कट्टरपंथ व धर्मातरण : क्या सोचते हैं भारत-नेपाल

Last Updated 26 Jul 2022 12:03:11 PM IST

राष्ट्रीय जांच एजेंसी यानी एनआईए द्वारा बिहार के पटना-फुलवारीशरीफ आतंकवादी मॉड्यूल की जांच हाथ में लेने के साथ उसकी उम्मीद बंधी है।


कट्टरपंथ व धर्मातरण : क्या सोचते हैं भारत-नेपाल

यानी पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया, इससे जुड़े छोटे-बड़े संगठनों की देश विरोधी गतिविधियों का पूरा सच सामने आ जाएगा। जितना सच अभी तक सामने आया है वही हम सबको डराने के लिए पर्याप्त है।
राज्य संरचना के वर्तमान ढांचे में ऐसे सभी मामलों में कानूनी एजेंसियों की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। बिहार पुलिस ने अभी तक की छानबीन में पाया है कि गजवा-ए -हिंद और बीआईपी ऐप के जरिए देश विरोधी गतिविधियों में संलिप्त आरोपी मरगूब अहमद दानिश उर्फ ताहिर नेपाल के कुछ मुस्लिम युवाओं से भी जुड़ा था। अलफलाही व्हाट्सएप ग्रुप से सब जुड़े थे और इसे आजमगढ़ से ऑपरेट किया जा रहा था। भारत में अनेक आतंकी गतिविधियों के सूत्र नेपाल से जुड़े पाए गए हैं। यह बात अलग है कि नेपाल के आम लोगों से पूछें तो उनके लिए इस्लामी आतंकवाद या कट्टरवाद से ईसाई मिशनरियों की गतिविधियां तथा धर्मातरण इस समय बड़ी समस्या मानी जा रही है। जैसा आप जानते हैं नेपाल पिछले काफी समय से राजनीतिक अस्थिरता की चपेट में था। वहां शेर बहादुर देउबा की सरकार है, जो भारत के साथ पूरी तरह तादात्मय बनाकर काम कर रही है। नेपाल में ऐसे लोगों की संख्या बहुत बड़ी है, जो मानते हैं कि वहां की व्यवस्था और संविधान में संपूर्ण परिवर्तन ही सही और अंतिम उपाय है।
नेपाल पर नजर रखने वाले जानते हैं कि पिछले काफी समय से वहां राजशाही को पुन: स्थापित करने तथा हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए व्यापक पैमाने पर आंदोलन चल रहा है। नेपाल को हम किस तरह से देखते हैं यह हमारा आपका अपना दृष्टिकोण है किंतु वहां के लोगों में आंदोलन करने, सड़कों पर उतरने तथा स्वयं पहल करके परिवर्तन कराने का चरित्र भारत से कई गुना ज्यादा है। भारत में लंबे समय से इस्लामी कट्टरपंथ, आतंकवाद तथा ईसाई मिशनरियों की गतिविधियां परेशानी के कारण बने हुए हैं।

स्थानीय स्तर पर कुछ संगठनों ने किसी प्रसंग या घटना के आरोप में छोटे-बड़े धरना-प्रदर्शन आदि किए होंगे, पर राष्ट्रीय स्तर पर जनता सड़कों पर नहीं उतरती। भारत में एक बड़े वर्ग का मानना है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति भवन पहुंचा कर विश्व भर के ईसाई मिशनिरयों को बड़ा संदेश दिया है। भारत में ज्यादातर ईसाई धर्मातरण आदिवासी समुदायों के बीच ही हुआ है। ये मिशनरी विश्व में जाकर यह दुष्प्रचार करते हैं कि वहां अभी भी आदिवासियों को आम लोगों के समान न हक है न उनके लिए सरकारी व्यवस्थाएं और कल्याणकारी कार्यक्रम ही हैं। वे अभी भी अशिक्षित और गंवार जैसी जिंदगी जीते हैं, जिन्हें हम सभ्य बनाने के लिए वहां अपना मिशन चला रहे हैं। इसके नाम पर विदेश से इन्हें भारी धन भी आता है। यह बात अलग है कि मोदी सरकार ने एनजीओ के विरु द्ध सख्ती दिखाई है जिसका असर है। नेपाल में ईसाई मिशनरी बेरोकटोक काम कर रही है। मोटा-मोटी आंकड़ा है कि नेपाल में करीब 7 फीसद लोग ईसाई बन चुके हैं। आपको नेपाल में जगह-जगह नवनिर्मिंत चर्च दिखाई देंगे।
ऐसा नहीं है कि लोग पुलिस-प्रशासन में इनकी गतिविधियों की शिकायत नहीं करते या सरकार तक बात नहीं पहुंची है। बावजूद वहां लोग  अन्य सामाजिक-आर्थिक-सांस्कृतिक समस्याओं के साथ इसका हल यही मानते हैं कि नेपाल के संविधान को परिवर्तित किया जाए। उसमें सेक्यूलर की जगह हिंदू राष्ट्र शब्द डाला जाए तथा वर्तमान संसदीय लोकतांत्रिक ढांचे को इस तरह परिवर्तित किया जाए, जिससे राज्य खत्म होकर केवल देश रहे, राजशाही वापस आए एवं राजा सर्वोपरि हो। जिस समय पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के विरुद्ध आंदोलन था; ठीक उसी के समानांतर लोग सड़कों पर राजतंत्र और हिंदू राष्ट्र के समर्थन में भी रैलियां कर रहे थे। इनका यह भी मानना है कि नेपाल में संसदीय लोकतंत्र के नाम पर राजनीतिक अस्थिरता तथा राजनीति के साथ भ्रष्टाचार, अपराध, धनबल और अनैतिकता सहित अनेक प्रकार की विद्रूपताओं का गठजोड़ स्थापित हो गया है। नेपाल के लोगों की बड़ी संख्या मानने लगी है कि इस व्यवस्था से उनका अहित ज्यादा हो रहा है। वर्तमान राष्ट्रपति विद्या भंडारी ने केपी शर्मा ओली को मनमाने तरीके से अपना राजनीतिक हित साधने यानी बहुमत बनाए रखने के लिए हरसंभव व्यवस्था करने की अघोषित छूट दे दी थी। नेपाल के लोग मानते हैं कि राजशाही में भी एक संसद और विधायिका होगी किंतु राजा को इतनी शक्तियां प्राप्त रहती हैं कि वो अपने अनुसार मार्ग निर्देश करके व्यवस्था को बेहतर बनाए रखा।
राजा अगर संवैधानिक रूप से शक्तिशाली होगा तो नेता एवं नौकरशाह उसकी बात मानने के लिए बाध्य होंगे। नेपाल के बहुमत लोगों के अंदर राजशाही एवं राजाओं के प्रति अभी भी गहरी श्रद्धा है। माओवादियों के प्रति वितृष्णा बढ़ रही है। हिंदू राष्ट्र के समर्थक मानते हैं कि एक बार इसकी घोषणा होने के बाद नेपाल में अंतर आना शुरू हो जाएगा। वर्तमान शिक्षा प्रणाली में शिक्षित लोग राजतंत्र के नाम पर सहमत नहीं होंगे। हालांकि राजतंत्र के काल में नेपाल आर्थिक, सामाजिक या सांस्कृतिक रूप से उन्नत व विकसित देश नहीं बन सका। यही बात वर्तमान व्यवस्था पर भी लागू होती है। भारत की समस्या यह है कि यह वैसे किसी मुहिम का खुलकर साथ नहीं दे सकता, जिसमें राजशाही की पुनर्स्थापना एवं हिंदू राष्ट्र बनाने की मांग की जा रही हो।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मानना यही है कि भारत को हिंदू राष्ट्र बनाना नहीं है यह पहले से ही हिंदू राष्ट्र है। इनके अनुसार यह हिंदू राष्ट्र है इसी कारण सेक्यूलर है। नेपाल में हिंदू राष्ट्र की मांग करने वाले का यह कहना सही है कि संविधान सभा सह संसद ने संविधान में सेक्यूलर शब्द डालने का प्रस्ताव बहस या सदन के अंदर मतदान द्वारा नहीं हुआ। लोकतांत्रिक देश होने के कारण भारत ऐसी मुहिम को सार्वजनिक समर्थन नहीं दे सकता। किंतु अगर नेपाल के लोग यही चाहते हैं और वर्तमान व्यवस्था ने उन्हें निराश किया है तो इसका उपयुक्त समाधान क्या है? हम इतना ही कहना चाहेंगे कि व्यवस्था कोई भी हो यदि वह आम जनता की खुशहाली, उसकी सुख-शांति, मानवोचित स्वतंत्रता तथा नैतिक एवं आध्यात्मिक रूप से उन्हें समुन्नत करने का काम करती है तो वही श्रेष्ठ है।

अवधेश कुमार


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