सामयिक : अम्मा का सबसे बड़ा अस्पताल

Last Updated 25 Jul 2022 12:11:11 PM IST

आम तौर पर ज्यादातर मशहूर धर्माचार्य कॉरपोरेट जिंदगी जीते हैं। महलनुमा आश्रमों में रहते हैं। महंगी गाड़ियों में घूमते हैं। हीरे-जवाहरात से लदे रहते हैं। सैकड़ों करोड़ रु पये के निवेश करते हैं।


सामयिक : अम्मा का सबसे बड़ा अस्पताल

अमीरों के पीछे भागते हैं, और गरीबों को हिकारत की नजर से देखते हैं। पर दक्षिण के केरल राज्य में मछुआरों की बस्ती में दरिद्र परिवार में जन्मीं माता अमृतानंदमयी मां ‘अम्मा’ अपवाद हैं, जिनका पूरा जीवन गरीबों और जरूरतमंदों की सेवा के लिए समर्पित है। पूरी दुनिया में करोड़ों लोगों के जीवन में सुख देने वाली ‘अम्मा’ जनसेवा के क्षेत्र में एक और ऐतिहासिक कदम रखने जा रही हैं। 24 अगस्त को फरीदाबाद में अम्मा के अस्पताल का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी करेंगे।

एक सौ 33 एकड़ भूमि में फैला यह अस्पताल भारत में निजी क्षेत्र का सबसे बड़ा अस्पताल है। कोच्चि (केरल) में प्रतिष्ठित 1,200 बिस्तरों वाले अमृता अस्पताल के बाद यह देश में अम्मा का दूसरा बड़ा अस्पताल होगा। केरल के अस्पताल को 25 साल पहले माता अमृतानंदमयी मठ द्वारा स्थापित किया गया था। फरीदाबाद के सेक्टर-88 में फैला यह अस्पताल 1 करोड़ वर्ग फुट का होगा जिसमें 14 मंजिल ऊंची एक टॉवर है, जहां प्रमुख चिकित्सा सुविधाओं की मदद से विभिन्न बीमारियों के रोगियों का इलाज होगा। अस्पताल की 81 विशिष्टताओं में न्यूरोसाइंसेस, गैस्ट्रो-साइंसेस, ऑन्कोलॉजी, रीनल साइंस, हड्डी रोग, कार्डियक साइंस और स्ट्रोक और मां व बच्चे जैसे उत्कृष्टता के आठ केंद्र शामिल होंगे। चौबीस सौ बिस्तरों के लक्ष्य वाले इस अस्पताल में इस साल 500 बिस्तरों के साथ मरीजों का इलाज चरणबद्ध तरीके से चालू किया जाएगा।

आने वाले दो वर्षो में यह संख्या बढ़कर 750 बिस्तरों और पांच वर्षो में 1,000 बिस्तरों तक हो जाएगी। पूरा चालू होने पर अस्पताल में 800 से अधिक डॉक्टरों सहित 10,000 लोगों का स्टाफ तैनात होगा। अस्पताल में कुल 2,400 बेड होंगे, जिनमें 534 क्रिटिकल केयर बेड शामिल हैं, जो भारत में सबसे अधिक होंगे। 64 मॉड्यूलर ऑपरेशन थिएटर, उन्नत इमेजिंग सेवाएं, स्वचालित रोबोट प्रयोगशाला, उच्च-सटीक विकिरण ऑन्कोलॉजी, आधुनिक परमाणु चिकित्सा और नैदानिक सेवाओं के लिए अत्याधुनिक 9 कार्डियक और इंटरवेंशनल कैथ लैब भी होंगे। फरीदाबाद में अल्ट्रा-आधुनिक अमृता अस्पताल कम कार्बन पदचिह्न के साथ भारत की सबसे बड़ी ग्रीन-बिल्डिंग हेल्थकेयर परियोजनाओं में से एक होगा। यह एक एंड-टू-एंड पेपरलेस सुविधा है, जिसमें शून्य अपशिष्ट निर्वहन होता है। मरीजों के तेजी से परिवहन के लिए परिसर में हेलीपैड और 498 कमरों वाला एक गेस्ट हाउस भी है, जहां मरीजों के साथ आने वाले परिचारक रह सकते हैं। अम्मा की संस्था द्वारा चलाई जा रही सेवाओं का मुख्य उद्देश्य दीनहीन लोगों की नि:स्वार्थ मदद करना है। उनके सुपरस्पेशलिटी अस्पताल में गरीब से फीस नाम मात्र की ली जाती है।

आज जब वैभव में आकंठ डूबे ढोंगी धर्मगुरुओं का जाल बिछ चुका है, तब गरीबों के लिए अपना सब कुछ लुटा देने वाली अम्मा कोई साधारण व्यक्तित्व नहीं हो सकतीं। आज टीवी चैनलों पर स्वयं को परम पूज्य बताकर या बाइबल की शिक्षा के नाम पर जादू-टोने दिखाकर या इस्लाम पर मंडरा रहे खतरे बताकर धर्म की दुकानें चलाने वालों की लंबी कतार है। ये ऐसे ‘धर्मगुरू’ हैं, जिनके सान्निध्य में आपकी आध्यात्मिक जिज्ञासा शांत नहीं होती, बल्कि भौतिक इच्छाएं बढ़ जाती हैं जबकि होना इसके विपरीत चाहिए था। पर, प्रचार का जमाना है। चार आने की लागत वाले स्वास्थ्य विरोधी शीतल पेयों की बोतल 20 रुपये की बेची जा रही है। धर्मगुरू विज्ञापन एजेंसियों का सहारा लेकर टीवी चैनलों के माध्यम से अपनी दुकान अच्छी चला रहे हैं, और हजारों करोड़ के साम्राज्य को भोग रहे हैं जबकि दूसरी ओर अम्मा गरीबों का दुख निवारण करने के लिए सदैव तत्पर रहती हैं।  इसका ही परिणाम है कि केरल में जहां गरीबी व्याप्त थी और उसका फायदा उठाकर भारी मात्रा में धर्मातरण किए जा रहे थे, वहीं आज अम्मा की सेवाओं के कारण धर्मातरण तेजी से रुका है। हिंदू धर्मावलंबी अब अपनी छोटी-छोटी जरूरतों के लिए मिशनरियों के पल्रोभनों में फंसकर अपना धर्म नहीं बदलते। इस स्थिति को पाने के लिए अम्मा ने वर्षो कठिन तपस्या की है। कृष्ण भाव में तो जन्म से ही डूबी रहती थीं पर उनके रूप, रंग और इस असामान्य व्यवहार के कारण उन्हें अपने परिवार से यातनाएं झेलनी पड़ीं।

वयस्क होने तक अपने घर में नौकरानी से ज्यादा उनकी हैसियत नहीं थी जिसकी दिनचर्या सूर्योदय से पहले शुरू होती और देर रात तक खाना बनाना, बर्तन मांजना, कपड़े धोना, गाय चराना, नाव खेकर दूर से मीठा पानी लाना क्योंकि गांव में खारा पानी ही था, गायों की सेवा करना, बीमारों की सेवा करना, यह सब कार्य अम्मा को दिन-रात करने पड़ते थे। ऊपर से उनके साथ मारपीट तक की जाती थी। उनके बाकी भाई-बहिनों को खूब पढ़ाया-लिखाया गया पर अम्मा चौथी पास रह गई। इन विपरीत परिस्थितियों में भी अम्मा ने कृष्ण भक्ति और मां काली की भक्ति नहीं त्यागी। दिन-रात भजन किया और उनकी साधना सिद्ध हो गई। कलियुग के लोग चमत्कार देखना चाहते हैं पर अम्मा स्वयं को सेविका बताकर चमत्कार दिखाने से बचती रहीं। पर यह चमत्कार क्या कम है कि वे दुनियाभर में जाकर 5 करोड़ से अधिक लोगों को गले लगा चुकी हैं। उनको सांत्वना दे चुकी हैं, उनके दुख हर चुकी हैं, और उन्हें सद्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित कर रही हैं।

इस चमत्कार के बावजूद हमारी ब्राह्मणवादी हिंदू व्यवस्था ने इस महान आत्मा को मछुआरिन मानकर वो सम्मान नहीं दिया, जो संत समाज में उन्हें दिया जाना चाहिए था। यह बात दूसरी है कि ढोंगी गुरुओं के मायाजाल के बावजूद दुनियाभर के तमाम पढ़े-लिखे लोग, वैज्ञानिक, सफल व्यवसायी, सिने कलाकार, नेता और पत्रकार भारी मात्रा में उनके शिष्य बन चुके हैं, और उनके आगे बालकों की तरह बिलख-बिलख कर अपने दुख बताते हैं। मां सबको अपने ममतामयी आलिंगन से राहत प्रदान करती हैं। उनके आचरण में न तो वैभव का प्रदशर्न है, और न ही अपनी विव्यापी लोकप्रियता का अहंकार जबकि वे संयुक्त राष्ट्र द्वारा विश्व की सबसे बड़ी सम्मानित संत घोषित हैं। उनके द्वार पर कोई भी, कभी भी, अपनी फरियाद लेकर जा सकता है।

विनीत नारायण


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