क्रिकेट : आईसीसी ट्राफी जीतने का सपना
क्रिकेट के सबसे छोटे प्रारूप को आम तौर पर युवा खिलाड़ियों का खेल माना जाता है पर टी-20 विश्व कप के लिए चुनी गई भारतीय टीम में अनुभवी और आजमाए जा चुके खिलाड़ियों पर जोर दिया गया है।
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पंद्रह सदस्यीय टीम के नौ खिलाड़ी 30 साल से ज्यादा के हैं। सवाल है कि क्या यह टीम भारत को चैंपियन बनाने की क्षमता रखती है। जवाब हां में हो सकता है पर इसके लिए टीम के प्रदर्शन में एकजुटता दिखना जरूरी है। हम जानते हैं कि पिछले विश्व कप में तो भारत नॉकआउट चरण तक में स्थान नहीं बना सका था।
पिछले दिनों एशिया कप में भारतीय टीम के उम्मीदों के अनुरूप प्रदर्शन नहीं कर पाने के पीछे प्रमुख समस्या दिग्गज बल्लेबाजों का समय पर क्लिक नहीं होना और गेंदबाजी का उम्मीदों के अनुरूप नहीं हो पाना था। खास तौर से पेस गेंदबाजों ने निराश किया। लेकिन जसप्रीत बुमराह और हषर्ल पटेल के आने से टीम के इस विभाग में मजबूती आना तय है। बुमराह और हषर्ल, दोनों डेथ ओवर्स के विशेषज्ञ गेंदबाज हैं। अब जरूरत इस बात की रहेगी कि भुवनेश्वर कुमार शुरुआती ओवरों में अच्छी गेंदबाजी करें। उन्होंने एशिया कप के अपने आखिरी मैच में अफगानिस्तान के खिलाफ चार रन देकर पांच विकेट निकाले थे, उससे पुरानी रंगत में उनसे गेंदबाजी करने की उम्मीद की जा सकती है।
अर्शदीप सिंह ने पाकिस्तान के खिलाफ कैच टपका कर भले ही आलोचना का सामना किया पर उन्होंने अपनी गेंदबाजी से खासा प्रभावित किया था। इस बाएं हाथ के पेस गेंदबाज के खेलने से आक्रमण में वेरायटी भी है। पूर्व भारतीय कप्तान मोहम्मद अजहरुद्दीन को लगता है कि टीम में दीपक हुड्डा और हषर्ल पटेल की जगह श्रेयस अय्यर और मोहम्मद शमी को होना चाहिए था। श्रेयस की जहां तक बात है तो वह मौकों को भुनाने में सफल नहीं हो सके और इस वजह से ही स्टैंडबाई खिलाड़ियों में शामिल हैं। हुड्डा के पक्ष में उनका स्पिन गेंदबाजी का विकल्प उपलब्ध कराना भी है। शमी शानदार गेंदबाज हैं पर पिछले विश्व कप में उम्मीदों पर खरे नहीं उतर पाने के कारण ही चयनकर्ताओं को उनसे आगे देखना पड़ा है।
हम जानते हैं कि ऑस्ट्रेलिया के मैदान काफी बड़े हैं, उसे देखते हुए स्पिन आक्रमण में युजवेंद्र चहल और रविचंद्रन अश्विन का चयन सही लगता है। टीम के तीसरे स्पिनर अक्षर पटेल को रविंद्र जडेजा के घुटने की सर्जरी के बाद फिट नहीं हो पाने की वजह से लिया गया है। हालांकि अक्षर अपनी गेंदबाजी की कई बार छाप छोड़ चुके हैं पर जडेजा जैसी बल्लेबाजी करने में सक्षम नहीं हैं। टीम के किसी भी प्रारूप में सफल रहने के लिए पहले तीन बल्लेबाजों रोहित शर्मा, केएल राहुल और विराट कोहली के बल्ले से रन निकलना जरूरी है। यह तिकड़ी चल निकले तो भारत को रोकना किसी के वश में नहीं दिखता। एशिया कप में इस तिकड़ी के लगातार और एक साथ नहीं चल पाने का खमियाजा भारत को भुगतना पड़ा था। लेकिन आखिरी मैच में कोहली के शतक ठोक कर रंगत में लौटने से स्थितियां काफी बदली हैं। ओपनरों रोहित और राहुल के प्रदर्शन पर भारतीय प्रदर्शन काफी निर्भर रहने वाला है।
एशिया कप में श्रीलंका ने दिखाया कि बिना सुपर स्टार के भी खिताब जीता जा सकता है। किसी भी खिलाड़ी के बहुत बड़ा स्कोर बनाए बगैर भी वह चैंपियन बन गई क्योंकि सभी बल्लेबाजों ने रनों में योगदान किया। इसलिए भारत यदि 2007 के बाद विश्व कप पर कब्जा जमाना चाहता है तो मध्य क्रम के बल्लेबाजों सूर्यकुमार यादव, ऋषभ पंत और हार्दिक पांडय़ा के साथ हुड्डा, प्रत्येक को लगातार 30-35 रनों का योगदान करना होगा। विकेटकीपर के रूप में ऋषभ पंत और दिनेश कार्तिक चुने गए हैं। दोनों आक्रामक बल्लेबाजी करते हैं। कार्तिक ने आईपीएल में शानदार प्रदर्शन से टीम में जगह बनाई है। उन्हें 16 से 20वें ओवर के बीच ताबड़तोड़ बल्लेबाजी करके मैच का रुख बदलने वाला खिलाड़ी माना जाता है। लेकिन भारतीय टीम में अब तक उनका सही उपयोग नहीं किया जा सका है। एशिया कप में तो जिस तरह उनके ऊपर ऋषभ को वरीयता दी गई उससे तो लगता है कि भारतीय टीम पंत पर ही भरोसा करने वाली है। पंत की प्रतिभा पर शायद ही किसी को शक हो लेकिन उनकी कमी हालात के हिसाब से बल्लेबाजी नहीं कर पाना है। अच्छा खेलने के दौरान गलत शॉट खेलकर विकेट गंवाते रहे हैं। यदि शॉट चयन को ठीक कर लें तो टीम के लिए बहुत उपयोगी साबित हो सकते हैं।
भारतीय टीम काफी समय से आईसीसी ट्रॉफी से महरूम है। विराट और रवि शास्त्री की कप्तान और कोच की जोड़ी तो बिना आईसीसी ट्रॉफी के ही विदा हो गई। इस बार कप्तान रोहित शर्मा और कोच राहुल द्रविड़ की जोड़ी का इस विश्व कप में पहला इम्तिहान होने जा रहा है। रोहित की अगुआई में सभी खिलाड़ी अपनी क्षमता से खेल सके तो आईसीसी ट्रॉफी का सपना साकार हो सकता है।
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