सामयिक : मंदिरों पर मस्जिद क्यों?

Last Updated 23 May 2022 12:06:11 AM IST

क्या भारत, पाकिस्तान या बांग्लादेश में एक भी मंदिर ऐसा है जो किसी मस्जिद को ध्वस्त करके बना हो?


सामयिक : मंदिरों पर मस्जिद क्यों?

अगर है तो यह बात मुस्लिम समाज सामने लाए, हिंदू उस मंदिर को वहां से हटाने को सहर्ष राजी हो जाएंगे जबकि देश में लगभग 5000 मस्जिदें ऐसी हैं, जो मंदिरों को तोड़कर उनके भग्नावेशों के उपर बनाई गई हैं।  
1990 में पूर्वाचल विश्वविद्यालय, जौनपुर में एक व्याख्यान देने मैं गया तो वहां के लोग मुझे शर्की वंश के नवाबों की बनवाई इमारतें दिखाने ले गए जिनमें से एक मशहूर इमारत का नाम था अटाला देवी की मस्जिद। नाम में ही विरोधाभास स्पष्ट था। देवी की मस्जिद कैसे हो सकती है? जो धर्मनिर्पेक्षतावादी यह कहते आए हैं कि इतिहास को भूल जाओ आगे की बात करो, उनसे मैंने अपने इसी साप्ताहिक कॉलम में पिछले दशकों में बार-बार यह कहा है कि यह कहना आसान है पर करना मुश्किल। हम ब्रजवासी हैं, और बचपन से श्रीकृष्ण जन्म स्थान पर ईदगाह की इमारत खड़ी देखकर हमें वो खौफनाक मंजर याद आ जाता है, जब किसी धर्माध आततायी आक्रामक मुसलमान ने वहां खड़े विशाल केशवदेव मंदिर को ध्वस्त करके यह इमारत तामीर की थी। हर बार हमारे सीने में यही जख्म दुबारा हरा हो जाता है। यही बात उन 5000 मस्जिदों पर भी लागू होती है, जो कभी ऐसे ही आक्रांताओं द्वारा हिंदू मंदिरों को तोड़कर बनाई गई थीं। फिर वो चाहे विदिशा, मध्य प्रदेश में मंदिरों को तोड़कर बनाई गई बिजमंडल मस्जिद हो, रुद्र महालय को तोड़कर बनाई पाटन गुजरात की मस्जिद हो, भोजशाला परिसर में सरस्वती मंदिर को तोड़कर बनाई गई मस्जिद हो, या बंगाल में आदिनाथ मंदिर को तोड़कर बनाई गई मदीना मस्जिद हो जिसे आज भारत की सबसे बड़ी मस्जिद माना जाता है। कहा तो यह भी जाता है कि दिल्ली की जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे भगवान राम की विशाल मूर्ति दबी पड़ी है, जिस पर चलकर नमाजी जाते हैं। मेरे पुराने पत्रकार मित्र व भाजपा के दो बार सांसद रहे बलबीर पुंज जब प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ लाहौर गए थे तो एक प्रसिद्ध होटल में खाना खाने गए जहां जगह-जगह हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियों के सिर पर गड्ढे बना कर उनमें मेहमानों द्वारा सिगरेट की राख झाड़ने का काम लिया जा रहा था। ऐसे अपमान को देखकर कौन अपने अतीत को भूल सकता है?

ज्ञानवापी मस्जिद के विवाद में मुसलमानों द्वारा हिंदुओं को ‘प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991’ की याद दिलाई जा रही है। यह एक्ट अयोध्या में बाबरी मस्जिद ढहाने के बाद बनाया गया था ताकि आगे किसी और मस्जिद को लेकर ऐसा विवाद खड़ा न हो। पर क्या इस कानून को बनाने से वो सब जख्म भर गए जो सदियों से हर शहर के हिंदू अपने सीने में छिपाए बैठे हैं? जिन शहरों में उनकी आस्था, संस्कृति, ज्ञान और भक्ति के केंद्रों को ध्वस्त करके उन पर ये मस्जिदें बना दी गई थीं? न भरे हैं, न कभी भरेंगे बल्कि हर दिन और ताजा होते रहे हैं। आप हमारी पिटाई करो और उसकी फोटो खींच कर रख लो। फिर रोज वो फोटो हमें दिखाओ और कहो कि भूल जाओ तुम्हारी कभी पिटाई हुई थी। तो क्या हम भूल पाएंगे?
धर्मनिरपेक्षवादी, साम्यवादी और मुसलमान, भाजपा व आरएसएस पर आरोप लगाते हैं कि ये दल और संगठन हिंदुओं की भावना भड़का कर राजनीतिक उल्लू सीधा करते आए हैं। उनका यह आरोप भी है कि भाजपा की मौजूदा सरकारें महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार पर से ध्यान बंटाने के लिए ऐसे मुद्दे उछलवाती रहती हैं। आरोप में दम है पर क्या इस आरोप को लगाकर वो पाप धुल जाता है, जो इन मस्जिदों को देखकर रोज आम हिंदू को याद आता रहा है, और वो लगातार अपमानित महसूस करता आया है? नहीं धुलता। इसीलिए आज हिंदू समाज योगी और मोदी के पीछे खड़ा हो गया है, इस उम्मीद में कि ये ऐसे मजबूत नेता हैं, जो सदियों पहले खोया उनका सम्मान वापस दिला रहे हैं पर इसमें भी एक पेच है। भाजपा के राज में भी जहां कहीं भी काशी विनाथ मंदिर परिसर की तरह आधुनिकीकरण के नाम पर हिंदू मंदिरों को तोड़ा गया है, उससे वहां के स्थानीय हिंदुओं को वही पीड़ा हुई है, जो सदियों पहले मुसलमानों के हमलों से होती थी। भाजपा शासन में मथुरा के गोवर्धन क्षेत्र में स्थित पौराणिक संकषर्ण कुंड व रुद्ध कुंड का अकारण विध्वंस 2018 में घोटालेबाजों के इशारे पर हुआ। उससे भी सभी ब्रजवासियों को भारी पीड़ा हुई है। वे नहीं समझ पा रहे हैं कि योगी राज में हिंदू धर्म और संस्कृति पर ऐसा वीभत्स हमला क्यों किया गया?  
यहां भाजपा और  संघ के लिए एक सलाह है। अगर वे मंदिर-मस्जिद और मुसलमान के मुद्दे में ही उलझे रहे और जनता की आर्थिक परेशानियों पर ध्यान नहीं दिया तो यहां भी श्रीलंका जैसे हालात कभी भी पैदा हो सकते हैं। खासकर तब जब मुफ्त का राशन मिलना बंद हो जाएगा। प्रेस का गला दबाकर, इन सवालों को उठाने वालों को अपनी ट्रोल आर्मी से देशद्रोही या वामपंथी कहलवा कर, उन पर एफआईआर दर्ज करवाकर आप कुछ समय के लिए तो लोगों को भ्रमित कर सकते हैं, पर लंबे समय तक नहीं। वो तो कोई विसनीय विकल्प अभी खड़ा नहीं है वरना इन भीषण समस्याओं के चलते अब तक विपक्ष हावी हो जाता। जैसा कई राज्यों में हुआ भी है। इसलिए मुगालते में न रहें। अगर भरे पेट वाले हिंदुओं के लिए मंदिर-मस्जिद का सवाल जरूरी है तो खाली पेट वाले करोड़ों हिंदुओं के लिए महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार का सवाल उससे भी ज्यादा जरूरी है।
इनका समाधान नहीं मिलने पर यही लोग आक्रोश में सड़कों पर भी उतरते हैं, और पुलिस की लाठी-गोली झेलकर भी डटे रहते हैं। इनके ही सैलाब से सरकारें क्षणों में अर्श से फर्श पर आ जाती हैं। इसलिए ईमानदारी से महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार पर भी बात होनी चाहिए। जहां तक भाजपा और आरएसएस की मंदिर राजनीति का प्रश्न है, तो इसका सरल हल है। हर वो मस्जिद जो कभी भी हिंदुओं के मंदिर तोड़कर बनाई गई थी उसे खुद-ब-खुद मुसलमान समाज आगे बढ़कर हिंदुओं को सौंप दें। न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी। वैसे भी खाड़ी के देशों की आर्थिक मदद से पिछले 30 वर्षो में देश भर में एक से बढ़कर एक भव्य मस्जिदें खड़ी हो चुकी हैं, जिनसे हिंदुओं को कोई गुरेज नहीं है। तो फिर हिंदुओं के इन प्राचीन पूजा स्थलों पर बनी मस्जिदों को लेकर इतना दुराग्रह क्यों?

विनीत नारायण


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