खाद्य सुरक्षा : आम जन को भी होना होगा प्रतिबद्ध
विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization) ने संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) के सहयोग से 7 जून, 2019 से हर साल 7 जून को विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस (World Food Safety Day) के रूप में मनाने का फैसला किया।
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विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की रिपोर्ट के अनुसार हर साल दुनिया भर में अनुमानित 42,0000 लोग दूषित भोजन (contaminated food) खाने से मर जाते हैं। अनुमान लगाया जा सकता है कि दुनिया में बेहतर भोजन-पानी की कितनी किल्लत है।
भारत सरकार की नई खाद्य सुरक्षा योजना (Government of India's new food security scheme) 1 जनवरी, 2023 से लागू की गई। नई योजना राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (New Scheme National Food Security Act) के अंतर्गत 81.35 करोड़ लाभार्थियों को 2023 के दौरान मुफ्त खाद्यान्न (free food) बांटा जा रहा है। खाद्य सुरक्षा नागरिकों के अधिकार के अंतर्गत आती है। लोगों को पर्याप्त भोजन का अधिकार सार्वभौमिक मानव अधिकार है, जिसे तब महसूस किया जाता है, जब सभी लोगों को किसी प्रकार के भेदभाव के बिना पर्याप्त भोजन या इसकी खरीद के साधन हर समय भौतिक और आर्थिक रूप से उपलब्ध हों। दरअसल, दुनिया में खाद्यान्न सुरक्षा की समस्या की जो वजहें हैं, वे सामान्य नहीं हैं। जैसे विकसित देशों में दूषित खाद्य और पानी से मरने वाले वे लोग हैं, जो बहुत गरीब हैं। विकासशील देशों में दूषित भोजन से बीमार पड़ने और मरने वाले गरीब नहीं हैं, बल्कि धनी वर्ग से भी हैं, जो बाजार से खाद्यान्न खरीद कर बगैर समझे-बूझे इनका इस्तेमाल करते हैं।
कैंसर, हृदयाघात, बीपी, शुगर और इसी तरह की गंभीर बीमारियों की चपेट में ज्यादातर मध्यवर्ग या धनी वर्ग के लोग ज्यादा हैं। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 40 प्रतिशत भोजन बेकार चला जाता है। यह मात्रा ब्रिटेन में हर साल उपयोग होने वाले भोजन के बराबर है। देश में हर साल 25.1 करोड़ टन से अधिक खाद्यान्न का उत्पादन होता है। बावजूद हर चौथा व्यक्ति भूखा या आधे पेट सोता है। कृषि मंत्रालय की फसल अनुसंधान इकाई सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ हाव्रेस्ट इंजीनियरिंग एंड टेक्नोल्ॉजी (सीफैट) की रिपोर्ट के मुताबिक, देश में हर साल करीब 87 लाख टन खाद्यान्न उचित भंडारण और कोल्ड स्टोरेज की मुकम्मल व्यवस्था न होने के कारण खराब हो जाता है, जिसकी कीमत 92 हजार रुपये करोड़ आंकी गई है। गौरतलब है कि बर्बाद होने वाला खाद्यान्न उतना है, जितने से ब्रिटेन जैसे देश की खाद्य जरूरत पूरी होती है।
देश में हर साल 20 हजार करोड़ रुपये की फल-सब्जियां बर्बाद हो जाती हैं। देश में सालाना तकरीबन 16.2 करोड़ टन सब्जियों और 8.1 करोड़ टन फलों का उत्पादन होता है। सीफैट हर साल फसलों की कटाई के बाद खाद्य पदाथरे पर रिपोर्ट कृषि मंत्रालय को देता है। इसकी रिपोर्ट के मुताबिक, हर साल करीब 20-22 फीसदी तक फल-सब्जियां कोल्ड स्टोरेज और प्रसंस्करण सुविधाओं के अभाव में खराब हो जाती हैं यानी हर साल करीब 20 हजार करोड़ रुपये की फल-सब्जियां बर्बाद हो जाती हैं। इसी तरह 23 करोड़ टन दाल वितरण पण्राली की खामियों की वजह से बर्बाद हो जाती है। सीफैट के अनुसार, फल-सब्जियों को बर्बाद होने से रोकना है, तो कोल्ड स्टोरेज की संख्या दुगुनी करनी होगी। हालांकि देश में 6500 से ज्यादा कोल्ड स्टोरेज हैं, जिनकी भंडारण क्षमता 3.1 करोड़ टन है। गौर करने वाली बात यह भी है कि सब्जियों में हर साल टमाटर, प्याज अलग-अलग कारणों से बाजार में पहुंचने के पहले ही बर्बाद हो जाते हैं।
सीफैट की रिपोर्ट कहती है कि देश भर में हर साल कोल्ड स्टोरेज के अभाव में 10 लाख टन प्याज बाजार में नहीं पहुंच पाती। 22 लाख टन टमाटर भी अलग-अलग कारणों से बाजार नहीं पहुंच पाते। अनुमान लगाया जा सकता है कि हर साल कितने बड़े पैमाने पर खाद्यान्न, फल-सब्जियां बर्बाद हो जाते हैं। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के जरिए जारी फूड वेस्टेज इंडेक्स रिपोर्ट के अनुसार बीते सालों में दुनिया भर में अनुमानित 93.10 करोड़ टन खाना बर्बाद हो गया, जो वैश्विक स्तर पर कुल खाने का 17 फीसदी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय घरों में हर साल करीब 6.87 करोड़ टन खाना बर्बाद हो जाता है। घरों और दूसरी जगहों पर बर्बाद होने वाला भोजन करोड़ों टन है। आंकड़े के अनुसार 93.10 करोड़ टन बर्बाद खाने में से 61 फीसदी हिस्सा घरों, 26 फीसदी खाद्य सेवाओं और 13 फीसदी खुदरा जगहों से आता है।
यह तो तब है जब शादियों और समारोहों में फिजूलखर्ची रोकने के लिए 2006 से अधिनियम लागू है। इसका सख्ती से पालन किया जाए तो भोजन की बर्बादी काफी हद तक रोकी जा सकती है। यदि प्रति व्यक्ति का आंकड़ा लगाया गए तो देश में 12.1 किलो खाने की बर्बादी हो रही है। इसमें घरों के हिसाब से प्रति घर 74 किलो पड़ता है यानी भारतीय घरों में 68,760,163 टन खाना हर साल बर्बाद होता है। भोजन बर्बाद करने वालों में दक्षिण एशियाई देशों की सूची में 82 किलो के साथ अफगानिस्तान ऊपर तो है, लेकिन भारत भी उसी के आसपास है। यह उस भारत की हाल है जहां रोजाना तकरीबन 194 मिलियन लोग आधे पेट सोने के लिए मजबूर हैं। वैश्विक भूख सूचकांक के मुताबिक, भारत को महाशक्ति बनने के लिए 117 देशों से आगे निकलना पड़ेगा। यह तभी हो सकेगा जब कृषि, उद्योग, स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में छलांग लंबी होगी। खासकर कृषि उत्पादों के रखरखाव और विपणन में सुधार करना होगा।
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