भागवत का भाषण : विवाद की कोई वजह नहीं

Last Updated 06 Jun 2023 01:41:44 PM IST

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत (Dr Mohan Bhagwat) ने नागपुर (Nagpur) में संघ के प्रशिक्षण शिविर के तृतीय वर्ष के समापन पर जो कुछ बोला उस पर देश में विवाद और बहस चल रही है।


भागवत का भाषण : विवाद की कोई वजह नहीं

हालांकि उनका भाषण काफी लंबा था, जिसका मूल स्वर यही था कि हमारे बीच अलग-अलग प्रकार के भेद हो सकते हैं किंतु सबको राष्ट्र की एकता एवं अखंडता के साथ इसकी मजबूती के लिए एकजुट होकर काम करना चाहिए। इसी मूल स्वर को स्पष्ट करने के लिए उन्होंने बहुत सारी बातें बोलीं। हमारे देश की राजनीति और गैर-राजनीतिक एक्टिविज्म की एक बड़ी समस्या है। संघ के नेता कुछ भी बोलें उनमें से अपने अनुसार कुछ पंक्तियां निकाल कर बवंडर खड़ा करने की हमेशा कोशिश होती है।

उन्होंने दुनिया में इस्लाम के विस्तार का इतिहास बताते हुए कहा कि स्पेन से मंगोलिया तक वे गए लेकिन वहां के लोग जागृत एवं संगठित हुए, संघर्ष किया तो वहां इस्लाम उस रूप में नहीं है। भारत ऐसा देश है, जहां इस्लाम को अपने मजहब के अनुसार उपासना करने की पूरी स्वतंत्रता है। संभवत: वे यह समझाने की कोशिश कर रहे थे कि जो लोग भारत में इस्लाम खतरे में है कि भयानक तस्वीर पेश कर रहे हैं, वे गलत हैं। इससे देश की एकता खंडित होती है। अपने देश का हित चाहने वाला कोई भी बड़ा व्यक्तित्व यही कहेगा कि मजहब आपका जो भी हो ऐसी भाषा मत बोलिए, ऐसी सोच मत फैलाइए जिससे देश के अंदर अविास बढ़े और हमारा विकास बाधित हो।

देखें तो डॉ. भागवत ने केवल इतिहास का तथ्य रखा। सच यही है कि इस्लाम का विस्तार तेजी से यूरोप से लेकर एशिया, अफ्रीका आदि में हुआ। इस्लाम के विस्तारकों ने भीषण आक्रमणों की क्रूरता से यहूदी एवं ईसाई धर्म को पूरी तरह खत्म करने की कोशिश की। वे विजित होते, आगे बढ़ते गए। इसी के विरुद्ध विद्रोह हुआ और इतिहास में क्रूसेड यानी धर्मयुद्ध  की लंबी श्रृंखला है। लगभग सात धर्मयुद्ध का इतिहास 11वीं सदी के अंत से लेकर 13वीं सदी के अंत तक लगातार मिलता है। यूरोप के ईसाइयों ने 1098-1291 के बीच अपने रिलीजन की पवित्र भूमि फिलिस्तीन और उसकी राजधानी यरुशलम स्थित ईसा की समाधि का गिरजाघर मुसलमानों से छीनने और अपने अधिकार में करने के प्रयास में युद्ध किए। यह धीरे-धीरे विस्तारित हुआ। वास्तव में धर्मयुद्ध इतिहास के पश्चिमी काल विभाजन के अनुसार मध्यकाल में लैटिन चर्च द्वारा आरंभ, समर्थित और कभी-कभी निर्देशित धार्मिंक युद्धों की लंबी श्रृंखला थी। 1095  में यह प्रथम धर्मयुद्ध आरंभ हुआ और 1099 में यरुशलम की विजय हुई। ये युद्ध किसी न किसी तरह 15वीं सदी तक चलते रहे। आप गहराई से देखेंगे तो ईसाइयत और इस्लाम का टकराव पूरी तरह कभी खत्म नहीं हुआ। 19वीं सदी के महाद्वीपीय युद्ध हों या फिर 20वीं सदी का बाल्कन युद्ध, जिसके परिणामस्वरूप प्रथम युद्ध हुआ। उसकी भी छानबीन करें तो मूल कारण आपको यही दिखाई देगा। तो यह सत्य है जो इतिहास का ज्ञान रखने वाले सभी को पता है। इसका अर्थ हुआ कि जिस तरह इस्लाम ने ईसाइयत को खत्म करने और अपने ही मजहब को थोपने की कार्रवाई की उसकी प्रतिक्रिया में ईसाइयों ने भी वही किया।

भारत का चरित्र इससे बिल्कुल अलग रहा। हमले का प्रतिकार एक बात थी, मजहब के रूप में इस्लाम को कभी कोई खतरा भारत में नहीं रहा। ऐसा लगता है डॉ. भागवत ने यही बात समझाने के लिए इसका उल्लेख किया। आज का भयावह सच यही है कि लंबे समय से संघ विरोधियों तथा राजनीति में भाजपा विरोधियों ने भारत सहित दुनिया भर में दुष्प्रचार किया है। मुसलमानों के अंदर भी ऐसे लोग हैं, जिन्होंने यही प्रचारित किया है कि ये संगठन इस्लाम विरोधी है तथा इनकी शक्ति जैसे-जैसे बढ़ेगी ये इस्लाम को मजहब के रूप में खत्म करने की कोशिश करेंगे। अनेक कट्टरपंथी मजहबी इस्लामिक नेता लगातार बोल रहे हैं कि हमारी मस्जिदें छिन जाएंगी, हमारा नमाज पढ़ना तक रुक जाएगा। ऐसे दुष्प्रचारों से आम मुसलमानों के अंदर गुस्सा बढ़ाया गया है, और उन्हें लगता है कि अपने मजहब की रक्षा के लिए किसी भी सीमा तक जाना चाहिए। आपको हर दिन और किसी दिन न जाने कितनी बार सुनने को मिलता है कि भारत की धार्मिंक विविधता खतरे में है, संविधान खतरे में है, हिंदुत्ववादी तत्वों ने सारी संस्थाओं को नियंत्रित कर लिया है, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नष्ट कर दी गई है आदि-आदि। जिस देश में बड़े नामचीन और प्रभावी लोग इस तरह देश की दिन-रात डरावनी तस्वीर पेश कर रहे हों, वहां किस तरह की मानसिकता तैयार होती होगी, इसकी कल्पना आसानी से की जा सकती है।

देश की सीमाओं से बाहर भी कुछ लोग इसी तरह की बातें बोल रहे हैं। इन दुष्प्रचारों को कमजोर करना हर भारतीय का दायित्व है। मोहन भागवत इस समय वि के सबसे बड़े हिंदू संगठन तथा व्यापक संगठन समूह के प्रमुख हैं। इस नाते उनका दायित्व सबसे ज्यादा है। सबसे ज्यादा आरोप इस संगठन परिवार पर ही लगते हैं, इसलिए भी उन्हें समय-समय पर अलग-अलग तथ्यों और तकरे से अपने स्वयंसेवकों, कार्यकर्ताओं, समर्थकों के साथ सभी भारतीयों एवं दुनिया भर में रहने वाले भारतवंशियों और भारत में रुचि रखने वालों को संदेश देना पड़ता है।

किसी भी संगठन और विचारधारा से असहमत होने में न समस्या है, और न बुराई। एक स्वस्थ लोकतांत्रिक समाज का यही स्वाभाविक लक्षण है। समस्या तब आती है, जब आप दुराग्रह और हठधर्मिंता अपनाते हैं, और निहित स्वाथरे के वशीभूत अनर्गल बातें करते हैं। ऐसा नहीं होता तो डॉ. भागवत के भाषण का स्वागत होता। आप किसी भी विचारधारा के हों, अंतिम लक्ष्य सबका अपने देश की उन्नति तथा इसकी एकता एवं अखंडता को बनाए रखना ही होगा। डॉ. भागवत का पूरा भाषण सार्वजनिक है। स्वतंत्रता के अमृत काल में भारत की आंतरिक और बाहरी उपलब्धियों का उल्लेख करते हुए वे हर भारतीय का आत्मविास बढ़ाते हैं, उसे देश के लिए विचारने और काम करने की प्रेरणा देते दिखते हैं। डॉ. भागवत के पूरे भाषण की थीम यही है कि आपके मतभेद होंगे लेकिन देश हित का ध्यान रखेंगे तो ये अपने आप कम हो जाएंगे और इसकी कोशिश हर भारतीय को करते रहना चाहिए। डॉ. भागवत के भाषण का सार यही है।

अवधेश कुमार


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