पुराना संसद भवन : अतीत की राह पर

Last Updated 31 May 2023 07:27:25 AM IST

ब्रिटिश राज और संप्रभुता संपन्न गणराज्य के बीच एक अति महत्त्वपूर्ण संवैधानिक कड़ी के रूप में मौजूद भारत का संसद भवन नये भवन के उद्घाटन के साथ ही अतीत बन गया है।


पुराना संसद भवन : अतीत की राह पर

वास्तुकला के इस बेजोड़ नमूने के साथ ही भारत के संसदीय इतिहास ने भी नया मोड़ ले लिया। अतीत बने संसद भवन ने 1927 से लेकर 1952 तक ब्रिटिश राज के लिए भारत के विधान तय किए और 1951-52 में भारत गणराज्य के पहले चुनाव से लेकर 2019 तक चुनी गई 17 लोक सभाओं को विराजमान किया। निरंतर 71 सालों तक संसद का स्थायी सदन राज्य सभा भी इसी भवन में भारत के भविष्य को लेकर चिंतन करता रहा।

इसी भवन में 14 और 15 अगस्त की मध्य रात्रि को पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का वह कालजयी भाषण हुआ था जो ‘ट्रीस्ट विद डेस्टिनी’ यानी-नियति के साथ साक्षात्कार-के नाम से विख्यात हुआ। आजादी के बाद इस संसद भवन ने राष्ट्र निर्माण की दिशा में कई ऐतिहासिक विधान बनाए जिनसे भारत को वि पटल पर नई सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और सामरिक पहचान मिली तथा देश बैलगाड़ी युग से अंतरिक्ष युग तक पहुंच गया। नये संसद भवन के चालू होने के बाद वर्तमान भवन को लोकतंत्र के संग्रहालय में बदलने की योजना है। भारत की ब्रिटिश राजधानी कलकत्ता से 1911 में दिल्ली स्थानांतरित हुई तो उसके लिए अनेक भवनों की आवश्यकता हुई।  

ब्रिटिश शासन व्यवस्था के लिए दिल्ली में ही वायसराय, उनके प्रशासन और विधायिका के लिए दिल्ली में ही भवन बनने लगे। इन सब के डिजाइन की जिम्मेदारी सर एडविन लुटियन और हरबर्ट बेकर को सौंपी गई। इन्होंने अपनी विलक्षण प्रतिभा का प्रदशर्न कर भारत के शासन के संचालन के लिए इन तीनों भवनों के डिजाइन तैयार किए। इनमें सेंट्रल असेंबली भवन 1927 में और वायसराय हाउस 1929 में बन कर तैयार हुआ। वासराय हाउस आजादी के बाद राष्ट्रपति भवन और केंद्रीय असेंबली स्वतंत्र भारत का संसद भवन कहलाया। ब्रिटिश उपनिवेश की याद दिलाने वाले चिह्नों को मिटाने के अभियान में कुछ अन्य इमारतों के साथ ही केंद्रीय असेंबली भवन (संसद भवन) की जगह बहुचर्चित सेंट्रल विस्टा के अंतर्गत नया संसद भवन तो मिल गया मगर अंग्रेजों की याद दिलाने वाले वायसराय हाउस (राष्ट्रपति भवन) के भविष्य को लेकर भी लोक जिज्ञासा स्वाभाविक ही है। इस संसद का डिजाइन सेंट्रल असेंबली के लिए ब्रिटिश आर्किटेक्ट द्वारा तैयार किए जाने के बाद इसका निर्माण 1921 और 1927 के बीच किया गया था। इसे जनवरी, 1927 में इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल के आसन के रूप में खोला गया था। संसद भवन, वास्तुशिल्प वैभव और ऐतिहासिक मील का पत्थर है, जिसने लगभग एक सदी तक भारत की नियति का मार्गदशर्न किया और जिसकी शानदार विरासत अब इतिहास के पन्नों में दर्ज की जाएगी। इसका उद्घाटन 18 जनवरी, 1927 को तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन द्वारा किया गया था।

भारत में ब्रिटिश शासन के अंत के बाद इस भवन में 1946 से जनवरी, 1950 तक दो साल 11 महीने और 18 दिन संविधान सभा चली और फिर 1950 में भारत का संविधान लागू होने के बाद भारतीय संसद द्वारा इसे अपने अधिकार में ले लिया गया। भारत में पाए गए चौंसठ योगिनी मंदिरों को इसकी प्रेरणा माना जाता है जबकि नया संसद भवन बुद्ध की कर्ण मुद्रा पर आधारित है। जरूरत के हिसाब से बाद में 1956 में संसद भवन में दो और मंजिलें जोड़ी गई। 2006 में संसद संग्रहालय बनाया गया। इस संग्रहालय में भारत की समृद्ध लोकतांत्रिक विरासत के ढाई हजार वर्षो को प्रदर्शित किया गया है। उस समय लेजिस्लेटिव असेम्बली भवन कुल 83 लाख की लागत से 24,281 वर्गमीटर क्षेत्र में बना था जिसमें लोक सभा के 552 सदस्यों और राज्य सभा के 245 सदस्यों वाले सदनों के साथ ही 436 सीट वाला एक सेंट्रल हॉल भी था। सेंट्रल हॉल संसद भवन में एक महत्त्वपूर्ण स्थान था, जहां विशेष अवसरों पर दोनों सदनों के संयुक्त सत्र आयोजित किए जाते थे। इसका उपयोग भारत के राष्ट्रपति द्वारा औपचारिक कायरे और महत्त्वपूर्ण अवसरों के लिए भी किया जाता था। इसके अलावा, संसद भवन में कई समिति कक्ष थे जहां संसदीय समितियां अपनी बैठकें आयोजित करती थीं, और कानून और निरीक्षण से संबंधित विभिन्न मामलों पर चर्चा करती थीं।   

इसी में संसद पुस्तकालय भी रहा जो संसद भवन का एक अनिवार्य हिस्सा था, और संसद के सदस्यों के लिए संसाधन और शोध सामग्री प्रदान करता था। इसी इमारत में लोक सभा के अध्यक्ष और राज्य सभा के सभापति के कक्ष होते थे। संसद भवन में ही विभिन्न मंत्रियों के अपने आधिकारिक कर्त्तव्यों और बैठकों को पूरा करने के लिए उनके कक्ष थे। इन विशिष्ट कमरों के अलावा, संसद भवन परिसर के भीतर कार्यालय, स्वागत क्षेत्र, प्रशासनिक स्थान और अन्य सहायक सुविधाएं भी थीं। स्थानाभाव के कारण नये संसद भवन की आवश्यकता 2011 में यूपीए सरकार के कार्यकाल में महसूस की गई थी। इसके लिए तत्कालीन लोक सभा अध्यक्ष मीरा कुमार द्वारा 2011 में एक समिति का गठन किया गया था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2019 में दूसरी बार सत्ता में आने पर सेंट्रल विस्टा परियोजना शुरू की जिसका भाग नया संसद भवन भी था। नये संसद भवन का रविवार, 28 मई को उद्घाटन हुआ। प्रधानमंत्री मोदी ने उद्घाटन किया। हालांकि प्रमुख विपक्षी दल इसका उद्घाटन राष्ट्रपति के माध्यम से चाहते थे।

नया संसद भवन भारतीय स्थापत्य शैली के आधार पर बना है। इसमें लोक सभा के लिए 888 सीटें हैं जबकि राज्य सभा के लिए 384 सीटें रखी गई हैं। संयुक्त सत्रों की स्थिति में 1,272 सीटों की व्यवस्था भी की गई है। तो सवाल उठता है कि क्या अगले परिसीमन में लोक सभा की सीटें बढ़ेंगी? नया संसद भवन 65 हजार स्क्वेयर मीटर में बना है। इसे त्रिकोण आकार में राष्ट्रीय पक्षी मोर की थीम पर बनाया गया है। जानकारों का कहना है कि इसे त्रिकोण आकार में इसलिए बनाया गया है ताकि जगह का सही इस्तेमाल किया जा सके। भारतीय संसद में राष्ट्रपति तथा दो सदन-राज्य सभा (राज्यों की परिषद) एवं लोक सभा (लोगों का सदन) होते हैं। राष्ट्रपति के पास संसद के दोनों सदनों में से किसी भी सदन को बुलाने या स्थगित करने अथवा लोक सभा को भंग करने की शक्ति है।

जयसिंह रावत


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