UPSC result : ऐसे हों देश के ’बड़े बाबू‘

Last Updated 27 May 2023 01:49:45 PM IST

संघ लोक सेवा आयोग यानी UPSC के 2022 के मंगलवार को नतीजे आने के बाद राजधानी के शाहजहां रोड पर स्थित यूपीएससी के धौलपुर हाउस स्थित दफ्तर में सफल अभ्यर्थियों के चेहरे खुशी से दमक रहे थे।


ऐसे हों देश के ’बड़े बाबू‘

नतीजे आने के कुछ दिनों बाद तक सफल कैंडिटेट के मीडिया में इंटरव्यू भी छपते/प्रसारित होते रहते हैं। वे कुछ समय तक नायक रहने के बाद नेपथ्य में चले जाते हैं।  

सच में अपने काम के बल पर बाद में गिनती के ही नौकरशाहों को याद किया जाता है या उनका उदाहरण दिया जाता है। इस लिहाज से के सुब्रमण्यम, टीएन शेषन, जगमोहन, एके दामोदरन, किरण बेदी और निरुपमा राव जैसे कुछ अफसरों का ही ख्याल आता है। दामोदरन ने ही भारत-सोवियत संघ के बीच साल 1971 में हुए शिमला समझौते का मसौदा तैयार किया था। स्वाधीनता के बाद भारत की विदेश नीति की रूपरेखा को दिशा देने में 1953 बैच के आईएफएस अफसर दामोदरन साहब की अहम भूमिका थी। शेषन ने पेट्रोलियम सचिव और फिर मख्य चुनाव आयुक्त के रूप में अमिट छाप छोड़ी। उन्होंने चुनावों में होने वाली धांधली को खत्म करने के दिशा में बड़ी पहल की।

अगर बात केरल में जन्मीं निरु पमा मेनन राव की करें तो वह 1973 में भारतीय विदेश सेवा में शामिल हुई। अपने चार दशक लंबे राजनयिक कॅरियर के दौरान उन्होंने कई महत्त्वपूर्ण कार्यभार संभाले। वह विदेश मंत्रालय, नई दिल्ली में भारत की पहली महिला प्रवक्ता, श्रीलंका में अपने देश की पहली महिला उच्चायुक्त और पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की पहली भारतीय महिला राजदूत थीं। उन्होंने 2009-2011 तक भारत के विदेश सचिव के रूप में कार्य किया। उस कार्यकाल के अंत में उन्हें अमेरिका में भारत का राजदूत नियुक्त किया गया जहां उन्होंने 2011-2013 तक दो साल की अवधि के लिए सेवा की। अब भी सरकार चीन और श्रीलंका के मसलों पर उनकी सलाह लेती है।

किरण बेदी को कौन नहीं जानता। पुलिस अफसर रहते हुए उन्होंने जेलों की स्थिति सुधारने की भरसक कोशिशें कीं। वो सारे देश की रोल मॉडल रहीं। जगमोहन से भी सारा देश वाकिफ है। उन्होंने आईएएस अफसर के रूप में देश के शहरों को बेहतर बनाने की दिशा में श्रेष्ठ काम किया। उनकी देखरेख में दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) ने लाखों लोगों को घर दिए। के सुब्रमण्यम की भी बात करेंगे। वे 1951 बैच के आईएएस टॉपर थे। उन्होंने भारत की रक्षा नीति पर दशकों काम किया। उनके पुत्र एस जयशंकर भारत के विदेश मंत्री हैं। दरअसल, आईएएस, आईपीएस, आएफएस या किसी अन्य अखिल भारतीय सेवा को क्रैक करने से ज्यादा चुनौतीपूर्ण होता है कि आप ईमानदारी से कर्त्तव्यों का निवर्हन करें।

भारत के पहले उपप्रधानमंत्री एवं गृह मंत्री सरदार पटेल ने 21 अप्रैल, 1947 को दिल्ली के मेटकॉफ हाउस में आजाद होने जा रहे भारत के पहले बैच के आईएएस और आईपीएस अफसरों को संबोधित करते हुए कहा था, ‘आपको स्वतंत्र भारत में जनता के सवालों को लेकर गंभीरता व सहानुभूति का भाव रखना होगा।’ सरदार पटेल ने  बाबुओं को स्वराज और सुराज का भी अंतर समझाया था। चूंकि सरदार पटेल ने 21 अप्रैल, 1947 को बाबुओं को संबोधित किया था, इसलिए हर साल 21 अप्रैल लोक सेवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। उस दिन अखिल भारतीय सेवाओं के विभिन्न अधिकारियों को उनकी सर्वश्रेष्ठ सेवा के लिए सम्मानित किया जाता है पर अफसोस होता है कि अब सिविल सेवा के माध्यम से आए तमाम आला अफसर नौकरी पर रहते हुए ही किसी बड़े रसूखदार नेता के खासमखास बन जाते हैं  जिससे कि रिटायर होने के बाद भी उन्हें कोई बढ़िया सी पोस्टिंग मिल जाए या वे राजनीति में अपने भाग्य को बिना किसी समाज सेवा के चमका सकें। देखिए, बड़ा बाबू बनना अहम नहीं है। आप बड़े तब बनते हैं, जब आपके आचरण और व्यक्तित्व पर कोई सवाल खड़े नहीं करता। आपको देश याद तो तब करता है, जब आप कुछ अलग हटकर करके दिखाते हैं।  

भारत में पहली बार चुनाव सुधार लागू करने वाले पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त शेषन ने नई परंपरा की शुरु आत की थी। उन्होंने साबित किया था कि सिस्टम में रहते हुए भी बहुत कुछ सकारात्मक किया जा सकता है। वे अपने दफ्तर में बैठकर काम करने वाले अफसर नहीं थे। चाहते थे कि  चुनाव सुधार करके भारत  के लोकतंत्र को मजबूत किया जाए। शेषन ने अपने लिए कठिन और कठोर राह पकड़ी। चुनाव सुधार का ऐतिहासिक कार्य करके वि भर में नाम कमाया। देश को जगाने के उद्देश्य से 1994-96 के बीच चुनाव सुधारों पर देश भर में सैकड़ों जनसभाओं को संबोधित किया।

फिलहाल तो सफल अभ्यर्थियों को बधाई देने का सिलसिला चल रहा है, लेकिन देखा जाए तो इनके लिए असली चुनौती आने वाले समय में शुरू होगी जब ट्रेनिंग के बाद जिलों में तैनात होंगे। भारत में ब्रिटिश काल के दौर में जब सिविल सर्विसेज की संकल्पना की गई थी तो उसका मुख्य उद्देश्य था कि ये अधिकारी ब्रिटिश राज को मजबूत करने और  ब्रिटिश नीतियों को लागू करने में सहायता करेंगे। इसलिए उन्होंने उच्च पदों पर गोरों को ही तैनात करने की नीति बनाई थी, यहां तक कि शुरुआत में अधिकतर गोरों को ही आईसीएस में चुना जाता था। कहा जाता है कि गोरे अफसर जिस जिले में जिलाधिकारी के तौर पर तैनात होते थे, उस जिले की एक-एक इंच जगह से वाकिफ होते थे। उन्हें पता होता था कि जिले में कृषि भूमि कितने प्रकार की है। कितनी उपजाऊ है, कितनी बंजर है, कितनी सिंचित है, कितनी असिंचित, कौन-कौन प्रकार के पेड़-पौधे हैं, किस गांव की कितनी आवादी है, सामाजिक-आर्थिक संरचना क्या है, जिले में कितनी नदियां और नाले हैं, कितनी औसत वष्रा होती है?

अब कितने अफसरों को इन सब बातों की जानकारी होगी। जिले को तो छोड़ो जिस नगर में तैनात हैं, उस नगर में कितने मोहल्ले हैं, यह तक पता नहीं होता पर इसका मतलब यह भी नहीं है कि आजाद भारत में कुशल और योग्य अफसर हुए ही नहीं हैं। देश ने अनेक काबिल सरकारी अफसरों को देखा है। इस बीच, इस बार की संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा के पहले सभी चार स्थानों पर लड़कियों का बाजी मारना बेहत शुभ संकेत है। कहना होगा कि देश की बेटियां अपने हिस्से के आसमान को छूने के लिए निकल रही हैं।

विवेक शुक्ला


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