स्वदेशी जीपीएस : कामयाबी है कुछ खास

Last Updated 06 Jun 2023 01:35:58 PM IST

स्वदेशी नेविगेशन प्रणाली को मजबूत करने की दिशा में बड़ी कामयाबी हासिल करते हुए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने सेकंड जनरेशन नेविगेशन सैटेलाइट एनवीएस-01 (NVS-01) को सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित किया।


स्वदेशी जीपीएस : कामयाबी है कुछ खास

इस सैटेलाइट को जीएसएलवी एफ-10 रॉकेट (GSLV F-10 Rocket) से प्रक्षेपित किया गया। यह इस सेकंड जनरेशन सीरीज का पहला सैटेलाइट है। इससे स्वदेशी नेविगेशन प्रणाली ज्यादा सटीक हो सकेगी। सबसे महत्त्वपूर्ण बात  यह है कि एनवीएस-01 सैटेलाइट में स्वदेशी परमाणु घड़ी लगाई गई है। इसके पहले सटीक तिथि और जगह की जानकारी का पता लगाने के लिए रूबिडियम परमाणु घड़ियों को आयात करना पड़ता था। इसरो ने इस मिशन के लिए खास तौर पर अपने देश में विकसित रूबिडियम परमाणु घड़ी का इस्तेमाल किया है। इसे विकसित करने की तकनीक कुछ ही देशों के पास है।

परमाणु घड़ियों द्वारा ही सिग्नल भेजने और सिग्नल प्राप्त करने में लगे समय की गणना की जाती है। इसके आधार पर स्थान निर्धारण किया जाता है। एनवीएस-01 की लॉन्चिंग नाविक (नेविगेशन विद इंडियन कांस्टेलेशन) सर्विस की निरंतरता सुनिश्चित करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण है। यह अमेरिका के जीपीएस की तरह भारत का अपना सैटेलाइट नेविगेशन सिस्टम है, जिससे रियल टाइम और सटीक नेविगेशन संभव होता है। असल में  इंडियन रीजनल नेविगेशन सिस्टम के तहत सात सैटेलाइट प्रक्षेपित किए गए  थे। इनके जरिए भारत में नेविगेशन सेवाएं मिल रही थीं। इनका इस्तेमाल सेना और विमान सेवाओं के लिए किया जा रहा था। इनमें से तीन सैटेलाइट काम नहीं कर रहे थे। इसलिए इसरो ने 5 नये सैटेलाइट लॉन्च करने की ठानी। एनवीएस-01 उनमें से एक है। इन आधुनिक सैटेलाइट को पुराने सैटेलाइट्स की तुलना में अधिक समय तक काम कर पाने की क्षमता के साथ बनाया गया है। पुराने उपग्रह 10 सालों तक सेवाएं देते हैं जबकि नेक्स्ट जेनरेशन सैटेलाइट 12 सालों तक सटीक सेवाएं दे सकते हैं।

एनवीएस-01 भारत के समुद्र के भीतर सटीक और रियल टाइम नेविगेशन सेवा उपलब्ध कराएगा जिससे समुद्र में जहाजों की रियल टाइम पोजीशन का सटीक अंदाजा लग सकेगा। इससे हवायी, स्थलीय और समुद्री नेविगेशन में भी सहायता मिलेगी। एनवीएस-01 से मोबाइल लोकेशन सर्विसेस और भी दुरुस्त हो जाएंगी। इससे इमरजेंसी सर्विसेस, जियोडेटिक सर्वे, मरीन फिशरीज, कृषि संबंधी जानकारी हासिल करने में भी सहायता मिलेगी। स्वदेशी जीपीएस नाविक से भारत को बहुत फायदा होगा। मसलन, जोमैटो और स्विगी जैसे फूड डिलीवरी सेवाएं और ओला-उबर जैसी सेवाएं नेविगेशन के लिए जीपीएस का इस्तेमाल करती हैं।

नाविक इन कंपनियों के लिए नेविगेशन सब्सक्रिप्शन कॉस्ट को कम कर सकता है, और एक्यूरेसी बढ़ा सकता है। नाविक से अमेरिका के जीपीएस पर निर्भरता कम होगी और इंटरनेशनल बॉर्डर सिक्योरिटी ज्यादा बेहतर होगी। चक्रवातों के दौरान मछुआरों, पुलिस, सेना और हवाई/जल परिवहन को बेहतर नेविगेशन सिक्योरिटी मिलेगी। नाविक टेक्नोलॉजी ट्रैवल और टूरिज्म इंडस्ट्री को मदद कर सकती है। इसके जरिए टूर को ज्यादा इनफॉर्मेटिव और इंटरैक्टिव बनाकर गेस्ट का एक्सपीरियंस और ज्यादा बेहतर बनाया जा सकता है। आम लोग लोकेशन के लिए भी इसका इस्तेमाल कर सकते हैं। भारत का आईआरएनएसएस अमेरिका के ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस), रूस के ग्लोनास, यूरोप के गलीलियो जैसा है। इस कामयाबी के साथ ही भारत का न केवल अपने उपग्रहों का जाल तैयार हो जाएगा, बल्कि अपना जीपीएस भी शुरू हो जाएगा। अब जीपीएस के लिए भारत को दूसरे देशों पर निर्भर रहना नहीं पड़ेगा यानी यह कामयाबी बहुत खास है।

इस मिशन की कामयाबी के साथ ही भारत उन चुनिंदा देशों की जमात में शामिल हो गया है, जिनके पास नेविगेशन पण्राली है। यह अभियान देश के अंतरिक्ष कार्यक्रमों को नई दिशा प्रदान कर रहा है। इससे देश का नेवीगेशन सिस्टम मजबूत होगा जो परिवहनों तथा उनकी सही स्थिति एवं स्थान का पता लगाने में सहायक सिद्ध होगा। नेवीगेशन सिस्टम के लिए आत्मनिर्भरता किसी भी देश के लिए काफी मायने रखती है। एक रिपोर्ट के अनुसार देशी नेवीगेशन सिस्टम  आम आदमी की जिंदगी को सुधारने के अलावा सैन्य गतिविधियों, आंतरिक सुरक्षा और आतंकवाद-रोधी उपायों के रूप में बेहद उपयोगी होगा। खासकर 1999 में करगिल जैसी घुसपैठ और सुरक्षा संबंधी चुनौतियों से इसके जरिए समय रहते निपटा जा सकेगा। करगिल घुसपैठ के समय भारत के पास ऐसा कोई सिस्टम मौजूद नहीं होने से सीमा पार से होने वाली घुसपैठ को समय रहते नहीं जाना जा सका था। बाद में यह चुनौती बढ़ने पर भारत ने अमेरिका से जीपीएस सिस्टम से मदद मुहैया कराने का अनुरोध किया गया था। हालांकि तब अमेरिका ने मदद मुहैया कराने से इनकार कर दिया था। उसके बाद से ही जीपीएस की तरह ही देशी नेविगेशन सैटेलाइट नेटवर्क के विकास पर जोर दिया गया और अब भारत ने खुद इसे विकसित करके बड़ी कामयाबी हासिल की है।

डॉ. शशांक द्विवेदी


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