बेटियों ने फिर लहराया प्रतिभा का परचम

Last Updated 28 May 2023 01:13:45 PM IST

देश में सर्वाधिक प्रतिष्ठित सिविल सेवा परीक्षा के पहले चार स्थानों पर जगह बना कर बेटियों ने फिर अपनी प्रतिभा का परचम लहराया है। इनमें बिहार की दो बेटियां शामिल हैं।


बेटियों ने फिर लहराया प्रतिभा का परचम

पटना की इशिता किशोर ऑल इंडिया टॉपर बनीं वहीं बक्सर की गरिमा लोहिया सेकंड टॉपर। इशिता ने दिल्ली विविद्यालय के प्रतिष्ठित श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स से अर्थशास्र (ऑनर्स) किया है, जबकि गरिमा ने दिल्ली विविद्यालय के किरोड़ीमल कॉलेज से वाणिज्य में स्नातक किया है।

चौथी टॉपर स्मृति मिश्रा (उन्होंने भी दिल्ली विविद्यालय के कॉलेज मिरांडा हाउस से बीएससी में स्नातक किया है) बनीं तो जम्मू के सीमावर्ती पुंछ जिला की प्रसनजीत कौर ने पूरे देश में 11वां रैंक और विदुषी सिंह ने 13वां रैंक लाकर साबित कर दिया है कि हालात चाहे कैसे भी हों अगर मंजिल पर नजर हो तो कोई भी लक्ष्य हासिल किया जा सकता है। यह लगातार दूसरा वर्ष है जब महिला उम्मीदवारों ने प्रतिष्ठित परीक्षा में शीर्ष तीन रैंक हासिल की हैं। सफलता, गर्व और तरक्की की इन कहानियों से देश भर के अभिभावकों का सीना चौड़ा हो गया है। लड़कियों को कमतर आंकने वाले मुंह छुपाए फिर रहे हैं।

जिस सामयिक परिवर्तन के साथ देश की बेटियों ने कामयाबी की यह बड़ी कहानी लिखी है, उसने लड़कियों को लेकर पुराने सभी वैचारिक पैमाने ध्वस्त कर दिए हैं। अकल्पनीय को कल्पनीय बना देने वाली ये बेटियां भले ही साधारण पृष्ठभूमि से आती हों लेकिन सीमित संसाधन का भरपूर शोधन कैसे हो, इस इल्म से वे भली-भांति परिचित हैं। हमारे देश में  ज्ञान और प्रतिभा प्रदशर्न का ख्यातिगान प्राय: किसी बड़ी कामयाबी के बाद ही किया जाता है, लेकिन उससे पहले रेस के इन धावकों की सुध-बुध लेने वाला कोई नहीं होता।

अच्छा होता कि चुनौतियों के बीच प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहीं देश की बेटियों पर पहले से ध्यान दिया जाए ताकि विपरीत परिस्थितियों में उनका संबल न टूटे। वे हारें नहीं। संसाधनहीनता और अपर्याप्त सुविधाओं के बीच किसी तरह हिम्मत बांधे लड़ रही इन बेटियों की आकांक्षाएं परवान चढ़ें इसके लिए सरकार, स्वयंसेवी संस्थाओं और कोचिंग संस्थानों को सिरे से विचार करना चाहिए। सर्वोत्कृष्ट स्थान प्राप्त करने वाली कई बेटियां अभावों के बीच जीते हुए यहां तक पहुंची हैं, तो यह उनकी हिम्मत और जज्बे के कारण ही संभव हो सका है। उनकी पीड़ा, चुनौती और समस्या के विश्लेषण का समय अगर समाज और देश निकाले तो कुछ बात बने। उन्हें सुरक्षा, सम्मान और संबल भी मिले, इसकी भरपूर कोशिश हो। वे जीवन की किताब में आत्मनिर्भरता का पन्ना तभी जोड़ पाएंगी जब हम सब उनके साथ खड़े हों। पारिवारिक मनोबल और सामाजिक संबल से बहुत कुछ बदला जा सकता है।

उन्हें अपने ही घर में भेदभाव की आंच में पकाकर कमजोर न करे। मजबूत बनाने की शुरुआत उनके जन्म के साथ की जाए। ऊंचे उड़ने और आकाश छू लेने की जिद ने आधी आबादी को सतत सफलता के शीर्ष तक पहुंचाया है। उनके बौद्धिक अभावग्रस्त होने की वर्षो पुरानी अवधारणा समय के साथ दरक रही है। अब उनके प्रति दुराग्रहों को तोड़ना होगा।

बेटियां प्रगतिशील सोच के साथ अब अपने आसपास बौद्धिकता उत्कर्ष का एक भरा-पूरा संसार बुन रही हैं।  विरोधात्मक स्थितियों के बीच रहते हुए भी वे अपरिमार्जित विचार तत्व को अपने ऊपर हावी नहीं होने देती। समय आ गया है कि सघनता और संश्लिष्टता से न केवल उनकी बात सुनी जाए, बल्कि उनकी उपादेयता को भी स्वीकारा जाए।

डॉ. दर्शनी प्रिय


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