अमेरिका : बाइडेन की सफलता कसौटी पर

Last Updated 10 Nov 2022 01:18:35 PM IST

अमेरिकी वोटरों ने 8 नवम्बर, 2022 को तय कर दिया कि अस्सी-वर्षीय जो बाइडेन फिर से राष्ट्रपति बन पाएंगे अथवा डोनाल्ड ट्रंप अपनी दो वर्ष पूर्व की पराजय का बाइडेन से प्रतिशोध ले सकेंगे?


अमेरिका : बाइडेन की सफलता कसौटी पर

 अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव 2024 में है। करीब चार करोड़ वोटरों ने अमेरिकी संसद के दोनों सदनों के (100-सदस्यीय सीनेट के पैंतीस तथा निचली सदन के 435) सदस्यों का भाग्य मतपेटी में कैद कर दिया है। ट्रंप का अभियान रहा कि अमेरिका आज विश्व पटल पर ‘मजाक’ बन गया है। ट्रंप ने मीडिया को बताया कि वे जल्द ही ‘विशेष घोषणा’ करेंगे। तब तक स्पष्ट हो जाएगा कि क्या सीनेट में उनकी रिपब्लिकन पार्टी को बहुमत मिल पाएगा या नहीं? अभी दोनों दलों के सदस्यों की संख्या समान (50-50) है। उपराष्ट्रपति कमला हैरिस हैं, जो सीनेट (राज्य सभा) की सभापति हैं। उनके वोट ही निर्णायक होते हैं, मगर निचले सदन (प्रतिनिधि सभा) के 435 सदस्यों के चुनाव में ट्रंप को बहुमत की आवश्यकता है।

ऐसे मतदान की घड़ी पर राष्ट्रपति बाइडेन ने मतदाताओं से  ओजस्वी अपील की थी : ‘अपनी आवाज सुनाइए : वोट दीजिए।’ उनकी पार्टी का खास मुद्दा है : ‘हर नारी को गर्भपात कराने का हक है।’ उच्चतम न्यायालय ने गत दिनों उसे अवैध करार दिया था। अपने दो वर्षो के शासन काल के गुण-दोष के आधार पर भी जो बाइडेन ने जनमत मांगा है। यूक्रेन की सुरक्षा भी उनकी पार्टी का खास मसला है। अभी हुए संसदीय चुनाव के परिणाम से तय हो जाएगा कि क्या कि राष्ट्रपति पद के लिए बाइडेन दुबारा प्रत्याशी बन पाएंगे या नहीं?

इन चुनावों को कई कारणों से महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है। ये मध्यावधि चुनाव अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के बाकी बचे दो वर्षीय कार्यकाल की दिशा तय करेंगे। तमाम संकेत डेमोक्रेटिक पार्टी के खिलाफ हैं। गौरतलब है कि चुनाव पूर्व के जनमत सर्वेक्षणों से साफ संकेत मिले हैं कि हाउस ऑफ रिप्रंजेंटेटिव में सत्ताधारी डेमोक्रेटिव पार्टी बहुमत हासिल नहीं कर पाएगी। सीनेट का बहुमत भी वह गंवा सकती है। अगर ऐसा हुआ तो राष्ट्रपति बाइडन की मुश्किलें यकीनन बढ़ जाएंगी। वैसे भी राष्ट्रपति बाइडन की अलोकप्रियता का हाल यह है कि मिड-टर्म चुनाव के प्रचार के अभियान से उन्हें खुद को लगभग हटा लेना पड़ा है। पिछले कुछ दिनों से उन्होंने किसी बड़ी चुनाव सभा को भी संबोधित नहीं किया है। इसकी बजाय लोगों के छोटे समूहों से संवाद करने की रणनीति पर वे चल रहे हैं, जहां उन्हें अपने प्रशासन के कामकाज के बारे में स्पष्टीकरण देने का बेहतर मौका मिलता है।

ब्रिटिश अखबार ‘फाइनेंशियल टाइम्स’ ने अपने एक आकलन में कहा है कि अगर दोनों सदनों में रिपब्लिकन पार्टी का बहुमत हो गया, तो वह बाइडन के खिलाफ कई तरह की जांच शुरू करवा सकती है। न केवल इतना, बल्कि वह प्रशासन के बजट प्रस्तावों को भी लटका सकती है। ऐसा होता है, तो यकीनन बाइडेन के लिए शासन करना बहुत मुश्किल हो जाएगा।
अमेरिका के मध्यवर्ती संसदीय चुनाव में ‘रसोई’ ही सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण अभियान का बिंदु है। आम वोटर भी महंगाई, बेरोजगारी, कानून व्यवस्था खासकर शस्त्र लाइसेंस का बेजा उपयोग, वेतन वृद्धि आदि से आजिज आ चुके हैं। इनके अतिरिक्त तीन अन्य प्रश्न भी उठते हैं। यदि ट्रंप राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बने तो क्या बाइडेन उनसे मुकाबला कर पाएंगे? स्वयं बाइडेन के स्थान पर डेमेक्रेटिक पार्टी के पास विकल्प कौन हैं? उधर रूस-यूक्रेन युद्ध और चीन की आक्रामकता खासकर ताइवान की सुरक्षा के परिप्रेक्ष्य में विशेष ध्यान आकृष्ट करते हैं। स्पष्ट तौर पर यह चुनाव परिणाम राष्ट्रपति जो बाइडेन के दो वर्ष के कालखंड की उपलब्धियों और विफलताओं पर भी रायशुमारी होगा। कुल मिलाकर अमेरिका के विश्व शक्ति की स्थिति पर भी नजरिया तय होगा। इन्हीं बिंदुओं पर आगामी समय में अमेरिकी राजनीति वैश्विक उथल-पुथल का कारक भी बन सकती है। भविष्य के गर्भ में आशंकाएं  और आशाएं समाहित हैं।

के. विक्रम राव


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