बतंगड़ बेतुक : ठेका ठर्रा चुक्कड़ और चुनाव

Last Updated 30 Jan 2022 01:49:04 AM IST

झल्लन जी तोड़ कोशिश कर रहा था कि टीवी के किसी समाचार चैनल में पक्ष-विपक्ष के चिखाऊ-चिल्लाऊ प्रवक्ताओं और एंकर उछलबच्चों का गाली-गलौजिया दंगल देखकर उसके दिमाग की नसें न तन जायें, उसके कान के पर्दे न फट जायें और उसके सोच के पहिए तिलमिलाकर अपनी संतुलित धुरी से न हट जायें।


बतंगड़ बेतुक : ठेका ठर्रा चुक्कड़ और चुनाव

उसने खीज के साथ टीवी को चुप कराया और अपने गांव के पसंदीदा उस ढाबेनुमा थान पर चला आया जहां आगे चाय की दुकान चलती थी और उसके पीछे की एक खिड़की ठेके-ठर्रे की ओर खुलती थी। चाय पीने का मन नहीं हुआ तो खिड़की खोलकर ठर्रे की दुनिया में आ गया और एक ललटुपिया और एक बिनटुपिया तिलकधारी अलग-अलग पार्टियों के झंडाढोऊ अपने दो यार ब्रजवासियों को पा गया।
उनके चुक्कड़ देखकर लगा कि उन्होंने थोड़ी चढ़ा ली है और थोड़ी चढ़ाना बाकी है। अपना पौवा और चुक्कड़ लेकर वह उनकी तरफ चला आया और वे जो एक-दूसरे की तरफ पीठ करके बैठे थे उन्हें आमने-सामने ला बिठाया। झल्लन ने सोचा कि इन दोनों की बहस कराई जाये, आस-पास बैठे हुए ठर्राबाजों को सुधी श्रोता बनाया जाये, चुनावी माहौल का असली मजा लिया जाये और टीवी ने जो भेजा खराब किया था उसे थोड़ा सम् पर लाया जाये। उसे यकीन था कि जब ये दोनों बात करेंगे तो टीवी पर बैठे पार्टी प्रवक्ताओं की तरह न तो झूठ के झंडे लहराएंगे और न एक-दूसरे पर बेशर्मीभरे बेलिहाज आरोप लगाएंगे, उल्टे जो इनके भीतर होगा उसे जस-का-तस बाहर ले आएंगे।
झल्लन दोनों से मुखातिब हुआ और बोला, ‘काहे भइये, चुनाव आ गये हैं, हवा किधर बह रही ऐ, किनकी सरकार बनती लग रही ऐ?’ दोनों ने पहले झल्लन की ओर देखा, फिर एक-दूसरे की ओर उपहासिया आंखों से निहारा और फिर एक साथ उचारा, ‘देखि भइया, सरकार तो न जा की बनेगी ना बा की बनेगी, बनेगी तो कुल्लि हमारी बनेगी।’ कह कर ललटुपिया ने अपनी टोपी पर हाथ फिराया और बिनटुपिया तिलकधारी आंखों ही आंखों में मुस्कुराया। ललटुपिया ने थोड़ा मुंह बिचका दिया तिस पर तिलकधारी एक चौड़ी मुस्कुराहट फिर मुस्कुरा दिया। झल्लन बोला, ‘सरकार दोनों की तौ नहीं बनेगी, बनेगी तो किसी एक की बनेगी। तुम्हारे चारों ओर अपने-अपने चुक्कड़ लेकर पंच बैठे हैं, इनके सामने एक-एक करके अपनी बात बताओ और जीत की अपनी-अपनी वजह समझाओ।’

ललटुपिया बोला, ‘सुन भइया झल्लन, हम तो तब बोलेंगे जब सरकारी तिलकधारी अपनी बात बोल चुकेंगे, तो पहले इनते पूछो कि जनता इनके संग क्यों आवेगी और इनके भगवा को फिर क्यों जितावेगी?’ तिलकधारी बोला, ‘जाके पास बोलवे कूं कछू होह तब ही ना बोलेगो, जब कछू है ही नांहिं तो काये बात पर अपनी जुबान खोलेगो। रही बोटर की बात तो बोटर की मति हमारी तरफ आय गयी ऐ और बोटर ने हमारी सरकार फिर बनवाऐबे की ठान लई ऐ। हमारी सरकार ने जम के बिकास करवायो ऐ, एक के बाद एक एक्सप्रेस-बे बनवायो ऐ, माफिया कूं जेल भिजवायो ऐ, गरीबन के लैं घर बनवायो ऐ, किसाननि के खाते में सीधे पैइसा पहुंचवायो ऐ, घर-घर शौचालय बनवाइ र्के औरतनि कौ सम्मान बढ़ायो ऐ, नाकारा-निखट्टुअन कूं रोजगार दिलवायो ऐ, भटकि रहे नौजवाननि कूं देशभक्ति को पाठ पढ़ायो ऐ और सबसे ऊपर जे कि अयोध्या में रामलला कूं प्रतिष्ठित करवायो ऐ, बड़े-बड़ेनि ते जय श्रीराम बुलवायो ऐ और देश का सीना 36 इंच फुलवायो ऐ। जा ते जादा न काऊ ने करो ऐ न कोऊ करि पावेगो, जाही लें हमारो बोटर हमारी सरकार फिर बनबावेगो और जा ललटुपिया कूं फिर हरावेगो।’ तिलकधारी की बात सुनकर एक श्रोता ने जो न जाने नशे में था या किसी झोंक में था, अपना चुक्कड़ किनारे कर हाथ उठाया और जोर का नारा लगाया, ‘बोल बंसी बारे की..!’ उत्तर में सब ब्रजवासी एक स्वर में बोले, ‘जै!’ तिलकधारी उनकी तरफ देखकर मुस्कुराया और उसने भी नारा लगाया, ‘जय श्रीराम!’ इस बार कुछ ने जय ‘श्रीराम’ दोहरा दिया, कुछ ने चुक्कड़ ऊपर उठा दिया और कुछ ने मौन साध लिया। इस सबके जवाब में ललटुपिया ने अपनी मुंडी मूंछों पर ताव दिया, अपनी टोपी को थोड़ा तिरछा घुमाव दिया और अपने चेहरे का तेवर थोड़ा तेज किया। इससे पहले कि वह कुछ बोलता झल्लन ने उसकी मुद्रा ताड़ ली कि अब यह गुस्से में आएगा, अपने अंड़-बंड़ नेताओं की तरह मुंह से झाग गिराएगा, तिलकधारी को गरियाएगा और अपने चुक्कड़ की चुस्कियां ले-लेकर चिल्लाएगा। सो वह पियक्कड़ पंचों से मुखातिब होकर बोला, ‘तो बताओ भई पंचों, तुम्हें तुम्हारे ठर्रे की कसम, सच-सच बोलना नहीं तो मुंह मत खोलना। जैसे टीवी पे मारा-मारी, हाय-तौबा, चीख-पुकार, जूतम-पैजार सुनते हो वैसी सुनोगे या शांत बैठकर शांति से जवाब सुनोगे?
र्ठेबाजों के एक प्रतिनिधि ने जोरदारी से कहा, ‘टीबी सुन-सुनि र्के हमारो दिमाग भन्नाय जातु ऐ, गुस्सा लुगाई लरिकन पै निकर जातु ऐ। सो भइया, हम बेलगाम टीवीबाजों की तरह नहीं करेंगे, अपने चुक्कड़ और र्ठे की इज्जत रखेंगे और जो कछु सुनेंगे, चुपचाप शांति से सुनेंगे।’ झल्लन ने ललटुपिया से कहा, ‘सुन भइया, पंच चाह रहे ऐं कि ठेके-र्ठे की इज्जत रखी जाए, टीबी की तरह अंगड़-बंगड़ न बकी जाए और जो बात कही जाए शराफत से, सच्चे दिल से कही जाए। (जारी..)

विभांशु दिव्याल


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