राजनीति : भारत ने बनाया तीसरा ध्रुव

Last Updated 28 May 2023 01:19:47 PM IST

दुनिया के कूटनीतिक और विदेश नीति विशेषज्ञ अब भारत को तीसरे ध्रुव के रूप में स्वीकार करने लगे हैं।


राजनीति : भारत ने बनाया तीसरा ध्रुव

सोवियत संघ (The Soviet Union) के विघटन के बाद अमेरिकी विशेषज्ञ फुकुयामा (American expert Fukuyama) का मानना था कि दुनिया में अब केवल एक ध्रुव अमेरिका ही रहेगा। यह विश्व व्यवस्था अनंतकाल तक चलेगी। पिछले तीन दशकों में दुनिया के हालात बदले और अपनी आर्थिक ताकत के बलबूते चीन ने दूसरा ध्रुव बनने का दावा पेश किया जिसे चाहे-अनचाहे पश्चिमी देश भी स्वीकार करने लगे हैं। पिछले एक दशक में भारत में राजनीतिक स्थायित्व और सक्रिय विदेश नीति के कारण अमेरिका और चीन वाली दो ध्रुवीय वि व्यवस्था में नया पहलू जुड़ सकता है। राष्ट्रपति पुतिन के नेतृत्व में रूस (Russia) ने सोवियत विघटन से उबरने के बाद नई ताकत हासिल की है, लेकिन निश्चित विचारधारा की गैर-मौजूदगी और बहुआयामी अर्थव्यवस्था के अभाव में वह वि स्तर पर अहम भूमिका निभाने की स्थिति में नहीं है।  

भारत की विदेश नीति कभी शक्ति प्रदर्शन पर आधारित नहीं थी। पं. जवाहरलाल नेहरू ने पंचशील के आधार पर विकासशील और अर्धविकसित देशों को एकजुट करने के लिए गुट-निरपेक्ष आंदोलन पर जोर दिया था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (PM Narendra Modi) ने बदले हुए हालात में पं. नेहरू का अनुसरण करते हुए ग्लोबल साउथ को एकजुट करने की कोशिश की है। यूक्रेन युद्ध (Ukraine War) के दौरान तटस्थ भूमिका निभाकर भारत ने अपनी विश्वसनीयता पर मोहर लगवा दी है।

पापुआ न्यू गिनी (Papua New Guinea) के प्रधानमंत्री जेम्स मारापे (James Marape) ने प्रधानमंत्री मोदी का चरणस्पर्श किया जो अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की अनोखी घटना है। उन्होंने भारत और मोदी को ग्लोबल साउथ का नेता भी करार दिया। प्रशांत क्षेत्र के देशों के लिए भौगोलिक रूप से चीन अधिक महत्त्वपूर्ण देश है। वहां के नेता अब भारत को अपना प्रवक्ता मान रहे हैं, तो यह विदेश नीति की बड़ी सफलता है। पापुआ न्यू गिनी के बाद ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज ने मोदी को बॉस बताया। वास्तव में मोदी अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में नई शब्दावली के जन्मदाता बन रहे हैं।

भारत की भूमिका को लेकर देश में विशेषज्ञ दो खेमों में बंटे हुए हैं। बड़ा खेमा भारत की तटस्थ नीति और ग्लोबल साउथ को प्राथमिकता देने के पक्ष में है। दूसरी ओर छोटा लेकिन प्रभावशाली खेमा भारत के  अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ गठजोड़ करने का समर्थक है। यह तबका ग्लोबल साउथ या तीसरे ध्रुव के विचार को दिवास्वप्न करार देता है। घरेलू राजनीति में भी विदेश नीति को लेकर मैतक्य नजर नहीं आता। कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) रूस पर यूक्रेन की क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन करने का आरोप लगाते हैं। रूस की कार्रवाई की तुलना पूर्वी लद्दाख में चीन की सैनिक कार्रवाई से करते हैं। कांग्रेस नेता शशि थरूर और मनीष तिवारी भी रूस की आलोचक रहे हैं। पूरे प्रकरण में वामपंथी नेताओं और समीक्षकों की भूमिका दिलचस्प है। अमेरिकी साम्राज्यवाद का दशकों विरोध करने वाला तबका भारत की तटस्थ नीति का खुलकर समर्थन नहीं करता। इतना ही नहीं वामपंथी रुझान वाली मीडिया में रूस के खिलाफ अमेरिकी प्रोपगेंडा को ही प्रसारित किया जा रहा है। हालांकि कुछ वामपंथी समीक्षक मोदी को कोई श्रेय न देने के बावजूद भारत की यूक्रेन नीति को सही ठहराते हैं।

अगले महीने राहुल और नरेन्द्र मोदी दोनों अमेरिका यात्रा पर होंगे। इस दौरान वे यूक्रेन युद्ध के बारे में क्या विचार व्यक्त करते हैं, इस पर सबकी नजर होगी। यह एक राजनीतिक हकीकत है कि दुनिया के अधिकतर देशों के नेता अमेरिकी प्रशासन की ‘गुड बुक’ में रहने की कोशिश करते हैं। लोक सभा चुनाव के पहले राहुल भी अमेरिकी प्रशासन को अपने अनुकूल करने की कोशिश कर सकते हैं, वहीं अपनी आधिकारित यात्रा के दौरान पीएम मोदी अमेरिकी प्रशासन को आस्त कर सकते हैं कि स्वतंत्र विदेश नीति का अनुसरण करने के साथ ही भारत अमेरिका के साथ अपने संबंधों को प्राथमिकता देता है। भारत की अपेक्षा केवल इतनी है कि रूस के साथ उसके सैन्य और आर्थिक संबंधों में रुकावट पैदा न की जाए। बहुत कुछ यूक्रेन में युद्ध के घटनाक्रम पर निर्भर करता है। यदि वहां युद्ध व्यापक रूप लेता है, तो भारत के लिए रूस के साथ संबंधों को सामान्य बनाए रखना दुरूह साबित होगा। भारत प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रतिबंधों के दायरे में आ सकता है।

डॉ. दिलीप चौबे


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment