बिन पानी सब सून : चेरापूंजी से सबक लीजिए
भारत के मेघालय (Meghalya) राज्य में स्थित चेरापूंजी (Cherrapunji) विश्व में ऐसी जगह है, जहां दुनिया की सबसे अधिक औसत बारिश होने का रिकॉर्ड है।
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चेरापूंजी में बरसने के लिए बादलों को कभी भी इंतजार नहीं करना पड़ता। हर समय बादल उमड़े रहते हैं, और जब चाहे जब बरस पड़ते हैं। चेरापूंजी में मार्च-अक्टूबर तक लगभग 8 महीने तक भारी वष्रा होती है। लेकिन विडंबना है कि दुनिया में सबसे अधिक बारिश के बावजूद चेरापूंजी के बाशिंदे पानी की समस्या से जूझते हुए प्यासे रह जाते हैं। इसके पीछे जलवायु परिवर्तन तो है ही, वष्रा के जल का जमीन में संचित नहीं होना भी है। बड़े पैमाने पर जंगलों में अवैध कटान भी इसका एक बड़ा कारण बताया गया है।
विशेषज्ञों का मानना है कि पेड़ों की जड़ों में पहुंचने वाला पानी भूजल को बेहतरी से रिचार्ज कर देता है। बढ़ती आबादी के सापेक्ष जमीन में वाटर का रिचार्ज रेट बहुत कम है। हाल यह है कि चेरापूंजी के लोगों को पेयजल के लिए कई किलोमीटर दूर पानी लेने जाना पड़ता है। भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि भारी बारिश होने के बावजूद पठारी इलाकों से पानी नीचे बह जाता है। वाटर हार्वेस्टिंग करना भी कठिन है जबकि रूफ वाटर कलेक्शन भी कामयाब नहीं है। चेरापूंजी में ग्रेटर सोगरा जलापूर्ति योजना शुरू की गई। आस लगी थी कि झरने के स्रेतों से आने वाले पानी से लोगों की पेयजल की समस्या दूर हो जाएगी लेकिन जल स्रेत सूख जाने से आशाएं धूमिल हो गई। चेरापूंजी में खेती की जमीन भी नहीं है। युवा पलायन को विवश हैं।
चेरापूंजी का मौसम देखने के लिए पर्यटक पहुंचते तो जरूर हैं, लेकिन पानी की समस्या के कारण वहां होटलों में पर्यटक ठहरते नहीं हैं। पर्यटन व्यवसायियों का दर्द है कि भारी वष्रा के बावजूद पेयजल की कमी से पर्यटन उद्योग और रोजी-रोटी के साधन गंभीर रूप से प्रभावित हो रहे हैं। हाल में सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरन्मेंट (सीएसई) द्वारा आयोजित 2023- पॉलिसी एंड प्रैक्टिस फोरम में केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा कि भारत में जल संकट जल संसाधनों की कमी के कारण नहीं, बल्कि उनके कुप्रबंधन के कारण है। जलवायु में बदलाव जल संकट को और बढ़ा रहा है। जल को लेकर सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायण का अध्ययन है कि पानी को लेकर देश में अब अच्छी समझ पैदा हुई है। नये मानक और आदर्श भी विकसित किए गए हैं, लेकिन जो प्रयास किए जा रहे हैं, वे काफी नहीं हैं। स्वास्थ्य एवं कल्याण के लिए सुरक्षित पानी और स्वच्छता मानव की बुनियादी जरूरत है। वि स्तर पर जल को लेकर चिंता में संयुक्त राष्ट्र के टिकाऊ विकास लक्ष्यों की बात करें तो 2030 तक निर्धारित कुल 17 लक्ष्यों में छठा लक्ष्य जल और स्वच्छता है।
भारत में पेयजल की समस्या दूर करने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 15 अगस्त, 2019 को जल जीवन मिशन (जेजेएम) की शुरुआत की। इसका उद्देश्य 2024 तक हर घर जल आपूर्ति का लक्ष्य है। यह महिलाओं को पानी का भारी बोझ ढोने के सदियों पुराने कष्ट से मुक्त कराने का ठोस प्रयास है। जल शक्ति मंत्रालय की 2021-22 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार 2019 में ग्रामीण क्षेत्रों के लगभग 15.93 करोड़ परिवारों में से 3.23 करोड़ (17 प्रतिशत) के पास ही नल जल कनेक्शन थे। योजना के मुताबिक, 2024 तक 83 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों को नल जल आपूर्ति का लक्ष्य है। जल जीवन मिशन 2024 तक सभी ग्रामीण घरों में नल जल की आपूर्ति सुनिश्चित कर 6 साल पहले भारत के एसटीडी-6 लक्ष्य पा ले तो भारत विकासशील देशों के लिए आदर्श बन सकता है।
बारिश के पानी को विभिन्न स्रेतों और तरीकों से सुरक्षित और संकलित करना वष्रा जल संचयन कहलाता है ताकि जरूरत पड़ने पर संचित वष्रा जल का उपयोग किया जा सके। भारत में आधुनिकीकरण के चलते गांव शहर में बदल रहे हैं, जनसंख्या बढ़ रही है। जल संचयन की सदियों पुरानी प्रवृत्तियां गुल हो गई हैं। भारत के प्राचीन जल संचयन पर दृष्टिपात करें तो भारत में करीब 200 साल पहले लाखों तालाब, कुएं, बावड़ियां, झरने, झील, पोखर आदि हुआ करते थे। भारतीय संस्कृति जल संसाधनों को पूजने वाली रही है। जल संचयन के सदियों से चले आ रहे पारंपरिक तरीकों से पेयजल और कृषि कायरे के लिए पानी का उपयोग किया जाता था।
भूजल रिचार्ज हमारे इकोसिस्टम में था जो आज हमारी लापरवाहियों के कारण नदारद हो गया है, जबकि अन्य देश भारत के जल संसाधन सहेजने के पुराने तरीके अपना कर पेयजल की समस्या से निजात पा रहे हैं। सर्वाधिक वष्रा के लिए चेरापूंजी मशहूर है। इसके बावजूद इलाका पानी के लिए तरस रहा है। चेरापूंजी में पानी की दिक्कत को सुलझाने के तरीके समझ में नहीं आ रहे या आ भी रहे हैं, तो सफल नहीं हो रहे। बाकी इलाकों की समस्या सुलझाने की तो बस, कल्पना ही की जा सकती है। कमोबेश पानी की समस्या सभी जगह है। पानी सहेजने और बचाने के तरीकों का पालन नहीं किया जाएगा तो पानी के लिए तरसेंगे नहीं, तिल-तिल मर जाएंगे। पानी को सहेजना प्रत्येक भारतवासी का कर्त्तव्य है।
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