प्रदूषण : पड़ोसी राज्यों का सहयोग जरूरी

Last Updated 25 Jul 2022 12:06:44 PM IST

दिल्ली सरकार ने पर्यावरण प्रदूषण को रोकने के लिए पिछले पांच वर्षो में बहुत सारे कदम उठाए हैं, जिसकी वजह से दिल्ली की आबोहवा में परिवर्तन आने की संभावना है। जैसे आज दिल्ली प्रदेश वनों को पनपाने में देश का पहला राज्य हो गया है।


प्रदूषण : पड़ोसी राज्यों का सहयोग जरूरी

दिल्ली में चल रहे वृक्षारोपण अभियान के तहत 2021 में हरित क्षेत्र 23.06 फीसद हो चुका है जबकि 2013 में दिल्ली का हरित क्षेत्र 20 फीसद था। इस तरह हरित क्षेत्र में हो रही वृद्धि से पर्यावरण प्रदूषण को कम करने में राहत मिल सकती है।

ऐसे ही यदि पर्यावरण पर दिल्ली सरकार की चिंता पर नजर दौड़ाएं तो स्वच्छ हवा की दिल्ली में वृद्धि हो सकती है। जैसे दिल्ली सरकार का कहना है कि दिल्ली सरकार अर्बन फार्मिग को बढ़ाने में भी प्रयासरत है। साथ ही दिल्ली सरकार दिल्ली के लोगों को पर्यावरण मित्र बनाने के प्रयास भी कर रही है। अभी तो दिल्ली सरकार का ध्यान सिर्फ विंटर एक्शन प्लान था, जिसमें उसकी चिंता सिर्फ सर्दी के मौसम में वायु प्रदूषण को रोकने के लिए एक्शन में आती थी, लेकिन अब सरकार ने समर एक्शन प्लान की तरफ भी ध्यान देने की सोची है। यदि ऐसे कार्य वर्ष भर चलाते रहेंगे, तो दिल्ली क्षेत्र को गंदगी से दूर रखा जा सकता है।

जैसा कि केजरीवाल सरकार घोषणा कर रही है कि उनके समर एक्शन प्लान यानी गरमियों के प्लान में काम करने के 14 प्वाइंट्स होंगे : पहला, खुले में कूड़े को न जलाना, दूसरा, अर्बन फार्मिग, तीसरा, सड़कों के किनारे हरित क्षेत्र बनाना, चौथा, पाकरे का विकास, पांचवां, ई-वेस्ट को ठिकाने लगाना, छठा, नगर वन का विकास, सातवां, झीलों का दिल्ली में विकास, आठवां, वृक्षारोपण और नौवां है सिंगल यूज प्लास्टिक के विकल्प को खड़ा करना। इस तरह से 14 बिंदुओं पर सरकार दिल्ली की जनता को स्वच्छ पर्यावरण पर कार्य करने के लिए प्रेरित कर रही है। यह कार्य एकतरफा नहीं हो सकता। दिल्ली की जनता को भी कम से कम अपने आसपास के क्षेत्र में गंदगी न फैलाने के लिए सचेत रहना चाहिए।

दिल्ली सरकार के और भी प्रयास दिख रहे हैं-जैसे कार्बन फार्मिग को लेकर भी सरकार काम कर रही है। इससे हरित क्षेत्र को और बढ़ाने का प्रयास कर रही है।  आश्वस्त कर रही है कि दिल्ली में 10 हजार पाकरे को विश्व स्तर का बनाया जाएगा। इसके लिए सरकार ने ‘ग्रीन पार्क ग्रीन दिल्ली’ की थीम पर अभियान शुरू किया है। दिल्ली में वायु और ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए ‘रेड लाइट ऑन, इंजन ऑफ’ पर वाहन चालकों को निर्देश दिए हैं।

जुलाई से पूरी दिल्ली में सिंगल यूज प्लास्टिक के 19 उत्पादों को भी बैन कर दिया है। इसी परिप्रेक्ष्य में पर्यावरण मित्र कैसे काम करेंगे, इस पर नागरिकों को व्यक्तिगत, स्कूल, परिवार और सामुदायिक स्तरों पर पर्यावरण की बेहतरी के लिए कार्य करने का अवसर पर्यावरण मित्र को मिलेगा। प्रदूषण के खिलाफ अभियान को जन आंदोलन बनाने के लिए दिल्ली सरकार दिल्ली के सभी नागरिकों को इससे जोड़ने के प्रयास में है जिससे हर व्यक्ति अपना योगदान पर्यावरण के लिए दे सके। युवाओं के साथ वरिष्ठ नागरिकों को भी जोड़ने का यह कार्यक्रम है।

पर्यावरण मित्र मुख्य तीन बिंदुओं पर कार्य करेंगे- पहला, हरियाली बढ़ाने के लिए मुख्य रूप से वृक्षारोपण, अर्बन फार्मिग और पार्क के विकास में सहयोग। दूसरा, प्रदूषण कम करने में वायु, जल और ध्वनि प्रदूषण के अभियान में सहयोग। तीसरा, कचरा प्रबंधन को सुधारने में अनेक क्षेत्रों से जो कचरा निकलता है, उसके सही प्रबंधन में सहयोग। साथ ही, जो पर्यावरण मित्र अच्छा काम करेंगे और वालंटियर गतिविधियों में ज्यादा भाग लेंगे, उनको सरकार पर्यावरण मित्र संगठन का कोआर्डिनेटर भी बना सकती है।  दिल्ली सरकार की योजनाएं अच्छी हैं, इन्हें युद्ध स्तर पर क्रियान्वित करने की आवश्यकता है क्योंकि दिल्ली को स्वच्छ रखना अनिवार्य है।

बेशक, दिल्ली को तो स्वच्छ रखने के प्रयास दिल्ली सरकार कर रही है पर ऐसे कार्य में भागीदारी करने का दायित्व राजधानी क्षेत्र से जुड़े राज्यों-हरियाणा और उत्तर प्रदेश-का भी बनता है। उनके लिए जरूरी है कि वे पूरे एनसीआर को स्वच्छ रखने के लिए कदम उठाएं। मात्र घोषणाएं करने से स्वच्छता अपने आप नहीं आएगी। उसके लिए सारे तकनीकी पहलुओं पर ध्यान देकर ही वे पर्यावरण संरक्षण में अपना योगदान दे सकेंगे।

दिल्ली में यमुना नदी गंदी है। नदी सिर्फ दिल्ली में ही प्रदूषित नहीं हुई है। इसमें जो कचरा बह कर आ रहा है, वह उद्गम क्षेत्र से प्रदूषित हो रहा है। वर्ष भर में लाखों श्रद्धालु यमनोत्री जाते हैं, वहां कचरा फैलाते हैं, उस कचरे का सीधा रास्ता यमुना के बहाव में है। इसलिए उत्तराखंड सरकार को भी ऐसे कार्य करने होंगे, जिससे हमारी पवित्र नदियों का पीने योग्य पानी सीधे दिल्ली तक पहुंच सके। कहने का तात्पर्य यह है कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता। इसलिए पड़ोसी राज्यों को भी अपनी जिम्मेदारियों का अहसास होना चाहिए।

भगवती प्र. डोभाल


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