NGT की सख्ती : सुधरेगा अपशिष्ट प्रबंधन

Last Updated 27 May 2023 01:45:41 PM IST

हाल में आए NGT के एक फैसले की बहुत चर्चा है, जिसमें एनजीटी ने बिहार सरकार (Bihar Govt) पर ठोस कचरे और सीवेज के वैज्ञानिक उपचार और प्रबंधन में विफलता के लिए 4000 करोड़ रुपये के मुआवजे/जुर्माने का आदेश दिया है।


एनजीटी की सख्ती : सुधरेगा अपशिष्ट प्रबंधन

पीठ ने निर्देश दिए हैं  कि इस रकम को रिंग फेंस खाते में रखा जा सकता है, जिसे मुख्य सचिव के निर्देशन में सिर्फ अपशिष्ट प्रबंधन की योजनाओं के संचालन में इस्तेमाल किया जाए।
राष्ट्रीय हरित अधिकरण यानी एनजीटी की स्थापना राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम, 2010 के अंतर्गत भारत में 18 अक्टूबर, 2010 को हुई थी। भारत में एनजीटी की भोपाल, पुणो, कोलकाता और चेन्नई में चार क्षेत्रीय बेंच हैं जबकि नई दिल्ली में मुख्य बेंच है। एनजीटी ने पिछले कुछ वर्षो में ठोस कचरे और सीवेज के वैज्ञानिक उपचार एवं प्रबंधन में विफलता से पर्यावरण को हुए नुकसान की भरपाई के लिए सात राज्यों पर हजारों करोड़ रुपये के जुर्माने लगाए हैं।

‘पॉल्यूटर पे प्रिंसिपल’ (polluter pay principal) अर्थात प्रदूषण फैलाने वाले करें क्षति का भुगतान के सिद्धांत पर पर्यावरणीय मुआवजे और बहाली की लागत के लिए एनजीटी ने 2022 तक राज्यों पर करीब 28180 करोड़ और अन्य मामलों में 2000 करोड़ रुपये के जुर्माने तय किए। एनजीटी की स्थापना से पहले पर्यावरण से संबंधित मामले हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में निस्तारित होते थे, लेकिन अब राज्यों, सरकारी और प्राइवेट कंपनियों और व्यक्ति विशेष के खिलाफ दायर पर्यावरणीय मामलों का निस्तारण एनजीटी कर रहा है। उदाहरण के तौर पर ठोस कचरे और सीवेज के वैज्ञानिक उपचार एवं प्रबंधन के संबंध में 1996 में सुप्रीम कोर्ट में अलमित्रा एच पटेल बनाम भारत सरकार का मामला पहुंचा था और 18 साल चलने के बाद 2014 में एनजीटी को सौंपा गया। 8 वर्ष चले इस मामले में एनजीटी ने 8 सितम्बर, 2022 को एक आदेश में महाराष्ट्र पर 1200 हजार रुपये का जुर्माना लगाया।

एनजीटी ने आदेशों में राज्यों पर ठोस कचरा और सीवेज उत्पादन एवं उपचार के गैप के आधार पर जुर्माने की गणना की है। राज्यों में कहीं पर सीवेज कुप्रबंधन है तो कहीं ठोस कचरा। ऐसे भी मामले हैं, जहां पुराने कचरे से पर्यावरण को क्षति होती है। पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति और पुनरुद्धार की लागत को बराबर मानते हुए सीवेज के लिए 2 करोड़ रुपये प्रति मिलियन लीटर प्रति दिन (MLD) और ठोस कचरे के लिए रुपये 300 प्रति मीट्रिक टन तय किया गया है।

इसे ऐसे समझें कि तेलंगाना पर 3800 करोड़ रुपये के जुर्माने में 1824 एमएलडी अनउपचारित सीवेज पर 2 करोड़ रुपये प्रति एमएलडी के हिसाब से 3648 करोड़ रुपये और रुपये 300 प्रति मीट्रिक टन के हिसाब से 5.9 मिलियन टन लीगेसी कचरे पर 177 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया है। एनजीटी आगे भी और राज्यों पर ठोस कचरे और सीवेज कुप्रबंधन को लेकर जुर्माना लगा सकता है। हालांकि केंद्रीय प्रदूषण नियंतण्रबोर्ड और राज्य प्रदूषण नियंतण्रबोर्ड जुर्माना वसूली में पीछे रहे हैं क्योंकि जुर्माना एकत्र करना कठिन काम है। पीठ ने राज्यों के मुख्य सचिवों को इस फंड को दो खातों में जमा करने के निर्देश के साथ इस रकम को राज्य के सिर्फ  ठोस कचरा और सीवेज प्रबंधन पर खर्च करने को कहा है। हर छह माह पर प्रगति रिपोर्ट भी मांगी है।

एनजीटी एक्ट के अनुसार असहमत पार्टी को 90 दिन के अंदर सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर करने का समय मिलता है। पार्टयिां अपना पक्ष रख कर अपेक्षा रखती हैं कि एनजीटी के आदेशों को निरस्त कर सुप्रीम कोर्ट राहत देगा। केंद्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड की ठोस कचरा प्रबंधन की 2020-21 रिपोर्ट में बताया गया देश के 35 राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों में कुल 160038.9 टन प्रति दिन (टीपीडी) कचरा निकलता है जिसमें से 95.4 प्रतिशत एकत्रित क्षमता होने के कारण 152749.5 टीपीडी कचरा ही एकत्रित हो पाता है, और 79956.3 टीपीडी (50 प्रतिशत) कचरा ही निस्तारित हो पाता है। जबकि 18.4 प्रतिशत 29427.7 टीपीडी कचरा लैंडफिल में रहता है।

देखा जाए तो उत्पादन और निस्तारण प्रबंधन में काफी बड़ा गैप है। भारत में ही नहीं अपितु पूरे वि में पर्यावरण गंभीर मसला बना हुआ है। प्राकृतिक संसाधनों का प्रदूषित होना बेहद चिंताजनक है। पर्यावरण में मानवीय गलतियों से पर्यावरण में असंतुलन के तमाम मामले बढ़ रहे हैं। राज्यों के ठोस कचरा और सीवेज उपचार की विफलता पर एनजीटी के राज्यों पर करोड़ों की रकम के जुर्माने के आदेश राज्यों को कड़े निर्देश जरूर दिख रहे हो सकते हैं, लेकिन देखा जाए तो करोड़ों रुपये के जुर्माने की राशि उन पर ही खर्च होगी जिससे उनके अपशिष्ट प्रबंधन समृद्ध होंगे। राज्यों में स्वच्छता बढ़ेगी और गांव-शहरों का प्रदूषण कम होगा। एनजीटी को राज्यों के सीवेज उपचार संयंत्रों और कचरा साइटों के पुररुद्वार की पूरी उम्मीद है।

अनिरुद्ध गौड़


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