सामयिक : करगिल से आगे
जुलाई 26, भारतीय सैन्य इतिहास की परंपरा में एक विशेष दिन है। 1999 से यह दिन भारतीय सेनाओं के करगिल क्षेत्र में सैन्य अभियान की सफलता को ‘विजय दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।
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आज जब पूरा देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, यह दिन और भी विशिष्ट हो जाता है। आज हम एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में 75 वर्ष पूरे कर रहे हैं। आने वाले 25 वर्ष अमृत काल के होंगे। हर एक दिन एक नई शुरुआत का होगा। आज समय है चिंतन का कि हम कहां थे, कहां पहुचे हैं और आने वाले दिनों में हम कहां होंगे। करगिल से सबक तो हमने सीख लिये थे, परंतु भविय की रणनीति कैसी हो इस पर सकारात्मक एवं ठोस प्रयास 2014 के बाद ही हुए।
जब-जब देश की सीमाओं पर संकट आता है तो देश का हर जवान अपना सर्वोच्च बलिदान देकर अपने कर्त्तव्य का निर्वाह करता है। 527 अधिकारी एवं जवानों ने करगिल की दुर्गम चोटियों पर अपना सर्वोच्च बलिदान देकर भारतीय सैन्य परंपराओं के अनुरूप अपने कर्त्तव्यों का पालन किया। अटलजी के नेतृत्व में देश की राजनीतिक-कूटनीतिक कुशलता का लोहा पूरी दुनिया ने स्वीकार किया। पूरी दुनिया ने देखा कि जब पूरा देश ‘रक्षा’ जैसे गंभीर विषयों पर एक साथ आकर खड़ा हो जाता है तभी देश ‘युद्ध’ जैसी गंभीर चुनौतियों पर विजय हासिल कर पाता है।
‘ये दिल मांगे मोर’ जैसा वाक्य त्याग, बलिदान और राष्ट्रभक्ति का प्रतीक बनकर स्थापित हुआ। तब से लेकर आज तक यह दिन देश की सेनाओं के शौर्य, त्याग और बलिदान की याद दिलाता है। 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सेनाओं की आवश्यकताओं को बारीकी से समझा और मिलिट्री रिफार्म को नई रफ्तार दी। चाहे ‘एक रैंक एक पेंशन’ हो या फिर सीडीएस के पद का सर्जन, राष्ट्रीय सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई। आज भारतीय सेना अपने आप को भविष्य की चुनौतियों के अनुरूप तैयार कर रही है।
साइबर वार से लेकर सैन्य आधुनिकरण देश की सर्वोच्च प्राथमिकता है। राफेल फाइटर प्लेन, एस 400 से लेकर अत्याधुनिक साजो-सामान से सेना को सुसज्जित किया जा रहा है। तीन सेनाओं के बीच समन्वय हो इसके लिए संयुक्त कमांड जैसे व्यवस्था की जा रही हैं। आयुध फैक्टरियों को नया स्वरूप देकर पुन: संगठित किया गया ताकि सामरिक शक्ति को नई ऊर्जा और जोश मिले। ‘मेक इन इंडिया’ के माध्यम से देश के अंदर ही रक्षा जरूरतों को पूरा करने का काम हो रहा है। आज भी प्रधानमंत्री हर वर्ष दीपावली का त्योहार सरहद पर सैनिकों के साथ ही मनाते हैं। क्यों न हम भी अपने आसपास के क्षेत्र में रहने वाले शहीदों के परिवारों के साथ विजय दिवस, स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस जैसे महापर्व मनाएं। इससे हम न केवल शहीदों के परिवार को सम्मान एवं गर्व की अनुभूति देंगे, साथ-साथ हमारी युवा पीढ़ी को भी देश के असली ‘हीरो’ से रूबरू होने का मौका मिलेगा। इस वर्ष ‘हर घर तिरंगा अभियान’ से जुड़कर हम इस परंपरा की शुरुआत कर सकते हैं। आने वाले दिनों में हर मां, दादी, पिता अपने बच्चों को देश के शहीदों की शौर्यगाथाएं सुनाएं, ताकि ये महान व्यक्तित्व हमारी अपने वाली पीढ़ी के लिए प्ररेणास्त्रोत बन सके।
यह देश का दुर्भाग्य था कि हमें स्वतंत्र भारत का पहला युद्ध स्मारक मिलने में 75 वर्ष लगे। आज हम गर्व के साथ ‘राष्ट्रीय युद्ध स्मारक’ पर जाकर देश के वीर सैनिकों को सम्मान दे सकते हैं। मेरे विचार में यह देश का सबसे बड़ा तीर्थ है। जहां हर बच्चे, युवा को जाकर देश पर मिटने वालों की शौर्यगाथा का अहसास होगा। मुझे बचपन में याद की कुछ पंक्तियां अनायास ही याद आ जाती है :-
मुझे तोड़ लेना वनमाली, उस पथ पर तुम देना फेंक
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने, जिस पथ जावें वीर अनेक।
न जाने देश के कितने गांव, शहर और कस्बों में इन वीर बलिदानियों के स्मारक या प्रवेश-द्वार है जो हमें देश के प्रति समर्पण, बलिदान एवं देशभक्ति का बोध कराते हैं। जब जब देश के सामने सैन्य चुनौतियां आएगी हमारी सेनाएं उसका मुंहतोड़ जवाब देने में सक्षम है। आज देश के पास एक मजबूत नेतृत्व है, दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति है। आवश्यकता है मिलिट्री रिफार्म को तेजी से लागू करने की, सैन्य बलों के आधुनिकीकरण की। निश्चित रूप से जब देश आजादी के 100 वर्ष मना रहा होगा, भारत एक वैश्विक शक्ति के रूप में दुनिया का नेतृत्व कर रहा होगा। करगिल के शहीदों को यही हमारी सच्ची श्रद्धाजंलि होगी।
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