहुत से स्थानों पर सफलता नहीं भी मिल रही। कहने को तो ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक उनके घनिष्ठ मित्र हैं। मगर नीतीश की मुहिम में शायद ही शामिल हों। नवीन पटनायक केंद्र की भाजपा सरकार का हर मुद्दे पर साथ देते हैं। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री व वाईएसआर कांग्रेस के अध्यक्ष जगनमोहन रेड्डी भी अंतत: भाजपा की तरफ ही जाएंगे। चंद्रशेखर राव भी कांग्रेस के साथ किसी मोर्चे में शामिल होना पसंद नहीं करेंगे। उन्होंने अपनी पार्टी का नाम बदल कर भारतीय राष्ट्र समिति कर दिया है। उनका कहना है कि आने वाले चुनावों में वह कई प्रदेशों में अपनी पार्टी के उम्मीदवार उतारेंगे। ऐसे में तेलंगाना में उनकी कांग्रेस से सीधी टक्कर है। इसलिए उनका नीतीश कुमार के मोर्चे में शामिल होना मुश्किल लग रहा है।
बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी से दूरी बना कर चल रही हैं। उन्होंने अकेले ही लोक सभा चुनाव लड़ने की घोषणा की है। ऐसी परिस्थिति में वह ऐसे किसी मोर्चे में शामिल नहीं होंगी जहां सपा और कांग्रेस शामिल हों। आम आदमी पार्टी (आप) का भी दिल्ली, पंजाब, गुजरात सहित हिन्दीभाषी बेल्ट में भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस से भी सीधा मुकाबला है। आप ने कांग्रेस के वोट बैंक पर ही अपना आधार बनाया है। जहां-जहां कांग्रेस कमजोर हुई है, वहां-वहां आप मजबूत हुई है। ऐसी स्थिति में कांग्रेस के नेता आप के साथ गठबंधन में शायद ही शामिल हों। केंद्र सरकार द्वारा दिल्ली में सरकार व उपराज्यपाल के अधिकारों को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले के खिलाफ अध्यादेश जारी किया गया है, जिसके खिलाफ आप राज्य सभा में सभी विपक्षी दलों से सहयोग मांग रही है। मगर आप को राज्य सभा में सहयोग देने के मसले पर कांग्रेस के अंदर ही विरोध हो गया है। कांग्रेस महासचिव अजय माकन, पूर्व सांसद संदीप दीक्षित, पंजाब कांग्रेस विधायक दल के नेता प्रताप सिंह बाजवा सहित कई नेताओं ने आप को कांग्रेस की दुश्मन नंबर एक बताते हुए उसे किसी भी तरह का समर्थन नहीं देने की बात कही है। अजय माकन ने तो यहां तक कहा है कि आप भाजपा से मिलकर कांग्रेस को कमजोर करने में लगी हुई है। ऐसे में उन्हें किसी भी तरह का समर्थन देना आत्मघाती कदम साबित होगा।
पहले हिमाचल फिर कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भाजपा की करारी हार के बाद भाजपा बैकफुट पर नजर आ रही है। प्रधानमंत्री मोदी के धुआंधार प्रचार व रोडशो के उपरांत भी दोनों प्रदेशों में भाजपा अपनी सरकार नहीं बचा सकी थी। इससे कांग्रेस सहित सभी विपक्षी दलों के हौसले बुलंद नजर आ रहे हैं। कांग्रेस का मानना है कि राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, जम्मू-कश्मीर विधानसभा के आगामी चुनाव में विपक्षी दल एकजुट होकर चुनाव लड़ें तो भाजपा को आसानी से हराया जा सकता है। यदि इन प्रदेशों में भाजपा हार जाती है तो लोक सभा चुनाव में उसका मनोबल काफी कमजोर हो जाएगा। वहीं इन प्रदेशों में जीतने से विपक्षी दलों की एकजुटता और अधिक मजबूत होगी जिसका लाभ उन्हें लोक सभा चुनाव में मिल सकेगा।
नीतीश द्वारा 12 जून को पटना में आयोजित विपक्षी दलों की बैठक अचानक स्थगित कर दी गई है। बताया जा रहा है कि अगली तिथि की घोषणा जल्द ही कर दी जाएगी। आगामी बैठक में जितने अधिक विपक्षी दलों के नेता शामिल होंगे, उतनी ही विपक्ष की राजनीति मजबूत होगी। भाजपा को हराने के लिए विपक्षी दलों के नेताओं को याद रहे कि आपसी हितों और टकराव को टाल कर एकजुटता से मुकाबला करने पर ही वे कामयाब हो पाएंगे।
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