निगम एकीकरण : आर्थिक रूप से मजबूती ज्यादा जरूरी

Last Updated 08 Apr 2022 12:08:27 AM IST

वर्षो से दिल्ली में रह रहे एक अध्यापक ने सवाल किया कि दिल्ली के एक जन प्रतिनिधि के बारे में बताएं, जो मेरी कालोनी की समस्याओं का समाधान करा पाए।


निगम एकीकरण : आर्थिक रूप से मजबूती ज्यादा जरूरी

लोक सभा सांसद, विधायक या निगम पाषर्द में से किसी के लिए यह संभव है, लेकिन अगर वैधानिक तरीके से कहा जाए तो यह किसी के लिए संभव नहीं है। केंद्र सरकार के नियंत्रण वाली दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) वैधानिक कालोनियां बनाकर उसे एक निश्चित समय के बाद दिल्ली नगर निगम को सौंप देती है। निगम कालोनी की सड़कें, साफ-सफाई आदि का काम तो करा सकती है, लेकिन बिजली (दिल्ली विद्युत बोर्ड) और पानी (दिल्ली जल बोर्ड) दिल्ली सरकार के अधीन है। मुख्य सड़कें लोक निर्माण विभाग (पीडब्लूडी) दिल्ली सरकार के अधीन है और कानून-व्यवस्था केंद्र के अधीन है।

राजधानी दिल्ली का वीआईपी इलाका; नई दिल्ली नगर पालिका परिषद (एनडीएमसी) और दिल्ली छावनी इलाका सीधे केंद्र सरकार के अधीन है। इनके अलावा भी अनेक संस्थाएं स्वशासी हैं और उनपर दिल्ली की किसी सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं है। बावजूद इसके अलग-अलग समय में इन संस्थाओं में निर्वाचित प्रतिनिधियों की भागीदारी कराने के लिए जन प्रतिनिधियों को शामिल किए जाने का प्रावधान है। दूसरे, दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश होने के चलते केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के नाते उप राज्यपाल का पद बनाया गया है।

बहुशासन प्रणाली में अक्सर अधिकारों के लिए टकराव होते रहने पर कुछ साल पहले दोबारा दिल्ली के उप राज्यपाल बने तेजेन्द्र खन्ना ने सालाना प्रेस कांफ्रेंस में दिल्ली के मुख्य सचिव, डीडीए उपाध्यक्ष, एनडीएमसी अध्यक्ष, नगर निगम आयुक्त, पुलिस आयुक्त की मौजूदगी को बताते हुए कहा कि दिल्ली में कहां है बहुशासन प्रणाली, सभी तो उनके सामने मौजूद हैं। यह सही है कि दिल्ली में आजादी के बाद शासन व्यवस्था पर अब तक प्रयोग ही चल रहा है। आजादी के बाद पूरी तरह से केंद्र सरकार के अधीन आयुक्त प्रणाली लागू किया गया। 1952 में कम अधिकारों वाली विधानसभा बनी। दिल्ली का विकास होने के साथ दिल्ली की प्रशासनिक व्यवस्था बदलती गई।

1957 में दिल्ली नगर निगम बना और निगम के पास ही दिल्ली से जुड़े सर्वाधिक विभाग थे। दिल्ली में नगर निगम 1957 में संसद ने विधेयक लाकर बनाया गया था। तब से अब तक उसमें कई संशोधन हुए, लेकिन चुनाव दूसरी बार ही टाले गए हैं।1983 में पुराने विधान के हिसाब से चुनाव हुए थे। तब कांग्रेस चुनाव जीती थी। उसे 1990 तक विस्तार देकर भंग किया गया। स्थानीय निकायों और ग्राम पंचायतों के लिए संसद में हुए 73 वे और 74 वे संशोधनों के बाद नए विधान से 1997 में चुनाव हुए। उस चुनाव में भाजपा को जीत मिली। नये विधेयक में जो संशोधन हुए हैं उसके हिसाब से अब दिल्ली में तीन निगमों के स्थान पर एक ही निगम रहेगा, लेकिन निगम की सीटें 272 से कम करके अधिकतम 250 होगी। नये संशोधन में निगम का कार्यकाल समाप्त होने पर केंद्र सरकार एक प्रशासक नियुक्त करेगा।

इतना ही नहीं इस संशोधन में सरकार का मतलब केंद्र सरकार है, पहले की तरह राज्य सरकार नहीं। विधेयक में निगम के अधिकार बढ़ाने या उसके वित्तीय संसाधन बढ़ाने का कोई प्रस्ताव नहीं है। दिल्ली सरकार से निगमों के विवाद का असली कारण तो पैसे की देनदारी ही रही है। सभी को पता है कि नगर निगम के घाटे का कारण केवल भ्रष्टाचार नहीं है, निगम की आमदनी का मुख्य श्रोत को गृह (संपत्ति) कर है। 70 फीसद से ज्यादा दिल्ली अनधिकृत बसी है।

न तो अनधिकृत कालोनियों से गृह कर लिया जाता है और न गांवों से। राजनीतिक कारणों से करोड़ों की संपत्ति वालों से कुछ सौ हजार रु पये कर नहीं लिया जा सकता है। इसमें राजनीति बाधक इसलिए भी हैं कि इस तरह के अवैध निर्माण में अन्य सरकारी महकमों के साथ-साथ उनकी ही भागीदारी रहती है। गृह कर के लिए यूनिट एरिया प्रणाली लागू होने के बाद केवल दक्षिणी दिल्ली नगर निगम की आर्थिक हालत ठीक हुई क्योंकि वहां वैध कालोनियों और संपत्तियों की संख्या ज्यादा है। दूसरे उस इलाके के संपत्ति कर की दर ज्यादा है।
उत्तरी दिल्ली और पूर्वी दिल्ली नगर निगम तंगहाली में रहे।

निगम की अपनी आमदनी बढ़ती नहीं इसलिए दिल्ली की साफ-सफाई आदि के लिए दिल्ली के वित्त आयोग की सिफारिशों के आधार पर दिल्ली सरकार से निगमों को  मिलने वाले पैसे पर विवाद होता रहता है। दिल्ली सरकार कहती है कि उसे केंद्र सरकार उसके हिस्से का पूरा पैसा नहीं देती और निगमों की शिकायत रहती है कि दिल्ली सरकार उसके हिस्से का पूरा पैसा नहीं देती। केवल निगम को एक से तीन करना या तीन से एक करना या उसको दिल्ली सरकार के बजाए केंद्र सरकार के अधीन बनाना समाधान नहीं है। उसे आर्थिक रूप से अपने पैरों पर खड़ा करना जरूरी है और उससे जरूरी है दिल्ली की बहुशासन प्रणाली को खत्म करके नई शासन प्रणाली बनाना, जिससे आम जन का ज्यादा हित हो।



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