हिजाब प्रकरण : उभरती प्रवृत्ति खतरनाक
कर्नाटक से आरंभ हिजाब विवाद कई मायनों में डर पैदा करता है। हर व्यक्ति को, वह स्त्री हो या पुरु ष अपना पहनावा चुनने का अधिकार है।
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हालांकि मानव सभ्यता का तकाजा यही है कि हम वैसे ही वस्त्र पहन कर लोगों के बीच जाएं जिनसे किसी को अपनी आंखें नीची न करनी पड़े। कहा जा सकता है कि अगर कुछ लड़कियों ने उडुपी के एक कॉलेज में हिजाब पहनकर क्लास रूम में आना शुरू कर ही दिया तो उसे इतना बड़ा वितंडा बनाना गलत है। तर्क दिया जा सकता है कि अगर तूल न दिया जाता तो हिजाब पहनने की जिद अपने आप कुछ दिनों में समाप्त हो जाती।
इन सारे तकरे से आपकी सहमति असहमति हो सकती है, किंतु जरा स्थिति देखिए। कर्नाटक में सभी स्कूल-कॉलेजों के 200 मीटर के दायरे में भीड़ इकट्ठी होने और प्रदर्शन करने पर रोक लगा देनी पड़ी। प्रशासन ने शिक्षण संस्थानों के नजदीक 22 फरवरी तक धारा 144 लगा दी। दूसरी ओर कर्नाटक उच्च न्यायालय को इसके लिए बड़ी पीठ का गठन करना पड़ा। जो लोग इसे सामान्य घटना या मुद्दा बता रहे थे क्या वे कल्पना कर सकते थे कि मामला उच्च न्यायालय के बड़ी पीठ तक चला जाएगा? विदेशों से इस पर बयान आने लगा है। पाकिस्तान के सूचना और प्रसारण मंत्री ने हिजाब पहनने वाली छात्राओं का समर्थन कर भारत की आलोचना कर दी। नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मलाला यूसुफजई ने कह दिया है कि हिजाब में लड़कियों को स्कूल जाने से रोकना भयावह है।
उन्होंने तो यह भी कहा है कि भारतीय मुसलमानों को हाशिए पर जाने से रोका जाए और उन्हें पढ़ाई से वंचित न रखा जाए। यह सब क्या है? सोशल मीडिया पर ऐसे बयानों की भरमार है, जिसमें लड़कियों को हिजाब पहनकर कक्षा में आने से रोकने को फासीवादी और मानवीय अधिकारों के विरु द्ध साबित किया जा रहा है। इसे धार्मिंक आजादी और अभिव्यक्ति की आजादी के विरुद्ध साबित करने की होड़ लग गई है। एक लड़की मुस्कान, जिसने ‘जय श्री राम’ नारे के बीच ‘अल्लाह हू अकबर’ का नारा लगाया वह हीरो बन चुकी है। असदुद्दीन ओवैसी जैसे नेताओं के लिए तो मानो मुंह मांगा विषय मिल गया है। उन्होंने कक्षा में आने पर रोके जाने को संविधान का मखौल भी बता दिया और कहा कि एक दिन हिजाब पहनने वाली महिला देश की प्रधानमंत्री बनेगी। वास्तव में इसके कई पहलू हैं। यह मामला हिजाब पहनने और न पहनने तक सीमित नहीं है। किसी ने घर से बाहर निकलने वाली महिलाओं के हिजाब पहनने का विरोध नहीं किया है। यहां मामला एक शिक्षालय का है। तो सबसे पहले इस रूप में देखा जाना चाहिए कि क्या किसी शिक्षालय में अलग-अलग संप्रदायों: मजहबों के छात्र छात्राओं को उनके अनुसार विशेष वस्त्र पहनकर आने की स्वतंत्रता होनी चाहिए? हमारे देश में धार्मिंक आस्थाओं के अनुसार लोगों के निर्वस्त्र रहने की भी छूट है। नागा साधु से लेकर दिगंबर संत इसके प्रमाण हैं। जो भारतीय संस्कृति और हिंदू धर्म को नहीं जानते वे ही आरोप लगाएंगे कि हमारे यहां धर्म के अंदर किसी प्रकार की वांछित स्वतंत्रता पर पाबंदी के प्रावधान हैं।
अगर कोई शिक्षालय अपने यहां छात्र छात्राओं को अपने धर्म या मजहब के अनुसार वस्त्र में आने से रोकता है तो इसमें धार्मिंक स्वतंत्रता पर अंकुश की बात कहां से आ गई? शिक्षालय को अपना अनुशासन लागू करने का अधिकार होना चाहिए और यह उनकी आजादी के तहत आता है। अगर वे संविधान और कानून के विरु द्ध जाते हैं तो उसका विरोध होना चाहिए। कल्पना करिए इसकी प्रतिक्रिया में दूसरे मजहब-संप्रदायों के सारथी अलग-अलग तकरे के साथ ऐसे ही वस्त्र पहन कर आने लगे तो क्या होगा? किसी वर्ग के अंदर अध्ययन अध्यापन का कैसा माहौल होगा? अगर हम धर्म समागम सहअस्तित्व और सहिष्णुता की बात करते हैं तो उसमें अपने मजहब के नाम पर किसी वस्त्र को लेकर इस तरह की खतरनाक जिद की आवश्यकता क्यों? यही लड़कियां पहले बिना हिजाब के कक्षा में आती थी और कभी उन्होंने इसकी मांग नहीं की। अचानक उनके अंदर ऐसी भावना कहां से पैदा हो गई इस पर अवश्य विचार करना चाहिए। जो कुछ सामने आ रहा है, उसमें पीपुल्स फ्रंट ऑफ इंडिया यानी पीएफआई के छात्र विंग कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया की भूमिका दिखाई पड़ रही है। यह संगठन लोगों में कट्टरता फैलाता है। इसके विरुद्ध कार्रवाइयां हुई हैं। इसके लोग अलग-अलग मजहबी अपराध और यहां तक कि आतंकवादी हमलों में भी पकड़े गए हैं। हिजाब के बारे में इस्लाम क्या कहता है इस पर अधिकृत मंतव्य तो उसकी गहरे जानकारी वाले दे सकते हैं।
मामला उच्च न्यायालय से संभव है सर्वोच्च न्यायालय तक जाए। तो संवैधानिक व्याख्या के लिए हमें न्यायालय के फैसले की प्रतीक्षा करनी चाहिए। हालांकि हर विषय न्यायालय तय करें यह देश के लिए खतरनाक स्थिति होगी। यह भी तो सोचिए कि उन पांच लड़कियों की ओर से उच्च न्यायालय में जाने वाले कौन लोग होंगे? वह लड़कियां स्वयं तो गई नहीं है। उसी तरह मामले को सर्वोच्च न्यायालय में ले जाने वाले कौन लोग हैं? तो ये कौन लोग हैं, जो एक सामान्य विषय को इतना बड़ा मुद्दा बनाने पर तुले हुए हैं। जाहिर है, इनके इरादे नेक नहीं हैं। इसलिए मुसलमानों के अंदर भी स्वयं को विवेकशील मानने वाले लोगों को इसका विरोध करना चाहिए। दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हो रहा तो चिंता और बढ़ जाती है। उल्टे स्वयं को लिबरल एवं प्रगतिशील मानने वाले लोग हिजाब के समर्थन में आगे आ रहे हैं। प्रदर्शन शुरू हो गए हैं।
विद्यालय में मुस्लिम स्टूडेंट्स फेडरेशन के सदस्यों ने प्रदर्शन आरंभ कर दिया। वे हाथों में बैनर पोस्टर लिए हुए थे जिन पर लिखा था हम कर्नाटक की छात्राओं के साथ है। जरा सोचिए, विश्व भर में हजारों मुस्लिम महिलाएं हिजाब नहीं पहनतीं। तो क्या वे इस्लाम विरु द्ध आचरण कर रही हैं? हमारे देश में ही लाखों ऐसे लड़कियां हैं जो शिक्षालयों में बिना हिजाब के जाती हैं। क्या यह माना जाएगा कि वह इस्लाम विरुद्ध आचरण कर रही हैं? अगर इस्लाम में हिजाब अनिवार्य होता तो हर लड़की और महिला उसे अपनाने को बाध्य होती। दरअसल, यह प्रचंड तार्किक और प्रभावी विरोध के साथ जागरूकता का मामला है। जब तक समाज का बहुमत इसके खिलाफ खड़ा नहीं होगा ऐसी घातक प्रवृत्तियों पर रोक लगाना कठिन है।
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