ई जनगणना : क्रांतिकारी बदलाव से बदलेगी तस्वीर

Last Updated 24 May 2022 12:22:30 AM IST

गृहमंत्री अमित शाह ने कहा है कि अब देश में डिजिटल तरीके से ऑनलाइन जनगणना होगी, जिसके आंकड़े शत-प्रतिशत सही होंगे।


ई जनगणना : क्रांतिकारी बदलाव से बदलेगी तस्वीर

 डिजिटल तरीके से की गई जनगणना के आधार पर अगले 25 सालों की नीति निर्धारित करने में मदद मिलेगी। ई-बाजार,ई-आवेदन,ई-रेल व बस में आरक्षण,ई-भुगतान के बाद अब ई-जनगणना की भी देश में शुभ शुरु आत होने जा रही है। इसमें जन्म और मृत्यु दोनों डिजिटल जनगणना से जुड़े होंगे।
यह क्रांतिकारी बदलाव 2024 से प्रत्येक जन्म और मृत्यु की जानकारी ऑनलाइन जनगणना की सुविधा प्राप्त होने के साथ ही आरंभ हो जाएगी। जनगणना-2021 में नागरिकों को गणना में शामिल होने की एक बेहतर और अनूठी आनलाइन सुविधा दी गई है। भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने भारतीय नागरिकों को ऑनलाइन स्व-गणना का अधिकार देने के लिए नियमों में परिवर्तन किए हैं। जनगणना (संशोधन)-2022 के अनुसार परंपरागत तरीके से तो जनगणना घर-घर जाकर सरकारी कर्मचारी करेंगे ही, लेकिन अब नागरिक स्व-गणना के माध्यम से भी अनुसूची प्रारूप भर सकता है। याद रहे यह जनगणना 2021 में होनी थी, लेकिन कोरोना महामारी के चलते संभव नहीं हो पाई। अब इस आनलाइन गणना के साथ आगे बढ़ाने की पहल की जा रही है, जिससे भारतीय नागरिकों की गिनती जल्द से जल्द तो होगी ही सटीक भी होगी।
इसमें कोई दो राय नहीं कि आनलाइन प्रयोग अद्वितीय हैं, लेकिन देश की जनता के स्थायी और निंरतर गतिशील पंजीकरण के दृष्टिगत जरूरी था कि ग्राम पंचायत स्तर पर जनगणना की जवाबदेही सौंप दी जाए। गिनती के विकेर्द्ीकरण का यह नवाचार जहां 10 साला जनगणना की बोझिल परंपरा से मुक्त होगा, वहीं देश के पास प्रतिमाह प्रत्येक पंचायत स्तर से जीवन और मृत्यु की गणना के सटीक व विसनीय आंकड़े मिलते रहेंगे। यह तरकीब अपनाना इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि तेज भागती यांत्रिक व कंप्यूटरीकृत जिदंगी में सामाजिक, आर्थिक व शैक्षिक बदलाव के लिए सर्वमान्य जनसंख्या के आकार व संरचना का दस साल तक इंतजार नहीं किया जा सकता?

वैसे भी भारतीय समाज में जिस तेजी से लैंगिक, रोजगारमूलक और जीवन स्तर मे विषमता बढ़ रही है, उसकी बराबरी के प्रयासों के लिए भी जरूरी है कि हम जनगणना की परांपरा में आमूलचूल परिवर्तन लाएं? जनसंख्या के आकार, लिंग और उसकी आयु के अनुसार उसकी जटिल संरचना का कुछ ज्ञान न हो तो आमतौर पर अर्थव्यवस्था के विकास की कालांतर में प्रगति, आमदनी में वृ्द्धि, खाद्य पदाथरे व पेयजल की उपलब्धता, आवास, परिवहन, संचार, रोजगार के संसाधन, शिक्षा, स्वास्थ्य व सुरक्षा के पर्याप्त उपायों के इजाफे के पूर्वानुमान लगाना मुश्किल है। भारत की जनसंख्या 1901 में 23,83,96,327 थी। आजादी के साल 1947 में यह आबादी 34.2 करोड़ हो गई थी। 1947 से 1981 के बीच भारतीय आबादी की दर में ढाई गुना वृद्धि दर्ज की गई और आबादी 68.4 करोड़ हो गई थी। जनसंख्या वृद्धि दर का आकलन करने वाले विशेषज्ञों का मानना है कि भारत में प्रति वर्ष एक करोड़ 60 लाख आबादी बढ़ जाती हैं। इस दर के अनुसार हमें अपने देश की करीब एक अरब 30 करोड़ लोगों की एक निश्चित जनसंख्या प्रारूप में गिनती करनी है, ताकि व्यक्तियों और संसाधनों के समतुल्य आर्थिक व रोजगारमूलक विकास का खाका खींचा जा सके। जनसंख्या का यह आंकड़ा अज्ञात भविष्य के विकास की कसौटी पर खरा उतरे उसका मूलाधार वैज्ञानिक तरीके से की गई सटीक जनगणना ही है। हरेक दस साल में की जाने वाली जनता-जनार्दन की गिनती में करीब 20 लाख कर्मचारी जुटते हैं। छह लाख ग्रामों, पांच हजार कस्बों, सैकड़ों नगरों और दर्जनों महानगरों के रहवासियों के द्वार-द्वार दस्तक देकर जनगणना का कार्य करना कर्मचारियों के लिए जटिल होता है। यह काम तब और बोझिल हो जाता है जब किसी कर्मचारी-दल को उसके स्थानीय दैनंदिन कार्य से दूर कर उसे दूर गांव में भेज दिया जाता है। ऐसी हालात में गिनती की जल्दबाजी में वे मानव समूह छूट जाते हैं, जो आजीविका के लिए मूल निवास स्थल से पलायन कर जाते हैं। इसलिए जरूरी था कि जनगणना की प्रक्रिया के वर्तमान स्वरूप को बदलकर एक ऐसे स्वरूप में तब्दील किया जाए, जिससे इसकी गिनती में निरंतरता बनी रहे।
इसके लिए न भारी भरकम संस्थागत ढांचे की जरूरत है और न ही सरकारी अमले की। केवल गिनती की केंद्रीयकृत जटिल पद्धति को विकेंद्रीकृत करके सरल करना है। गिनती की यह तरकीब ऊपर से शुरू न होकर नीचे से शुरू होगी। देश की सबसे छोटी राजनीतिक व प्रशासनिक इकाई ग्राम पंचायत है। जिसका त्रिस्तरीय ढांचा विकास खंड व जिला स्तर तक है। हमें करना सिर्फ  इतना है कि तीन प्रतियों में एक जनसंख्या पंजी  पंचायत कार्यालय में रखनी है। इसी पंजी की प्रतिलिपि कंप्यूटर में फीड जनसंख्या प्रारूप पर भी दर्ज हो। इस गिनती में जितनी पारदर्शिता और शुद्धता रहेगी उतनी किसी अन्य पद्धति से संभव ही नहीं है। बहरहाल ई-जनगणना कराने का निर्णय एक दूरदर्शी पहल है।

प्रमोद भार्गव


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