सामयिक : प्रत्यक्षं किम प्रमाणम्

Last Updated 20 May 2022 12:09:53 AM IST

कोर्ट के आदेश पर काशी के ज्ञानवापी परिसर का एडवोकेट कमिश्नर द्वारा सर्वेक्षण कराए जाने के दौरान सामने आए साक्ष्यों ने एक नई बहस को जन्म दे दिया है।


सामयिक : प्रत्यक्षं किम प्रमाणम्

इन साक्ष्यों ने एक बार फिर यह तथ्य सामने ला दिया है कि अतीत में हिंदुओं के आस्था केंद्रो पर कितने और किस-किस प्रकार के अत्याचार हुए। ज्ञानवापी परिसर के एक जलकुंड में विशालकाय शिवलिंग पाए जाने का संकेत मिलने पर जहां हिंदू समाज खुश है, वहीं यह जानकर क्षुब्ध भी है कि उफ! अपने जिन आराध्य को वह श्रद्धापूर्वक गंगाजल और बेलपत्र चढ़ाकर पूजा-अर्चना करता रहा, उन्हीं आराध्य पर एक मजहब विशेष के लोग अपना हाथ-पांव धोते रहे। अपमान की इससे बड़ी पराकाष्ठा और क्या हो सकती है!
मुगलों के शासनकाल में ऐसा अपमान एक नहीं, हमारे सैकड़ों आस्था केंद्रों के साथ होता रहा है। 11वीं सदी के बाद से भारत पर शुरू हुए मुगलों के आक्रमण के दौरान हमारे तमाम आस्था केंद्रों का विध्वंस कर उनके अवशेषों को जान बूझकर मस्जिदों की सीढ़ियों पर लगाया जाता रहा, ताकि सनातनधर्मी उसे देखें और लगातार अपमानित महसूस करते रहें। ऐसा सोमनाथ, अयोध्या, मथुरा, काशी सभी जगह हुआ। काशी की ही बात करें, तो कुतुबुद्दीन ऐबक ने अपने आक्रमण के दौरान काशी में सैकड़ों मंदिर तोड़े और उनकी बेशकीमती संपत्तियां ऊंटों पर लदवाकर मोहम्मद गौरी के पास भिजवा दी थीं। मुगलकाल में तो जो हुआ, सो हुआ। देश आजाद होने के बाद भी हम नहीं चेते।
इन्हीं मुगल शासकों के नाम पर अपनी राजधानी दिल्ली की तमाम सड़कों-चौराहों का नामकरण कर उन आक्रांताओं का सम्मान करते रहे और हमारे आस्था केंद्रों के साथ उनके द्वारा अतीत में किए गए र्दुव्‍यवहार पर पर्दा डालने का काम करते रहे। संयोग से अब वही पर्दा उठने लगा है। बाकायदा कोर्ट के आदेश से विभिन्न स्थानों पर ढके-छुपे तथ्य सामने आने लगे, तो गंगा-जमुनी संस्कृति की दुहाई देने वाला समाज ही एक बार इसके विरोध में उठ खड़ा होता दिखाई दे रहा है। एआईएमआईएम के राष्ट्रीय अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी का कहना है कि ज्ञानवापी मस्जिद थी और कयामत तक रहेगी। इसी प्रकार इत्तेहाद ए मिल्लत काउंसिल (आईएमसी) के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना तौकीर ने भी बयान दिया है कि अयोध्या मामले में भी झूठे तर्क दिए गए थे। उस समय सब्र कर लिया, अब नहीं करेंगे। अक्सर अपने भड़काऊ बयानों से चर्चा में रहनेवाले मौलाना तौकीर के अनुसार कुछ लोग ऐसे मामले उठाकर हिंदुस्तान का एक और बंटवारा करना चाहते हैं। केंद्र सरकार हर मस्जिद को मंदिर बनाना चाहती है। बेईमानी करना चाहती है, लेकिन मुस्लिम समाज में सभी लोग असदुद्दीन ओवैसी और मौलाना तौकीर जैसी सोच वाले नहीं हैं। ऐसे ज्यादातर लोगों को पता है कि मुगलकाल में सनातनधर्मिंयों के साथ कितना अत्याचार हुआ है, उनके कितने आस्था केंद्रों को धूल-धूसरित कर दिया गया है, कितनों का धर्मातरण किया गया है (वास्तव में उनमें भी बड़ी संख्या धर्मांतरित मुस्लिमों की ही है)।

ऐसी सुलझी सोच वाले मुस्लिम समाज का मानना है कि सनातनधर्मिंयों के काशी, मथुरा जैसे उन प्रमुख आस्था केंद्रों को सम्मानपूर्वक उन्हें लौटा देना चाहिए। इससे हिंदू-मुस्लिम के बीच भाईचारा मजबूत होगा और दोनों समाज एक-दूसरे के साथ शांति से रह सकेंगे। ज्ञानवापी में सर्वेक्षण के दौरान शिवलिंग पाए जाने का संकेत मिलने के बाद कुछ मुस्लिम बुद्धिजीवियों की तरफ से दिल बड़ा कर ज्ञानवापी को हिंदुओं को सौंप देने की बात होने लगी है। इस दिशा में सौहार्दपूर्ण तरीके से आगे बढ़ने के लिए उनकी ओर से एक पैनल बनाकर विचार करने की शुरुआत भी हो गई है। इस पैनल में हज कमेटी आफ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष तनवीर अहमद, नागपुर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो.एस.एन. पठान और हैदराबाद स्थित मौलाना आजाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय के पूर्व कुलाधिपति फिरोज बख्त अहमद शामिल हैं। इन सभी का मानना है कि जब तक ज्ञानवापी का मामला कोर्ट के विचाराधीन है, मुस्लिम पक्ष को विवादित बयानों से परहेज करना चाहिए। जहर उगलने और आग लगाने वाले राजनीतिक दलों और नेताओं से किनारा करना चाहिए। क्योंकि ऐसे दल और नेता अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए मुस्लिमों का उपयोग वोटबैंक के रूप में करते आए हैं (सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने एक दिन पहले ही आजमगढ़ में कहा है कि ज्ञानवापी का सर्वेक्षण नहीं होना चाहिए)।
प्रोफेसर एस.एन. पठान श्रीराम जन्मभूमि प्रकरण की याद करते हुए कहते हैं कि यदि उस समय मुस्लिम समाज यह कहते हुए रामजन्मभूमि हिंदू भाइयों को सौंप देता कि जैसे हमारे लिए मक्का-मदीना है, वैसे ही हिंदुओं के लिए श्रीराम का जन्मस्थान, तो इससे अच्छा संदेश जाता। जरूरत है कि मुस्लिम समाज में ऐसे सुलझे हुए मुस्लिम बुद्धिजीवियों को सुने और समझे जाने की। क्योंकि यह तथ्य किसी से छुपा नहीं है कि भारत पर मुगल आक्रांताओं के आक्रमण के दौरान बड़ी संख्या में मंदिरों को तोड़ा गया और उनके स्थान पर मस्जिदें बनाई गई। तोड़े गए मंदिरों में साधारण मंदिरों के साथ-साथ अयोध्या, मथुरा, काशी जैसे हिंदुओं के प्रमुख आस्था केंद्र भी शामिल रहे हैं। श्रीरामजन्मभूमि आंदोलन के दौर से ही हिंदू समाज इन तीन आस्था केंद्रों को ही उसे सम्मानपूर्वक लौटाए जाने की बात करता रहा है। ताकि बाकी विवादित स्थलों को भुलाकर शांतिपूर्वक आगे बढ़ा जा सके।
ज्ञानवापी प्रकरण के बाद इस पर विचार करने का एक और सुनहरा मौका मुस्लिम समाज के हाथ लगा है। यदि यह मौका गंवाया गया तो बहुसंख्यक हिंदू समाज में उबाल और बढ़ेगा। तब ऐसे न जाने कितने स्थलों के इतिहास उधेड़े जा सकते हैं, जहां साक्ष्य चीख-चीख कर उनके हिंदू आस्था केंद्र होने का प्रमाण दे रहे हैं। इनमें ताजमहल और कुतुबमीनार जैसे दर्शनीय स्थल भी शामिल हैं। जरूरत है साक्ष्यों का सम्मान करते हुए सौहार्दपूर्ण तरीके से आगे बढ़ने की, ना कि अखिलेश यादव, असदुद्दीन ओवैसी और मौलाना तौकीर जैसे नेताओं के भड़काऊ बयानों पर ध्यान देने की क्योंकि हमें साथ रहते हुए भारत को आगे ले जाना है।

आचार्य पवन त्रिपाठी


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