कानून-व्यवस्था : नये तरीके अपनाने होंगे
पिछले दिनों गुजरात के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी गौतम परमार ने जब कुछ पुलिस थानों में एक आम आदमी बन कर दौरे किए तो इन्हें वही अनुभव हुआ जो हर आम आदमी को थाने में होता है।
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नतीजन उसके बाद कई पुलिस वालों पर गाज गिरी। ऐसा नहीं है कि गुजरात के ये पुलिस अफसर ऐसे पहले अधिकारी हैं, जिन्होंने अचानक थानों के दौरे किए और दोषियों को सजा दी हो। ऐसा हर शहर में प्राय: होता आया है जब कोई नया तैनात हुआ अफसर अपनी धाक जमाने को ये करता है। ये बात दूसरी है कि इसका असर चंद दिनों में काफूर हो जाता है। फिर भी यह एक अच्छा प्रयास है जो काफी असरदार सिद्ध हो सकता है अगर उसे बार बार दोहराया जाए।
वैसे आज के तकनीकी युग में पुलिस फोर्स को अब नये तरीकों से कानून-व्यवस्था बनाए रखने की पहल करनी भी पड़ेगी। मिसाल के तौर पर दिल्ली जैसे महानगरों में ट्रैफिक को नियंत्रित रखने के लिए एक हेल्पलाइन नम्बर जारी हुआ है। इस पर दिल्ली वासी प्रमुख मागरे पर ट्रैफिक समस्या की जानकारी ट्रैफिक पुलिस को देते हैं और ज्यादातर शिकायतों पर कार्रवाई भी होती है।
ट्रैफिक पुलिस द्वारा यह एक अच्छी पहल है। जो कई साल पहले दिल्ली में लागू की गई। अब ट्रैफिक विभाग और नागरिक मिल-जुल कर ट्रैफिक की समस्याओं का निदान करने का प्रयास करते हैं। 2010 में जब दिल्ली ट्रैफिक पुलिस ने अपने फेसबुक पेज पर जनता से ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन की तस्वीरें मांगना शुरू किया तो न सिर्फलोगों को ट्रैफिक नियम पालन करने की आदत पड़नी शुरू हुई बल्कि ट्रैफिक विभाग के खजाने में चालान की रकम भी बढ़ी। धीरे-धीरे दिल्ली की तरह अन्य शहरों की ट्रैफिक पुलिस भी व्हाट्सऐप के जरिए शिकायतें लेने लगी, लेकिन यहां भी देखा गया कि शुरू-शुरू में तो ट्रैफिक पुलिस काफी मुस्तैदी से कार्रवाई करती नजर आई, लेकिन जैसे-जैसे समय गुजरा पुलिसकर्मिंयों द्वारा यहां भी ढिलाई होने लगी।
मिसाल के तौर पर कुछ दिन पहले मैंने दिल्ली के एक प्रमुख मार्ग पर लग रहे ट्रैफिक जाम के बारे में जब वॉट्स्ऐप पर शिकायत डाली तो ट्रैफिक पुलिस से जवाब आया कि ‘कृपया संबंधित उल्लंघन के समर्थन में विडीयो भी भेजें।’ जब तक ट्रैफिक वालों का जवाब आया मैं आगे निकल चुका था। परंतु मैंने गूगल मैप की मदद से स्क्रीनशॉट जरूर भेज दिया और साथ ही ट्रैफिक विभाग को तकनीक की मदद लेने की सलाह भी दी। काफी देर तक जब ट्रैफिक विभाग से कोई जवाब नहीं आया तो ट्रैफिक पुलिस और मेरे बीच हुए इस वार्तालाप का स्क्रीनशॉट मैंने ट्रैफिक पुलिस के ट्विटर हैंडल पर डाल दिया। उसके कुछ ही क्षणों में मुझे ट्रैफिक पुलिस ने संदेश भेजा कि इलाके के अधिकारी को कार्रवाई करने के लिए सूचित किया गया है। सोचने वाली बात यह है कि क्या मेरे द्वारा भेजी गई शिकायत की पुष्टि ट्रैफिक कंट्रोल रूम में बैठे अधिकारी गूगल मैप पर नहीं कर सकते थे? ट्रैफिक कंट्रोल में बैठे अधिकारी गूगल मैप जैसी तकनीकों की मदद से, जिन-जिन इलाकों में जाम लगता है, वहां-वहां के क्षेत्रीय अधिकारियों को ट्रैफिक नियंत्रण करने के लिए सूचित भी कर सकते हैं। आए दिन यह भी देखा जाता है कि पुलिस की चेकिंग कुछ चुनिंदा दिनों में बढ़ जाती है। उन दिनों जनता को भी पता होता है कि पुलिस द्वारा चैकिंग मुस्तैदी पर होगी इसलिए जनता भी नियम और कानून का पालन करती है।
यदि ऐसा रवैया पुलिस लगातार अपनाती रहे तो जनता और भी सजग हो जाएगी और अपराध पर भी लगाम कसेगी। आमतौर पर यह भी देखा जाता है कि दिल्ली जैसे बड़े शहरों में कई रेस्टोरेंट वाले बड़ा-बड़ा बोर्ड लगाते हैं कि ‘यहां शराब पीना माना है’। ऐसे तमाम रेस्टोरेंटों के बाहर गाड़ियों की लंबी कतार लगी रहती है जिन गाड़ियों में देर रात तक ‘कारो-बार’ चलता रहता है। ऐसा बिना इलाके की पुलिस की मिलीभगत के बिना होना असम्भव है। अगर गुजरात में वहां के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी सादी वर्दी में थानों में जा कर छापे मारी कर सकते हैं तो सड़कों पर खुलेआम शराब पीने पर शिंकजा क्यों नहीं कसा जा सकता? ऐसा करने के लिए किसी वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को देर रात तक जागने की जरूरत नहीं। वे तो केवल तकनीक का सहारा ले कर सीसीटीवी की मदद से निगरानी रख सकते हैं। परंतु जिस थाने से सीसीटीवी की फीड नहीं प्राप्त हो, वहां छापेमारी करने से सभी थानों के कैमरे सही चलेंगे। इस तरह तकनीक के इस युग में नये-नये कदम उठा कर कानून-व्यवस्था को बनाए रखने के लिए पुलिस को इसी तरह के प्रभावी कदम उठाने की जरूरत है।
(लेखक दिल्ली स्थित कालचक्र समाचार ब्यूरो के प्रबंधकीय संपादक हैं)
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