मुद्दा : डिजिटलाइजेशन से सहकारिता का विकास
विगत दो दशक सर्वाधिक बदलाव के दौर रहे हैं। एक ओर वैश्विकरण एवं तकनीकी बदलाव ने विकास के प्रवाह को गति प्रदान की है तो दूसरी ओर जो लोग इस बदलाव के साथ चलने में सक्षम नहीं हैं, उनके लिए जीवन कई मायनों में कठिन हो गया है।
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डिजिटलाइजेशन ने सिनेमा से लेकर शिक्षा तक, रोजगार से लेकर व्यापार तक, नीति निर्माण से लेकर रक्षा साधनों तक और राजनीति से लेकर समाज के निचले हिस्से तक सभी को प्रभावित किया है। विकास और व्यापार के प्रत्येक प्रारूप में स्थायित्व का भविष्य डिजिटलाइजेशन के प्रति उसकी अनुकूलता पर निर्भर करेगा।
हम सभी जानते हैं कि भारत दुनिया का सबसे युवा और दूसरी बड़ी आबादी का देश है। नीति आयोग के अनुसार तीव्र शहरीकरण की प्रकिया के बावजूद 130 करोड़ भारतवासियों में अभी भी लगभग 65 प्रतिशत लोग भारत के गांवों में रहते हैं। कोरोना महामारी में लॉकडाउन के कारण बड़े पैमाने पर शहरी मजदूर अपने गांवों की ओर लौटे जिससे एक बार फिर यह विचार करना आवश्यक हो गया है कि क्या शहर केंद्रित विकास से इतर कुछ किया जा सकता है? तो इसका उत्तर है, हां। कृषि उत्पादन प्रबंधन, खाद्य सुरक्षा एवं खाद्य आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन तथा ऊर्जा सुरक्षा से संबंधित क्षेत्रों में सहकारिता आधारित मॉडल ही सर्वाधिक अनुकूल, व्यावहारिक एवं व्यवहार्य मॉडल है। सहकारिता या सामूहिकता ही वो मॉडल है, जो ग्रामीण भारत का न केवल समग्र विकास कर सकता है बल्कि शहरों पर जनसंख्या के अनावश्यक दबाव को कम करने के साथ शहरी आवश्यकताओं की पूर्ति भी करने में सक्षम है। सहकारिता के वर्तमान स्वरूप और स्थितियों में कुछ क्षेत्रों में यह संभव भी हुआ है। अब दुनिया चौथी औद्योगिक क्रांति के दौर से गुजर रही है और बड़ी संख्या में मानव श्रम का स्थान मशीनें ले रही हैं और हाट बाजार भी अब डिजिटल स्क्रीन पर लगने लगे हैं।
इस मशीनीकरण और ऑटोमेशन से भारत जैसे बड़ी आबादी के देश को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। हाल ही में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम द्वारा प्रकाशित फ्यूचर ऑफ जॉब्स, 2020 रिपोर्ट में कहा गया : ‘43 प्रतिशत व्यवसायों के सर्वेक्षण से संकेत मिलता है कि वे तकनीक एकीकरण के चलते अपने कार्यबल में कमी करने की तैयारी में हैं, 41 प्रतिशत की विशिष्ट कार्यों के लिए अपने यहां ठेकेदारों का उपयोग बढ़ाने की योजना है और सिर्फ 34 प्रतिशत की तकनीक एकीकरण के चलते अपने कार्यबलों की संख्या में विस्तार की योजना है।’ जैसा कि उक्त रिपोर्ट का अनुमान है, कार्यों के इंसान से मशीनों की ओर हस्तांतरित होने के परिणामस्वरूप 2025 तक 8.5 करोड़ लोगों को रोजगार बनाए रखने के लिए अपने कौशल का उन्नयन करने की आवश्यकता होगी। दूसरी तरफ, 9.7 करोड़ नई नौकरियां सिर्फ सही कौशल वाले लोगों और मशीनों के लिए ही उपयुक्त होंगी। इस प्रकार, नई व्यवस्था में आर्थिक संकट की तुलना में नौकरियों से ज्यादा लोगों का विस्थापन देखने को मिलेगा। सहकारिता, ऐसे लोगों के कौशल उन्नयन के साथ उनके पुनर्सयोजन का माध्यम बन सकती है, लेकिन इसके लिए सहकारिता को स्वयं को ई-कॉमर्स सहित सभी तरह के बदलाव के अनुकूल करना होगा। प्रश्न यह है कि ऐसी कौन सी व्यवस्था या तरीका अपनाया जाए, जिससे इस बड़े बदलाव के दौर में भारतीय सहकारिता के साथ कृषि, ग्रामीण भारत को इस तकनीकी बदलाव के अनुपूरक बनाया जा सके ताकि सहकारिता ग्रामीण भारत के समग्र विकास का आधार बन सके। इसके लिए सहकारी समितियों और संगठनो को नये कानून और नियमों के साथ डिजिटलाइजेशन की राह पकड़नी होगी। हम सभी जानते हैं कि देश भर में सहकारी समितियों की एक बड़ी संख्या है, जिनका अभी तक डिजिटलाइजेशन नहीं हुआ है। अगर हमें भारत के विकास में इनकी बड़ी भूमिका सुनिश्चित करनी है तो बदलाव करना ही होगा। साथ ही अगर सहकारी समितियों को एकीकृत करके शहर की आवश्यकताओं की पूर्ति की ओर केंद्रित कर दिया जाए तो कई समस्याओं का समाधान हो जाएगा। विश्व पटल पर डिजिटल दुनिया के बढ़ते फैलाव को देखते हुए अब डिजिटल दुनिया से जुड़ने का समय आ गया है। पैसा सिर्फ सक्षम कारक है, ज्ञान प्राथमिकता होनी चाहिए और ज्ञान, बाजार, प्रौद्योगिकी और आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन में डिजिटल तकनीक के उपयोग के अंतर को दूर करने के लिए काम किया जाना चाहिए।
इस प्रक्रिया में शैक्षणिक पाठ्यक्रमों के साथ डिजिटल ज्ञान के विस्तार के लिए एक वृहद जागरूकता अभियान चलाए जाने की जरूरत है। सहकारिता क्षेत्र को डिजिटली सक्षम बनाने में निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी काफी अहम है। इसके लिए केवल सरकार पर निर्भर नहीं रहा जा सकता। निजी क्षेत्र डिजिटल क्षेत्र में नवाचार के लिए शोध में पर्याप्त खर्च करते हैं। ई-कॉमर्स के क्षेत्र में काम कर रही कंपनियां अपने प्लेटफार्म पर छोटे उद्यमियों को डिजिटली सक्षम बनाने में खासा योगदान कर सकती हैं। सहकारिता एवं निजी क्षेत्र के बीच गठजोड़ से दोनों क्षेत्रों में कारोबार की लागत कम होगी एवं व्यापार का विकास होगा। देश में अब सहकारिता क्षेत्र को इस नवाचार से एकाकार करके स्वयं को बदलाव के लिए तैयार करना चाहिए।
(लेखक सहकार भारती के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं)
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