विश्लेषण : अतीक मासूम तो कतई नहीं

Last Updated 02 May 2023 07:18:36 AM IST

अतीक अहमद की हत्या (Atiq Ahmed murder) पर राजनीति करती दिख रही तस्वीर भले हतप्रभ करने वाली हो लेकिन अस्वाभाविक नहीं।


विश्लेषण : अतीक मासूम तो कतई नहीं

हतप्रभ करने वाली इसलिए कि खूंखार अपराधी, जिसके संपूर्ण जीवन की उपलब्धि केवल अपराध था, के समर्थन में समाज खड़ा हो जाए तो स्वीकार करना पड़ेगा कि पतनशील होने की हमारी गति कुछ ज्यादा ही तेज है। अस्वाभाविक इसलिए नहीं क्योंकि देश में ऐसी तस्वीरें हम पहले भी देख चुके हैं।  

इतना तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (UP Chief Minister Yogi Adityanath) और भाजपा (BJP) के घोर समर्थक भी स्वीकार करते हैं कि पुलिस की सुरक्षा के बीच अपराधियों द्वारा अतीक की हत्या नहीं होनी चाहिए थी। यह पुलिस की स्पष्ट विफलता है किंतु पुलिस की विफलता की आलोचना या निंदा तथा अतीक के प्रति सहानुभूति एवं संवेदना, दोनों में जमीन-आसमान का अंतर है। दुर्भाग्य से विरोधी आवाज में दूसरे पहलू पर जोर ज्यादा है। प्रतिक्रियाओं के स्वर ऐसे हैं मानो अतीक अहमद सज्जन और निरपराध व्यक्ति था जिसकी सरकार ने जानबूझकर हत्या करा दी क्योंकि वह मुसलमान था। पटना जंक्शन के निकट मस्जिद में जुमातुल विदा की नमाज (Jumatul Vida prayer) के बाद अतीक अहमद अमर रहे तथा योगी-मोदी मुर्दाबाद के नारे (Long live Atiq Ahmed and slogans of Yogi-Modi Murdabad after Jumatul Vida prayer in mosque) किसी भी स्वस्थ समाज का प्रमाण नहीं हो सकते।  

अमर रहने की बात उसकी होती है, जिससे हम आप प्रेरणा लेकर बेहतर काम कर सकें या फिर संपूर्ण जीवन में गलतियां करने से बचते रहें। अतीक के समर्थन में नारेबाजी कर रहे रईस अंसारी उर्फ  रईस गजनबी ने कहा कि आज हमने अल्लाह से दुआ की है कि अतीक अहमद (Atiq Ahmed) और अशरफ अहमद (Ashraf Ahmed) की शहादत को कबूल फरमाएं। उन्होंने कहा कि योगी सरकार ने प्लान करके उन्हें मरवाया है। अतीक अहमद शहीद हुए हैं..रोजा के दिनों में उसको अपराधियों के जरिए मरवाया गया है। पूरी दुनिया के मुसलमानों की नजर में वो शहीद हैं। जरा सोचिए, इस्लाम में शहीद का सर्वोच्च स्थान है। इसकी 40 श्रेणियां हैं। अल्लाह के लिए लड़ते हुए मरने वाले को शहीद का दर्जा मिलता है। क्या अतीक अहमद इस्लाम के लिए लड़ते हुए मारा गया है? ऐसे मुसलमानों की भी बड़ी संख्या है, जो उसके अपराध के शिकार हुए। बावजूद वह शहीद हो गया। गजनबी बोलता रहा और लोग उसका समर्थन करते रहे। इससे पता चलता है कि मुसलमानों के बड़े समूह के अंदर मजहबी कट्टरवाद को लेकर कैसी विचारधारा घर कराई जा चुकी है।

सबसे डरावनी स्थिति यह है कि देश के किसी भी प्रसिद्ध इस्लामी विद्वान या इस्लाम पर बोलने की अथॉरिटी रखने वाले इमाम मुल्ला, मौलवी ने अभी तक अतीक अहमद को शहीद कहे जाने को इस्लाम का अपमान या इस्लाम विरोधी नहीं बताया है। ऐसा पहले भी हो चुका है। टाइगर मेनन को फांसी देने के बाद उमड़ी भीड़ ने इसी तरह के नारे लगाए थे। हाल में यह भी पता चला कि उसके कब्रिस्तान को मुसलमानों के लिए दरगाह सदृश स्थान बनाने की कोशिश की गई। दूसरे मुस्लिम नेताओं ने भी सीधे शहीद न कह कर अलग-अलग तरीके से इसी भाव को गुंजित किया है। सपा के शफीकुर्रहमान बर्क ने इसे जुल्म की इंतेहा तक घोषित कर दिया। कुछ ने तो अतीक के लिए भारत रत्न तक की मांग कर दी। हम असदुद्दीन ओवैसी और उनकी तरह के लोगों के बयानों की आलोचना करते रहते हैं, लेकिन अतीक अहमद के मामले में फिर इस बात की पुष्टि हुई है कि मुसलमानों के एक बड़े समूह के विचार और व्यवहार लगभग वैसे ही हैं।

इसे जरा दूसरे रूप में समझें। उमेश पाल और दो पुलिस वालों की हत्या अतीक के पुत्र, पत्नी और गुगरे ने सरेआम कर दी। किंतु यह मुसलमान द्वारा हिंदू की हत्या नहीं, एक गवाह की हत्या थी। किसी हिंदू ने इसे हिंदू की हत्या के रूप में नहीं देखा। इसके पहले राजू पाल की भी हत्या अतीक के लोगों ने की पर वह भी कभी हिंदू-मुस्लिम का प्रश्न नहीं बना। वह एक अपराधी माफिया द्वारा की गई हत्या मानी गई। किसी हिंदू ने नहीं कहा कि एक हिंदू की हत्या है। भाजपा विरोध के नाम पर मजहबी कट्टरता से आंख मूंदने वाले नेता, एक्टिविस्ट और बुद्धिजीवी अतीक अहमद की हत्या पर विरोधी प्रतिक्रिया देकर कट्टरपंथ का ही मनोबल बढ़ाते हैं। बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने इसे स्क्रिप्टिड र्मडर बताया है। उनके शब्दों पर जरा ध्यान दीजिए, यूपी में अतीक जी का नहीं, कानून का जनाजा निकला है। हालांकि उन्होंने आगे कहा कि हत्यारा, हत्यारा होता है, इसमें हमदर्दी नहीं होनी चाहिए पर अतीक जी जैसे शब्द उनके मनोभावों को व्यक्त करने के लिए पर्याप्त हैं। साफ है कि अगर इस प्रकार के बयान से मुस्लिम वोट ज्यादा सुदृढ़ होने की उम्मीद नहीं होती तो वह कदापि न बोलते। तो क्या मान लिया जाए कि भारत के मुसलमान ऐसे ही आतंकवादी, अपराधी को इस्लाम का प्रतीक बताए जाने से प्रभावित होकर मतदान करते हैं? सपा प्रमुख अखिलेश यादव का ट्वीट थोड़ा सधा हुआ है, लेकिन गहराई से देखने पर इसके भी मूल स्वर आपकी समझ में आ जाएंगे। सपा ने अतीक अहमद को विधायक और सांसद बनाया। उनकी पार्टी में वह 21 वर्ष रहा। क्यों? एक अपराधी होने के अलावा उसकी कोई योग्यता नहीं थी। साफ है कि सपा ने उसे अपराधी होने के कारण ही माननीय बनाया और अपनी पार्टी में रखा।  

हमारे देश के एक प्रधानमंत्री की उनकी सुरक्षा गाडरे ने ही जघन्य हत्या कर दी थी। बावजूद देश में कानून एवं व्यवस्था का प्रश्न नहीं उठा। दूसरे पूर्व प्रधानमंत्री के एसपीजी सुरक्षा में ही नहीं, तमिलनाडु पुलिस की पूरी सुरक्षा व्यवस्था के बीच आत्मघाती दस्ते ने प्राण ले लिए। किसी ने नहीं कहा कि तमिलनाडु और देश की कानून एवं व्यवस्था खत्म हो गई है, और अपराधियों का राज है। दुर्भाग्य है कि गैर-जिम्मेवार बयानों ने जनता के मन में भी अतीक की हत्या को लेकर कई तरह के संदह का मनोविज्ञान पैदा किया है। मुस्लिमों की बात छोड़ दें तो कई जगह आम लोग भी प्रश्न पूछते हैं कि कहीं योगी  सरकार ने तो अतीक अहमद को नहीं मरवा दिया? जिस हालत में अतीक पहुंचाया जा चुका था, उसमें सरकार के लिए उसका जिंदा रहना आवश्यक था क्योंकि न केवल उसे अपने अपराध में सहभागी सफेदपोशों का सच पता था, बल्कि दूसरे अपराधी माफिया भी उसकी दुर्दशा से भयभीत होकर स्वयं को अपराध करने से अलग करने की कोशिश करते। कुल मिलाकर अतीक की हत्या पर छाती पीट कर ऐसी प्रतिक्रिया देने वाले जरा सोचें, विदेश में वे कैसा मानस तैयार कर रहे हैं?

अवधेश कुमार


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