नई राष्ट्रपति : विश्व पटल पर अविस्मरणीय क्षण

Last Updated 23 Jul 2022 08:20:12 AM IST

नये दशक में विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र, नया भारत; राष्ट्र निर्माण की परिकल्पना को पूर्णरूप से बराबरी, साझेदारी एवं लैंगिक समानता की नींव को मजबूत करने की ओर अग्रसर है।


नई राष्ट्रपति : विश्व पटल पर अविस्मरणीय क्षण

द्रौपदी मुर्मू जी का देश की पहली महिला आदिवासी राष्ट्रपति होना न सिर्फ  महिला वर्ग परंतु हाशिये पर खड़े अभिवंचित, आदिवासी, महिला एवं पिछड़े वर्ग से संबंधित हर एक भारतीय के सपनों एवं उनके जीजिविषा को जीवंत रूप प्रदान करता प्रतीत हो रहा है।  
भारत की 15वीं महामहिम द्रौपदी मुमरू के रूप में रायसीना हिल का नेतृत्व करना विश्व पटल पर एक अभूतपूर्ण एवं अविस्मरणीय पल है। यह द्योतक है नये भारत का जो आज के कालखंड में वैदिक काल की स्मृति को भी जीवंत करता है। भारत भूमि के जड़ में जहां नारी पूजनीय रहीं, भारत की मूल धरा  में ही नारी सम्मान को अडिग स्थान प्राप्त रहा, ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता:। यत्रैतास्तु न पूज्यंते सर्वास्तत्रफला: क्रिया वही भारत आज जीवंत नजर आ रहा है।
वैदिक काल में महिलाओं की स्थिति बराबरी, समानता  एवं  सम्मान  की द्योतक थी व  उन्हें  अभिव्यक्ति की संपूर्ण स्वतंत्रता थी। वैदिक काल में जहां महिलाएं बौद्धिक-धार्मिंक क्रियाओं में भाग ही नहीं, परन्तु उन्हें समाज में पुरोहितों और ऋषियों का दर्जा भी प्राप्त था, धीरे-धीरे तिरस्कृत होती चली गई। प्राचीन भारत में महिलाओं को उच्च स्थान प्राप्त था, ऋग्वेद काल खंड में महिलाएं उच्चा शिक्षा ब्रह्मज्ञान प्राप्त करने को भी स्वतंत्र थीं। महिलाएं धर्म शास्त्रार्थ इत्यादि में पुरुषों के सामान  ही भाग लेती थीं। महिलाओं की समानता  समाज में मान्य थी, संपत्ति में सामान अधिकार, क्षमता वर्धन के सामान्य अवसर, सैन्य में प्रशिक्षण एवं महिलाओं का सहशक्षिका होना समाज  का एक पहलू  रहा।  धीरे-धीरे मध्यकाल आते आते वो पितृसत्ता के चंगुल में फंसते चली गई एवं कालांतर में वे हाशिये पर पहुंच गई।

यदि इस समय द्रौपदी मुर्मू जी की जीत का महिला सशक्तिकरण एवं सामाजिक समानता के नजरिये से विश्लेषण किया जाए तो; यह विदित होगा कि वर्तमान राजनीतिक पृष्ठभूमि में भी भारत ने एक सजग एवं दूरदर्शी परिवर्तन सुनिश्चित किया है। एनडीए द्वारा मुर्मू जी को उम्मीदवार बनाया जाना ही इस बात का द्योतक रहा कि राजनीतिक पटल पर ऐतिहासिक बदलाव की नींव डाली जा चुकी है। मुर्मू जी की पृष्ठभूमि जहां चुनौतियों को जीते हुए उन्होंने अपने स्वावलंबन, दृढ़विश्वास एवं संपूर्ण जीवन अथक प्रयास कर क्लर्क की नौकरी से झारखंड की गवर्नर और अब महामहिम का सफर पूरा किया, वह इस बात का परिचायक है कि अभिवंचित वर्ग या आदिवासी समाज से होना किसी भी महिला के लिए रोड़ा नहीं बल्कि एक अवसर है और अपने जीवन यात्रा से उदाहरण स्थापित करना असंभव नहीं। राजनीतिक पृष्ठभूमि पर भी यह एक उदाहरण के तौर पर यादगार लम्हा रहा। जब 21 जून को भाजपा ने उनकी उम्मीदवारी की घोषणा की तो एनडीए के खाते में 5 लाख 63 हजार 825 वोट थे। यानी कुल 52 प्रतिशत, जबकि विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा जी के साथ 4 लाख 80 हजार 148 (44 प्रतिशत के लगभग), परन्तु यह ऐतिहासिक रहा कि 21 दिनों के दौरान अन्य दलों  के समर्थन की घोषणा के साथ मुर्मू जी को निर्णायक जीत हासिल हुई। राजनीतिक पृष्ठभूमि से भी यह एक सजग परिवर्तन रहा जहां दलों में मतभेद दरकिनार कर राष्ट्र की पहली आदिवासी और कर्मशील महिला को महामहिम चुना गया। ऐसी परिस्थिति में विपक्ष की भूमिका काफी अफसोसजनक रही, जहां उन्होंने संकुचित विपक्षीय विचारधारा का उदाहरण दिया और मुमरू का विरोध कर राजनीतिक, सामाजिक एवं समानता के दृष्टिकोण से उदाहरण प्रस्तुत करने का स्वर्णिम मौका खो दिया।
यह कहना बिल्कुल भी अतिश्योक्ति नहीं होगी कि मुर्मू की उम्मीदवारी घोषित होते ही आम नागरिकों ने उन्हें अपना महामहिम चुन लिया था, क्योंकि वे सिर्फ  आधी आबादी का ही नहीं अपितु उन सभी अभिवंचित और दशकों से हाशिये पर बैठे लोगों का प्रतिबिंब थी, जिन्हें दशकों तक अवहेलना का शिकार बनना पड़ा। विगत वर्षो में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में महिला सशक्तिकरण के लिये गए फैसलों ने पूरे देश के अभिवंचित वर्ग खास कर महिला वर्ग को यह स्पष्ट किया कि उनके नेतृत्व में देश की राजनीति राष्ट्रनीति को समर्पित है, जो सत्ता के लिए नहीं अपितु निचले तबके, पिछड़े वगरे एवं महिलाओं के लिए  कार्य करती है। वर्तमान  में संवैधानिक ढांचे में राष्ट्र की पहली आदिवासी महिला ‘प्रथम नागरिक’ का रायसीना हिल का नेतृत्व करना इस बात को सही साबित करता है कि ‘भारत में न्यू नार्मल’ है। महामहिम मुमरू को ढेरों शुभकामनाएं।

सुगंधा मुंशी


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