पोर्नोग्राफी : काया की सौदागरी का अभिशाप
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पोर्नोग्राफी : काया की सौदागरी का अभिशाप |
भारत ही नहीं विश्वभर में बाल यौन शोषण एक गंभीर अपराध है। धारणा है कि बाल यौन शोषण या दुर्व्यवहार में किसी बच्चे का यौनिक और शारीरिक शोषण होता है, जबकि ऐसा देखने को मिलता है कि भावनात्मक और मानसिक रूप से भी यह बच्चों के मन-मस्तिष्क पर दीर्घकालिक आघात पहुंचाता है। इसी बाल यौन शोषण का एक रूप है चाइल्ड पोर्नोग्राफी जो पिछले कुछ वर्षो में पूरी दुनिया के लिए गंभीर बन गई है।
चाइल्ड पोर्नोग्राफी जघन्य ही नहीं, अमानवीय कृत्य है। पिछले कुछ वर्षो से यह संगठित अपराध भारत में तेजी से पैर पसार रहा है। पोर्नोग्राफी पर इंटरपोल की हालिया रिपोर्ट में बताया गया है कि 2017 से 2020 के दौरान भारत में करीब 24 लाख बच्चों का ऑनलाइन यौन शोषण हुआ। सबसे चिंताजनक बात, इस रिपोर्ट के अनुसार, यह है कि ऐसे मामलों में शिकार बनी 80 फीसद लड़कियों की उम्र 14 साल से भी कम है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट बताती है कि भारत में हर घंटे 3 बच्चों के साथ रेप और पांच बच्चों का यौन उत्पीड़न होता है। इंटरनेट सेफ्टी वॉचडॉग की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि तीन से छह साल की उम्र के बच्चे स्व-जनित बाल यौन शोषण की बढ़ती प्रवृत्ति के नवीनतम शिकार बन रहे हैं। इनमें आधे से अधिक मामलों में बच्चे के भाई-बहन या दोस्त ही शामिल होते हैं। आईडब्ल्यूएफ, जो यूनाइटेड किंग्डम की एक हॉटलाइन संचालित करती है, ने कहा कि स्वयं उत्पन्न बाल यौन शोषण सामग्री वेबकैम या स्मार्टफोन का उपयोग करके बनाई जाती है, और फिर कई प्लेटफार्मो पर वितरित की जाती है। संस्था का कहना है कि ‘कुछ मामलों में बच्चों को खुद की एक यौन छवि या वीडियो बनाने और साझा करने के लिए तैयार किया जाता है, उन्हें धोखा दिया जाता है और फिर उनसे जबरन वसूली की जाती है। यह चित्र अक्सर बच्चों के बेडरूम या घर के किसी अन्य कमरे में बनाए जाते हैं, और कोई भी दुर्व्यवहार करने वाला शारीरिक रूप से मौजूद नहीं होता लेकिन इंटरनेट के माध्यम से वस्तुत: वो मौजूद रहता है।’
गौर हो कि त्वचा से त्वचा के सीधे संपर्क पर पिछले दिनों देश में लंबी बहस हुई थी जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि पॉक्सो के तहत मामला दर्ज करने के लिए त्वचा से त्वचा का संपर्क जरूरी नहीं। कहा था ‘यौन उत्पीड़न के अपराध का सबसे महत्त्वपूर्ण घटक यौन इरादा है, और बच्चे की त्वचा से त्वचा का संपर्क नहीं। किसी नियम को बनाने से वह नियम प्रभावी होना चाहिए, न कि नष्ट होना चाहिए। प्रावधान के उद्देश्य को नष्ट करने वाली उसकी कोई भी संकीर्ण व्याख्या स्वीकार्य नहीं हो सकती। कानून के मकसद को तब तक प्रभावी नहीं बनाया जा सकता, जब तक उसकी व्यापक व्याख्या नहीं हो।’
अप्रैल, 2020 में गैर-सरकारी संस्था इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन फंड (आईसीपीएफ) की एक रिपोर्ट ने पहले भी इस मुद्दे पर आगाह किया था। रिपोर्ट के अनुसार देश में जब कोरोना वायरस की वजह से संपूर्ण लॉकडाउन लगा था, तब चाइल्ड पॉर्नोग्राफी की मांग उच्चतम स्तर पर थी। रिपोर्ट के अनुसार, देश में लॉकडाउन के बाद चाइल्डी पॉर्नोग्राफी का उपभोग 95 फीसद तक बढ़ा था। तब ‘चाइल्ड पॉर्न’, ‘सेक्सी चाइल्ड’ और ‘टीन सेक्स वीडियोज’ जैसे कीवर्डस इंटरनेट पर अत्यधिक संख्या में सर्च किए गए थे। आईसीपीफ ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि दिसम्बर, 2019 के दौरान पब्लिक वेब पर 100 शहरों में चाइल्ड पोर्नोग्राफी सामग्री की कुल मांग औसतन 50 लाख प्रति माह थी, जिसमें लॉकडाउन में वृद्धि देखी गई।
नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित बाल अधिकार कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी का संगठन भी इस मुद्दे पर एक बड़ी मुहिम चलाए हुए है। कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रन्स फाउंडेशन (केएससीएफ) 100 संवेदनशील जिलों में यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के तहत चल रहे कम से कम 5,000 मामलों में बच्चों को तय समय में त्वरित न्याय दिलाने में प्रयासरत है। वहीं, केएससीएफ केरल पुलिस की बच्चों से जुड़े साइबर अपराधियों की धरपकड़ में मदद कर रहा है। आईसीपीएफ केरल पुलिस को सूचना प्रौध्योगिकी उपकरण और तकनीकी सहायता उपलब्ध करा रहा है। केरल पुलिस ने इस अभियान को ‘पी-हंट’ नाम दिया है। बेशक, वैश्विक और राष्ट्रीय स्तर पर बाल यौन शोषण और चाइल्ड पोर्नोग्राफी पर अंकुश लगाने के लिए कई कदम उठाए गए हैं। संभवत: वे नाकाफी हैं। हमें सुनिश्चित करना होगा कि कोई बच्चा शिक्षा, भोजन और आश्रय के अभाव में बाल यौन शोषण और पोर्नोग्राफी के जाल में न फंसे। ऐसे लोगों को चिह्नित किया जाए जो पोर्नोग्राफी और बच्चों की काया के सौदागर बन कर अपनी जेब गरम कर रहे हैं। उन्हें कठोर सजा दिलाई ताकि कोई भी इस रास्ते पर चलने से पहले कई बार सोचे।
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