तेलंगाना : तिरुपति जैसा भव्य मंदिर

Last Updated 27 Jun 2022 12:51:36 AM IST

क्या आपको पता है कि हैदराबाद से साठ किलोमीटर दूर यदाद्रीगिरीगुट्टा क्षेत्र में भगवान लक्ष्मी-नृसिंह देव का एक अत्यंत भव्य मंदिर पिछले वर्षो में बना है।


तेलंगाना : तिरुपति जैसा भव्य मंदिर

 पिछले हफ्ते जब मैं इसके दशर्न करने गया तो इसकी भव्यता और पवित्रता देख कर दंग रह गया। दरअसल, 2014 में आंध्र प्रदेश से अलग होने के बाद तेलंगाना में यह एक कमी थी। प्रसिद्ध तिरु माला तिरु पति मंदिर आंध्र प्रदेश के हिस्से में चला गया था। तेलंगाना सरकार ने इस कमी को पूरा करने के लिए पौराणिक महत्त्व के यदाद्री लक्ष्मी-नृसिंह मंदिर का 1800 करोड़ रुपये की लागत से तिरु पति की तर्ज पर भव्य निर्माण करवाया है। आज यहां लाखों दशर्नार्थियों का मेला लगा रहता है।
यदाद्री लक्ष्मी-नृसिंह गुफा का उल्लेख 18 पुराणों में से एक स्कंद पुराण में मिलता है। शास्त्रों के अनुसार त्रेता युग में महर्षि ऋष्यश्रृंग के पुत्र यद ऋषि ने यहां भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी। उनके तप से प्रसन्न विष्णु ने उन्हें नृसिंह रूप में दशर्न दिए थे। महर्षि यद की प्रार्थना पर भगवान नृसिंह तीन रूपों-ज्वाला नृसिंह, गंधभिरंदा नृसिंह और योगानंदा नृसिंह-में यहीं विराजित हो गए। दुनिया में एकमात्र ध्यानस्थ पौराणिक नृसिंह प्रतिमा इसी मंदिर में है। भगवान नृसिंह की ये तीन प्रतिमाएं और माता लक्ष्मी की एक प्रतिमा, करीब 12 फीट ऊंची और 30 फीट लंबी एक गुफा में आज भी मौजूद हैं। इस गुफा में एक साथ 500 लोग दशर्न कर सकते हैं। इसके साथ ही आसपास हनुमान जी और अन्य देवताओं के भी स्थान हैं। इसी गुफा के ऊपर और चारों ओर यह विशाल मंदिर परिसर बनाया गया है।

मंदिर के निर्माण में कहीं भी ईट, सीमेंट या कंक्रीट का प्रयोग नहीं हुआ है। सारा मंदिर ग्रेनाइट की भारी-भारी ‘श्री कृष्ण शिलाओं’ से बना है, जिन्हें पुराने  तरीके के चूने के मसाले से जोड़ा गया है। मंदिर के निर्माण में 80 हजार टन पत्थर लगा है, जो यह सुनिश्चित करेगा कि यह मंदिर सदियों तक रहेगा। नवनिर्मिंत मंदिर का सारा निर्माण कार्य आगम, वास्तु और पंचरथ शास्त्रों के सिद्धांतों पर किया गया है, जिनकी दक्षिण भारत में खासी मान्यता है। पारम्परिक नक्काशी से सुसज्जित यह मंदिर कुल साढ़े चार साल में बन कर तैयार हुआ है, जो अपने आप में एक आश्चर्य है। इसके लिए इंजीनियरों और आर्किटेक्ट्स ने करीब 1500 नक्शों और योजनाओं पर काम किया। मंदिर का सात मंजिला ग्रेनाइट का बना मुख्य द्वार, जिसे राजगोपुरम कहा जाता है, करीब 84 फीट ऊंचा है। इसके अलावा, मंदिर के छह और गोपुरम हैं। राजगोपुरम के आर्किटेक्चर में पांच सभ्यताओं-द्रविड़, पल्लव, चौल, चालुक्य और काकातिय-की झलक मिलती है।    
हजारों साल पुराने इस तीर्थ का क्षेत्रफल करीब नौ एकड़ था। मंदिर के विस्तार के लिए 1900 एकड़ भूमि अधिग्रहित की गई। इसकी भव्यता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मंदिर में 39 किलो सोने और करीब 1753 टन चांदी से सारे गोपुरम (द्वार) और दीवारों को मढ़ा गया है। नवस्थापित भगवान के विशाल विग्रह और गरु ड़स्तंभ भी सोने के बने हैं। मंदिर की पूरी परिकल्पना हैदराबाद के प्रसिद्ध आर्किटेक्ट आनंद साई की है। यदाद्री मंदिर ऊंचे पहाड़ पर मौजूद है। मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव की सनातन धर्म में गहरी आस्था है, यह इस बात से सिद्ध होता है कि उन्होंने मंदिर परिसर के आस-पास कोई भी दुकान या खान-पान की व्यवस्था नहीं होने दी क्योंकि उससे मंदिर की पवित्रता भंग होती। इन सब गतिविधियों के लिए उन्होंने पहाड़ के नीचे तलहटी में पूरा व्यावसायिक परिसर बनाया है जबकि उत्तर भारत में हो रहे धार्मिंक नवनिर्माणों में मंदिर परिसर या उसके आस-पास भोजनालय, दुकानें और अतिथि निवास बना कर अफसरों और इंजीनियरों ने अनेकों सुप्रसिद्ध मंदिरों की पवित्रता और शांति को भंग कर दिया है।   
मंदिर तक पहुंचने के लिए हैदराबाद सहित सभी बड़े शहरों से जोड़ने के लिए फोरलेन सड़कें तैयार की गई हैं। मंदिर के लिए अलग से बस-डिपो भी बनाए गए हैं। इस इलाके में यात्रियों से लेकर वीआईपी तक सारे लोगों की सुविधाओं का ध्यान रखते हुए कई तरह की व्यवस्थाएं की गई हैं। यात्रियों के लिए मंदिर की पहाड़ से दूर अन्य पहाड़ों पर अलग-अलग तरह के गेस्ट हाउस और टेम्पल सिटी का निर्माण भी किया गया है। पूरे परिक्षेत्र में जो हरियाली और फुलवारी लगाई गई है, वो अंतरराष्ट्रीय स्तर की है। जैसी आपको सिंगापुर, शंघाई, वियना जैसे शहरों में देखने को मिलती है। सफाई और रख-रखाव भी पांच सितारा स्तर का है जिससे उत्तर भारत के मंदिरों के प्रशासकों और तीर्थ विकास में लगे अफसरों को प्रेरणा लेनी चाहिए। तेलंगाना के अधिकारियों ने गुणवत्ता और कलात्मकता की दृष्टि से बेहतरीन  काम किया है। ज्ञान जहां से भी मिले बटोरना चाहिए, यह हमारा वेद-वाक्य है।   
आश्चर्य की बात यह है कि यदाद्रीगिरीगुट्टा के इस इलाके में जहां दूर-दूर तक एक बूंद पानी नहीं था, भूमि सूखी और पथरीली थी, जल का कोई स्रेत न था, वहां तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव की विश्व भर में चर्चित ‘मिशन भागीरथ’ योजना से दस लाख लीटर शुद्ध जल प्रति दिन पहुंचाया जा रहा है। यहां बने कल्याणकट्टा मंडप में प्रति दिन 15 हजार भक्त मुंडन करवाने के बाद सामने लक्ष्मी सरोवर में दशर्नार्थी स्नान करते हैं। प्रसाद हॉल में एक बार में 750 और दिन भर में 15 हजार लोग प्रसाद ग्रहण कर सकते हैं। इसके अलावा तिरु पति की तरह ही यदाद्री मंदिर में भी लड्डू प्रसादम मिलता है। इसके लिए अलग से एक कॉम्प्लेक्स तैयार किया गया है, जहां लड्डू प्रसादम के निर्माण से लेकर पैकिंग की व्यवस्था है। मंदिर में दशर्न के लिए क्यू कॉम्पलेक्स बनाया गया है। इसकी ऊंचाई करीब 12 मीटर है। इसमें रेस्ट रूम सहित कैफेटेरिया की सुविधाएं भी हैं। अब आप जब चाहें तिरु पति के साथ ही स्कंद पुराण में वर्णित इस दिव्य तीर्थ स्थल का भी दशर्न करने हैदराबाद से यदाद्रीगिरीगुट्टा मंदिर जा सकते हैं। आपको दिव्य आनंद की प्राप्ति होगी।

विनीत नारायण


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