संत शिरोमणि स्वामी वामदेव जी महाराज : कहां गई आदमकद मूर्ति?

Last Updated 30 May 2022 01:00:15 AM IST

सारे भारत के संत समाज, भक्त समाज और हिन्दुओं के लिए अत्यंत क्षोभ और आक्रोश का विषय है कि उत्तराखण्ड सरकार के अधीन हरिद्वार प्रशासन और पुलिस की घोर लापरवाही से स्वामी वामदेव जी महाराज की आदमकद प्रतिमा, जो सितम्बर, 2021 को चोरी हो गई थी, का आज तक पता नहीं लगा है।


संत शिरोमणि स्वामी वामदेव जी महाराज : कहां गई आदमकद मूर्ति?

श्री राम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन के सूत्रधार, विरक्त संत श्रद्धेय वामदेव जी महाराज की यह प्रतिमा खड़ी मुद्रा में थी और अष्टधातु की बनी थी और लाखों रुपये मूल्य की थी जिसे 2007 में देश भर के संतों ने हरिद्वार के मुख्य स्थान ‘स्वामी वामदेव मार्ग’ पर बड़े उत्साह और  वैदिक ऋचाओं के साथ विधि-विधान के साथ स्थापित किया था जो हरिद्वार के मुख्य चौराहे पर स्थापित थी। बाद में उसे सड़क चौड़ीकरण के लिए हरिद्वार प्रशासन द्वारा अस्थायी रूप से हटाया गया था। संतों को यह आश्वासन दिया गया था कि सड़क का चौड़ीकरण कार्य पूर्ण होते ही इसे पुन: वहीं स्थापित कर दिया जाएगा पर ऐसा नहीं हुआ। स्वामी वामदेव मार्ग की जगह प्रशासन ने उसे फिर एक नये स्थान ‘आस्था मार्ग’ पर ऊंचा चबूतरा बनवा कर स्थापित किया। किंतु उसी रात वो मूर्ति वहां से चोरी हो गई। उसकी जगह उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने स्वामी वामदेव जी की छोटी सी पत्थर की मूर्ति रखवा कर उसका सितम्बर, 2021 में अनावरण कर दिया जिससे संत समाज बहुत आहत हुआ और इस कार्यक्रम का बहिष्कार किया। वैसे भी यह कार्यक्रम पितृपक्ष में किया गया था जब कोई शुभ कार्य नहीं किया जाता।
अगली सुबह हरिद्वार में हड़कम्प मच गया। संतों का प्रतिनिधिमण्डल हरिद्वार के जिलाधिकारी से मिला तो उन्होंने कोई मदद नहीं की। चूंकि इस आयोजन में विहिप के नेता दिनेश जी सक्रिय थे इसलिए संतों ने उनसे भी गुहार लगाई। आश्चर्य है कि प्रशासन की देखरेख में यह चोरी क्यों और किसने की, इसका आज तक पुलिस पता क्यों नहीं लगा पाई? आम अनुभव है कि यदि चोरी का समय और स्थान बता दिया जाए तो पुलिस चोर को कुछ घंटों में ही पकड़ लेती है। स्वामी वामदेव जी की मूर्ति कोई सुई नहीं है, जो एक ही रात में लापता हो जाए। वह भी तब जब वह सारे प्रशासन, मुख्यमंत्री, मीडिया और पुलिस की मौजूदगी में कंक्रीट से वहां दिन में ही स्थापित की गई थी। उल्लेखनीय है कि वहां आस्था मार्ग पर सीसीटीवी कैमरे भी लगे थे। फिर चोर आज तक क्यों नहीं पकड़े गए? क्या यह उत्तराखण्ड पुलिस की अकर्मण्यता का प्रमाण नहीं है ? यह लापरवाही हिन्दुओं के इतने श्रद्धेय संत के प्रति उपेक्षा और अपमान की भी परिचायक है। राम जन्मभूमि मुक्ति आन्दोलन में स्वामी वामदेव जी के ऐतिहासिक योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। वे ‘राम जन्मभूमि मुक्ति समिति’ के ‘मार्गदशर्क मंडल’ के अध्यक्ष थे। जब विहिप अध्यक्ष अशोक सिंघल के प्रयास से संत समाज, राजनैतिक कारणों से संकोच कर इस अभियान से जुड़ने को तैयार नहीं था तब अशोक सिंघल ने स्वामी वामदेव जी से निवेदन किया था कि वे इस अभियान को अपना आशीर्वाद प्रदान करें।

तब हिन्दू संस्कृति की रक्षार्थ स्वामी जी ने साधुओं की अपनी विशाल विरक्त मंडली के साथ पूरे भारत के कोने-कोने में जाकर सभी साधु-संतों को श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन से जोड़ने का ऐतिहासिक कार्य किया। जब अक्टूबर, 30,1990 को कार सेवा करने बड़ी श्रद्धा से देश के कोने-कोने से अयोध्या पहुंचे लाखों निहत्थे कारसेवकों पर पुलिस ने फायरिंग करके सैकड़ों को शहीद कर दिया था, तो उस भयानक रात अयोध्या की गलियों में मौत का सन्नाटा था। गलियों में जहां-तहां भक्तों के शव बिखरे पड़े थे। ऐसे आतंक के माहौल में आंदोलन के सभी नेता जहां-तहां छिपे थे पर एक देवता जो सारी रात अकेला उन लाशों के बीच लाठी लेकर घूमता रहा, वो थे बूढ़े, अशक्त और अस्वस्थ श्रद्धेय स्वामी वामदेव जी महाराज। ब्रहम्मुहूर्त में जब वे आश्रम में नहीं दिखे तो घबराहट में उनके साथ के साधुओं ने उनको खोजना शुरू किया तो स्वामी जी गली में लाठी लिए खड़े मिले। चौंककर सबने पूछा महाराज! आप यहां क्या कर रहे हैं? उनका उत्तर सुनकर निश्चय ही आपके नेत्र सजल हो जाएंगे। वे बोले, ‘भगवान! मैं रात भर इन शहीदों के शवों की रक्षा करता रहा, जिससे गली के कुत्ते इन भक्तों के पवित्र शवों को अपना ग्रास न बना सकें।’
तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव ने स्वामी वामदेव जी से तब कहा था, ‘आप विहिप का साथ छोड़ दीजिए, मैं कल ही आपको राम जन्मभूमि दे दूंगा।’ स्वामी जी ने कहा, ‘आप लोक सभा में आज यह घोषणा कीजिए, मैं कल ही विहिप का साथ छोड़ दूंगा।’ नरसिंह राव  ने एक बार उनसे कहा, ‘आप सुरक्षा गार्ड ले लें।’ स्वामी जी बोले, ‘गर्भ में जिसने परीक्षित की रक्षा की थी, वे ही मेरा रक्षक है।’ अयोध्या में ढांचा गिरने के बाद वे सीधे हरिद्वार आए, उनका कमरा तैयार नहीं था, तो वे मौनी बाबा के तख्त पर ही लेट गए। बाबा ने पूछा, ‘महाराज आपका काम अधूरा रह गया। मंदिर कब बनेगा?’ स्वामी वामदेव जी का उत्तर था, ‘मेरे तीन संकल्प थे-1.जन्मभूमि से पराधीनता का चिह्न मिटे, 2. भगवा वस्त्रधारी और ेतवस्त्रधारी संप्रदाय के भेद को भूलकर एक मंच पर आ जाएं, और 3. देश का हिंदू जाग जाए। राम कृपा से तीनों संकल्प पूरे हुए, अब मंदिर कब बनेगा ये रामलला जाने।’
रामलला ने आज मोदी जी व योगी जी के प्रयास से ये भी पूरा कर दिया। चूंकि स्वामी वामदेव जी का वृन्दावन के आनंदवन (श्री अखंडानंद आश्रम) से गहरा नाता था, वे भारत की धरोहर तो थे ही वृन्दावनवासियों को भी प्राणों से अधिक प्रिय थे, इसलिए वृन्दावनवासी, सभी संतगण,भागवताचार्य और गोस्वामीगण, इस समाचार को सुनकर अत्यंत व्यथित हैं। उन्होंने  भी उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से मांग की है कि स्वामी जी की उस मूर्ति को अविलम्ब खोजकर ‘आस्था मार्ग’, हरिद्वार में वहीं स्थापित किया जाए जहां से ये चोरी हुई। अब देखना यह होगा कि उत्तराखण्ड पुलिस कब तक स्वामी वामदेव जी की मूर्ति को खोज कर लाती है। अगर ऐसा नहीं होता तो इसका बहुत गलत सन्देश देश भर के संतगण और हिन्दू समाज में जाएगा।

विनीत नारायण


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